जहां पुलिस कुछ आदिवासी समुदाय के आदमियों को जबरन उठा ले जाती है. उन्हें टॉर्चर करती है. इस ढंग से कि आप गुस्से से दांत चबाने लगे. उन्हें ऐसा जुर्म कुबूल करने को कहती है जो उन्होंने किया ही नहीं. उन आदिवासियों में से एक होता है राजाकानू. जिसकी बीवी अपने पति को बचाने के लिए चंद्रु नाम के वकील की मदद लेती है. चंद्रु ह्यूमन राइट्स के केसेज़ को खास तवज्जोह देता है. लेकिन इस केस की तह तक पहुंचने में उसके सामने कैसा घिनौना सच आता है, यही फिल्म की कहानी है. ऐसा सच, जो सदियों से हमारे बीच है. बस हमने सहूलियत से उसकी तरफ से आंखें फेर ली हैं.

पुलिस ब्रूटैलिटी पर बनी 'विसारनाई' भी एक असरदार फिल्म है.
सिर्फ पुलिस ब्रूटैलिटी ‘जय भीम’ की थीम नहीं. ये उस मानसिकता में उतरने की कोशिश करती है, जिससे पुलिस ब्रूटैलिटी जैसी हिंसा ने जन्म लिया. उन पूर्वाग्रहों को सामने लाती है, जो एक को दूसरे से ऊपर समझने का हक देते हैं. ऐसे भेदभाव को विमर्श बनाकर पहले भी सिनेमा बन चुका है. जहां इस थीम को सटल रखा गया. ताकि ऑडियंस खुद उस फर्क को महसूस कर सके. लेकिन ‘जय भीम’ ऐसा नहीं करती. ये ऊंच-नीच वाले भेद को सटल न रखते हुए क्लियर कट सामने रखती है. जैसे राजकानू सांप पकड़ने का काम करता है. एक बार गांव के किसी प्रभावशाली आदमी का नौकर उसे बुलाने आता है. अपनी मोपेड़ पे बैठने को कहता है. बैठते वक्त राजा सहारा लेने के लिए उसके कंधे पर हाथ रख देता है. तभी वो तिरछी नज़र से पीछे पलटता है. राजा अपनी भूल सुधारते हुए हाथ हटा लेता है.
मेरे लिए पुलिस टॉर्चर वाले सीन्स सबसे डिस्टर्बिंग थे. अगर आप उन सीन्स को बतौर दर्शक देख रहे हैं, तो आपको एक गिल्ट अंदर से खाएगी. कि आप भी चुप रहकर अत्याचारी के साथ हैं. और अगर आप उन सीन्स में उतरेंगे, तो उन आदिवासियों की वेदना महसूस किए बिना नहीं रह पाएंगे. जो किसी को भी विचलित करने के लिए काफी है. यहां फिल्म की सिनेमैटोग्राफी को भी क्रेडिट दिया जाना चाहिए. वो माहौल क्रिएट करने के लिए.

जिसका दिल सही जगह पर है, उसे पुलिस टॉर्चर वाले सीन्स विचलित कर सकते हैं.
अगर आप पूरी फिल्म देखेंगे तो पाएंगे कि इसकी सिनेमैटोग्राफी नैरेटिव के साथ चलती है. जैसे चंद्रु और आई जी पेरूमालसामी के कैरेक्टर्स. जिन्हें निभाया सूर्या और प्रकाशराज ने. फिल्म के शुरुआत में दोनों कैरेक्टर्स की सोच एक दूसरे से नॉर्थ-साउथ चलती है. इसलिए एक सीन में दोनों एक गाड़ी के बगल में एक दूसरे को फेस करते हुए खड़े हैं. ऐसे में कैमरा को गाड़ी के दूसरी ओर प्लेस किया गया. ताकि फ्रेम में चंद्रु और पेरूमालसामी एक दूसरे के आमने-सामने दिखें. और उनके बीच गाड़ी के विंडो फ्रेम को रुकावट की तरह दिखाया जा सके. कि जैसे दोनों का सोचना सही है. बस इनकी विचारधारा में भेद है. आगे दोनों की विचारधारा का ये फर्क मिटने लगता है. ऐसे में एक सीन में दोनों को उसी गाड़ी के अंदर बैठा दिखाया गया है. वो भी एक दूसरे के अगल-बगल में.
सूर्या भले ही फिल्म में सबसे बड़ा नाम थे. लेकिन यहां वो फिल्म के सबसे बड़े स्टार नहीं. फिल्म की स्टार है सेंगनी. यानी राजकानू की पत्नी. लिज़ो मॉल होज़े ने ये कैरेक्टर पोर्ट्रे किया. राजाकानू के जेल में जाने के बाद कहानी का भार सेंगनी के ज़िम्मे आ जाता है. जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. उनके सामने सूर्या और प्रकाशराज जैसे एक्टर्स थे. लेकिन फिर भी वो स्टैंड आउट करती हैं.

लिज़ो मॉल होज़े इस फिल्म की सबसे बड़ी स्टार हैं.
‘जय भीम’ एक असली घटना पर आधारित है. फिल्म को मास अपील देने के लिए कुछ हिस्सों को ड्रामाटाइज़ किया गया है. जिनकी ज़रूरत महसूस नहीं होती. यही वजह है कि कुछ हिस्सों में फिल्म स्लो लग सकती है. मगर इसका ये मतलब नहीं कि फिल्म को सिरे से नकार दिया जाए. ये फिल्म अपनी मैसेजिंग के साथ इंसाफ कर पाने में कामयाब हो जाती है. बाकी ऐसे टॉपिक्स पर पहले बनी फिल्मों से तुलना करना समझदारी नहीं होगी. फिल्म देख सकते हैं. अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है.