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जगजीत सिंह ने वसीम बरेलवी से सिगरेट के पैकेट पर लिखवा ली ग़ज़ल

शायर Waseem Barelvi ने बताया कैसा था उनका Jagjeet Singh से रिश्ता. बीच ग़ज़ल में उन्हें मंच पर बुला लिया था जगजीत ने.

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वसीम बरेलवी 63 साल से लगातार लिख रहे हैं. वो दुनियाभर के मानीखेज़ मुशायरों में अपना कलाम सुना चुके हैं.

Waseem Barelvi शायर तो आला दर्जे के हैं ही, किस्सागो भी कमाल के हैं. हाल ही में जब वो The Lallantop के ख़ास कार्यक्रम Guest in the Newsroom में आए, तो ग़ज़लों, मुशायरों, महफिलों के कई किस्से भी साथ लाए. कुछ मतले, कुछ मिसरे सुनाते हुए वो सारे किस्से सुनाए. एक वाकया Jagjeet Singh से जुड़ा है. जगजीत ने वसीम बरेलवी की कई ग़ज़लें गाईं. मगर ग़ज़ल और गायकी का ये मरासिम बना कैसे, ये उन्होंने The Lallantop को बताया. उन्होंने कहा,

"जिस ज़माने में ग़ज़ल गायकी अपने उरूज़ पर थी, तो बड़े-बड़े शोअरा इसी कोशिश में थे कि पहचानी जाने वाली बड़ी आवाज़ों तक उनकी शायरी पहुंच जाए. फिर उनकी आवाज़ों में वो लोगों तक पहुंचे. उससे मक़बूलियत भी बहुत बढ़ जाती उस ज़माने में. मगर मेरी हिम्मत कभी नहीं हुई कि मैं ग़ज़ल की तौहीन होने दूं और मैं गायकी तक खुद पहुंचूं. पहली ग़ज़ल मेरी मरहूम इफ्तेखार इमाम साहब जो 'शायर' के एडिटर थे. उनका ख़त आया मेरे पास कि आपकी एक ग़ज़ल जगजीत सिंह गाना चाहते हैं. ग़ज़ल थी,

"मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले,
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले..."

"बड़ी मक़बूल आवाज़ थी उनकी और हर आदमी चाहता था कि वो उसकी ग़ज़ल गाएं. मुझसे मेरी मंज़ूरी मांगी गई. मैंने उनको ख़त के ज़रिए एक्सेप्टेंस भेज दिया. एल्बर्ट हॉल में उन्होंने वो ग़ज़ल गाई और क्या ज़बरदस्त गाई कि वो आज तक लोगों के कानों में गूंज रही है."

वसीम बरेलवी की एक ग़ज़ल जगजीत सिंह को भा गई. कॉफी पीते हुए उन्होंने हाथोंहाथ उसे काग़ज़ पर लिखवा लिया. वो पूरा किस्सा बरेलवी साहब ने सुनाया. कहा, 

"एक बार लखनऊ में अवॉर्ड सेरेमनी थी हिंदी उर्दू अवॉर्ड कमिटी की. मुझे रवींद्रालय में शायर की हैसियत से अवॉर्ड दिया गया. रवींद्रालय का लाइट का अरेंजमेंट कुछ ऐसा है, वहां स्टेज से नीचे देख नहीं पाते हैं. कुछ देर में जगजीत जी का फ़रमाइशी पर्चा आया, तो मैंने ग़ौर से नीचे देखा. उनसे दुआ सलाम हुई. वहां मैंने ग़ज़ल पढ़ी -

"मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों,
कि‍ मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों..."

“फिर हम लोग बाहर आए. मैं, मेरे साथ मेरे साले थे, और जगजीत जी बैठे थे. मैंने कॉफी बुलवाई. कॉफी पीते हुए जगजीत जी ने कहा कि ये ग़ज़ल अभी लिख दीजिए मुझे. मैंने कहा मैं भेज दूंगा आपको. वो बोले तुम कभी नहीं भेजोगे. अभी लिखो. मेरे पास कोई क़ाग़ज़ वहां था नहीं. हमारे जो साले साहब थे रिज़्वान, वो विल्स का पैकेट लाए थे. विल्स का वो जो काग़ज़ होता है सफ़ेद वाला. उस पर दो शेर मैंने एक तरफ लिखे, दो शेर दूसरी तरफ़ लिखे. जगजीत जी ने वो ले लिए और लता जी और जगजीत ने जो गाया है उसे. फिर उनसे ताल्लुक़ात ऐसे हो गए कि उसके बाद उन्होंने मांगा नहीं कोई शेर. वो खुद ही ले लिया करते थे. क्या ग्रेट आर्टिस्ट और ग्रेट इंसान थे वो.”

जगजीत सिंह से कई किस्से हैं वसीम बरेलवी के पास. उन्होंने जयपुर के मुशायरे में हुआ वाकया सुनाया. कहा,

"वो वाकया मैं भूल नहीं पाता कि मैं जयपुर गया हुआ था राजभवन के एक मुशायरे में. वहां तारिक ग़ौरी साहब जो कस्टम में थे वो हमारे कॉमन दोस्त थे. मैं तारिक साहब के वहां ठहरा हुआ था. वहां से मुझे अजमेर शरीफ़ जाना था हाजरी के लिए. उन्होंने गाड़ी का इंतज़ाम किया हुआ था. वो बोले जगजीत जी आ रहे हैं कल. मैंने कहा मुझे तो कहीं और जाना है. सलाम कहना मेरा. फिर किसी मौके पर मुलाकात होगी. मगर जगजीत जी ने मुझे रोकने को कहा. बोले उका हवाई जहाज़ का टिकट करा देना. मगर रोक कर रखना. जब मैं अजमेर शरीफ़ से पहुंचा, उसी शाम जगजीत जी की प्रोग्राम था. वो आए. बड़े तपाक से मिले. वहां का रवींद्र भवन. बड़ा मशहूर हॉल. जगजीत जी ने अपना प्रोग्राम शरू किया. उन्होंने एक ग़ज़ल सुनाई. दूसरी ग़ज़ल सुनाई, और तीसरी ग़ज़ल का पहला शेर पढ़कर रुक गए. ग़ज़ल थी,

"अपने चेहरे जो ज़ाहिर से छिपाएं कैसे, 
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आएं कैसे."

उन्होंने मजमे से कहा कि इस ग़ज़ल के कहने वाले यहां मौजूद हैं. अब मैं ये चाहता हूं कि ये माइक मैं उनके सुपुर्द करूं और बाकी ग़ज़ल वो यहां आकर पूरी करें. फिर मजमे से ताली बजवाई. कोई आर्टिस्ट अपना माइक किसी दूसरे के हवाले ऐसे स्टेज से नहीं करेगा. मैंने तहत में ग़ज़ल पढ़ी. मगर उन्होंने किया. मैं दिल से दुआ करता हूं उनकी रूह के लिए.

छह दशक से शायरी कर रहे वसीम बरेलवी का ए‍क शेर शाहरुख खान की फिल्म 'जवान' में लिया गया. मेकर्स इसमें कुछ तब्दीली करना चाहते थे. बरेलवी इसके लिए राज़ी नहीं हुए. फिर ख़ुद शाहरुख खान ने उनसे फोन पर गुज़ारिश की, और बरेलवी इन्कार न कर सके. वो गीत है 'बंदा हो, ज़िंदा हो...'
 

वीडियो: गेस्ट इन द न्यूजरूम: वसीम बरेलवी ने सुनाया जौन एलिया का किस्सा, शाहरुख ने फोन कर क्यों मनाया था?