Industry
Director: Navjot Gulati
Cast: Gagan Arora, Asha Negi, Lakshya Kochhar
Rating: 2.5 Stars
सीरीज़ रिव्यू - इंडस्ट्री
आयुष वर्मा 25 स्क्रिप्ट लिख चुका है. एक पर भी फिल्म नहीं बनी. अब 26वीं फिल्म लगी है. उसे सही मुकाम तक पहुंचाने में क्या-कुछ देखना पड़ता है, यही शो की कहानी है.
साल 2013. मुंबई. एक लड़का ऑटो पकड़कर किसी ऑफिस पहुंच रहा है. ऑफिस के एयर कंडिशनर वाले केबिन में पहुंचकर ये लड़का रुसलान और उसके भाई की कहानी सुनाना शुरू करता है. सामने बैठे लोगों को कहानी पसंद आई. वो इस पर फिल्म बनाने के लिए हामी भर देते हैं. तभी उनमें से एक की तरफ से सवाल आता है कि क्या ये स्क्रिप्ट आपने खुद लिखी है, या कोई को-राइटर भी है? लड़का कहता है कि उसकी स्क्रिप्ट प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाईसाहब’ पर आधारित है, और स्क्रीनप्ले उसी ने लिखा है. सवाल पूछने वाली आराम से कहती है कि कूल, अगली बार मीटिंग के लिए इस प्रेमचंद को भी लेते आना. राइटर स्तब्ध है. आपको हंसी आ रही है. मुंबई फिल्म इंडस्ट्री ने कुछ इस तरह उस लड़के का स्वागत किया है.
उस लड़के का नाम आयुष वर्मा है. साल 2013 से 2023 तक उसने 25 स्क्रिप्ट लिखी. एक पर भी फिल्म नहीं बनी. अब अपनी 26वीं फिल्म ‘धूम धड़ाका’ को बेचने की कोशिश कर रहा है. इस पूरे सफर में उसे इंडस्ट्री के क्या रंग देखने को मिलते हैं, यही ‘इंडस्ट्री’ नाम के शो की कहानी है. अमेज़न मिनी टीवी पर ये शो आया है. कहानी नवजोत गुलाटी की है. उन्होंने ही शो डायरेक्ट भी किया है.
गगन अरोड़ा ने आयुष का रोल किया है. कागज़ पर उनका किरदार जैसा लिखा गया है, उन्होंने उसे पूरी तरह समझा है. आप उसे पहली नज़र में देखेंगे और समझ जाएंगे कि यार इस बंदे में एक बेचैनी है. ये हर समय अपनी कहानी बेचने को आतुर है. लेकिन ये शो सिर्फ गगन के किरदार के बारे में नहीं है. एक लड़का है. रॉकी नाम का. लक्ष्य कोचर ने वो किरदार निभाया. रॉकी एक बड़े प्रोड्यूसर का बेटा है. अब तक पांच फिल्में की और सभी फ्लॉप हुई. रॉकी को भी खुद को साबित करने की ज़िद है. उसे पता है कि उसके सरनेम की वजह से उसे पहले ही जज कर लिया जाता है. उसे दुनिया को दिखाना है कि वो भी एक्टिंग कर सकता है. ‘इंडस्ट्री’ ऐसे ही ज़िद्दी लोगों से भरा हुआ है. आप फिल्म इंडस्ट्री की दुनिया को थोड़ा अप, क्लोज़ एंड पर्सनल लेवल पर देखते हैं.
कैसे बेचैनी में अच्छे लोग अपनी अच्छाई को बैकसीट पर डाल देते हैं. कैसे आर्ट और बिज़नेस वाली बहस सिर्फ पेपर पर अच्छी लगती है. असली दुनिया में आते ही ‘पैसा है तो बड़ी, बड़ी बातें’ हो जाता है. जिस दुनिया को हम आंखों में हम ग्लैमर भरकर देखते हैं, ये उसका अलग पक्ष दिखाता है. उस लिहाज से आप इसे देख सकते हैं. बस शिकायत इतनी है कि ये काफी ज़्यादा बेहतर हो सकता था. इसका दोष शो की राइटिंग को जाता है. एक पॉइंट पर किरदारों की कहानियां बहुत फैल जाती हैं. बहुत सारे ऐसे सीन आते हैं जो कहानी को आगे ले जाने का काम नहीं कर रहे.
बेसिकली ये एक ड्रामा शो है. ड्रामा मज़ेदार बनता है कंफ्लिक्ट से. यानी मुख्य किरदार के रास्ते में आने वाली चुनौतियों से. यहां आयुष की ज़रूरत है कि बस उसकी फिल्म बन जाए. हर मुमकिन कोशिश से वो रास्ता उसके लिए मुश्किल बनता रहता है. लेकिन उसके बावजूद भी शो में ऐसे सीन नहीं जो आपको आकर हिट करें, या अपने ड्रामा की वजह से याद रह जाएं. मिसाल के तौर पर एक सीन लेते हैं. आयुष से गलती हो गई. उसे दूसरे किरदार से जाकर माफी मांगनी है. उसकी ज़रूरत है कि उसे माफी मिल जाए. ड्रामा निकालने के लिए आप उसकी ज़रूरत तक पहुंचने की डगर कठिन बनाइये. मगर होता बिल्कुल विपरीत है. आयुष जाता है. माफी मांगता है. माफी मिल जाती है और दो डायलॉग में सीन खत्म. आप में कोई उत्सुकता नहीं जगी. जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही हो गया.
‘इंडस्ट्री’ ने कई रियल लाइफ एग्ज़ाम्पल का भी इस्तेमाल किया है. थोड़ी भी फिल्मी न्यूज़ फॉलो करते होंगे तो आप समझ जाएंगे. कुछ-कुछ मोमेंट्स लैंड करते हैं. लेकिन ऐसा पूरे शो के लिए नहीं कहा जा सकता.
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