18 बरस का मनु दिन-रात पढ़ाई कर रहा है, क्योंकि उसे IIT, यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एडमिशन पाना है. मनु की तरह ही और भी कई सारे बच्चे इस वक्त किताबों में आंख गड़ाए हुए हैं, क्योंकि वो भी वहां जाना चाहते हैं. ज़ाहिर-सी बात है, इतने प्रतिष्ठित संस्थान में एडमिशन लेने के लिए कड़ी मेहनत चाहिए. लेकिन हम यहां मेहनत पर बात नहीं करेंगे, वो हम जब-तब अपने कई आर्टिकल्स और वीडियो में करते हैं. आज बात होगी उस संस्थान की, जो इस मेहनत के पीछे की वजह और जड़ है. यानी देश के सबसे पहले IIT की. IIT खड़गपुर की. आज से 69 बरस पहले, 18 अगस्त, 1951 को इसकी स्थापना हुई थी.
कभी IIT खड़गपुर से पढ़ने वाले आज क्या-क्या कमाल कर रहे हैं!
IIT खड़गपुर की शुरुआत उस भवन से हुई थी, जहां कई शहीदों का खून बहा था.

थोड़ा इतिहास भी जान लीजिए
दूसरे विश्व युद्ध के बाद, यानी 1946 के बाद देश में इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट की ज़रूरत महसूस हुई. सोचा गया कि अच्छे टेक्निकल इंस्टीट्यूट होने चाहिए. इसलिए 1946 में 22 दिग्गज लोगों की एक कमिटी बनाई गई. कमिटी की रिपोर्ट में कहा गया कि देश में चारों दिशाओं में चार उच्च तकनीकी संस्थान बनाए जाएं. USA के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की तरह के इंस्टीट्यूट. ये भी कहा गया कि दो इंस्टीट्यूट जितनी जल्दी हो सके, बनाए जाएं. फिर 1950 में खड़गपुर के हिजली में देश के पहले IIT का जन्म हुआ. औपचारिक तौर पर इसका उद्घाटन हुआ 18 अगस्त, 1951 में. 69 बरस पहले. देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उद्घाटन किया. हालांकि उद्घाटन के समय तक इस इंस्टीट्यूट का नाम IIT नहीं पड़ा था. टेक्निकल इंस्टीट्यूट ही कहा जा रहा था. 1956 में एक एक्ट आया, जिसके बाद इस इंस्टीट्यूट को IIT खड़गपुर का नाम मिला.

IIT खड़गपुर की पुरानी बिल्डिंग, यानी हिजली डिटेंशन कैंप. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)
कभी कारावास थी IIT की बिल्डिंग
हिजली, जो कि पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले के तहत आने वाली छोटी-सी जगह है, खड़गपुर से एकदम लगी हुई है. इसके जिस भवन में IIT की स्थापना हुई, वो भवन कभी डिटेंशन कैंप थी. यानी एक तरह का कारावास. वहां आज़ादी से पहले स्वतंत्रता सैनानियों को बंदी बनाकर रखा जाता था. IIT खड़गपुर की वेबसाइट के मुताबिक, वहां 16 सितंबर, 1931 में ब्रिटिश पुलिस ने दो युवा निहत्थे बंदियों को गोलियों से मार दिया था. शहीदों का शव लेने खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस डिटेंशन कैंप गए थे. यानी इस भवन का आज़ादी की लड़ाई में काफी अहम रोल रहा.
खैर, वापस IIT पर आते हैं. अगस्त, 1951 से पहला सेशन शुरू हुआ. 224 स्टूडेंट्स और 42 टीचर्स के साथ. हिजली डिटेंशन कैंप के भवन में ही. हालांकि बाद में IIT खड़गपुर की अपनी नई बिल्डिंग बन गई और इंस्टीट्यूट वहां शिफ्ट हो गया. हिजली का ये भवन अब शहीद भवन के नाम से जाना जाता है. यहां नेहरू म्यूज़ियम ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी भी है. नया कैंपस इस भवन से ज्यादा दूर नहीं है.
पहले IIT के बाद देश के कई हिस्सों में इसकी स्थापना हुई. अभी मौजूदा समय में टोटल 23 IIT हैं.
इतिहास जाना, अब IIT खड़गपुर के धुरंधरों से मिलिए
क्या ही कहें, इस इंस्टीट्यूट ने देश को कई सारे कमाल के लोग दिए हैं, जो केवल तकनीक नहीं, बल्कि कला, फिल्म, पत्रकारिता जैसी जगहों में भी झक्कास काम कर रहे हैं. सबके बारे में बताएंगे, तो चार-पांच किताबें लिखा जाएंगी, अभी कुछ फेमस लोगों के बारे में जानते हैं.
# अरविंद केजरीवाल

दिल्ली के सीएमं अरविंद केजरीवाल. फोटो- PTI
दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक हैं. IIT खड़गपुर से 1989 में ग्रेजुएट हुए, फिर टाटा स्टील जॉइन की. 1992 में IRS अधिकारी बने, यानी सिविल सेवा परीक्षा पास की. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी रहे. कई तरह के सोशल वर्क भी करते रहे, खासतौर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ. 2011 जन लोकपाल बिल मूवमेंट से जुड़े. बस इसी के बाद केजरीवाल की हुई राजनीति में एंट्री.
# अजीत सिंह

RLD चीफ अजीत सिंह. फोटो- फेसबुक @ChaudharyAjitSingh
राजनेता हैं. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे हैं. अजीत पश्चिम यूपी की राजनीति का बड़ा नाम हैं. राष्ट्रीय लोक दल के फाउंडर और चीफ हैं. 1986 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने थे. 1989 में जनता दल के टिकट पर बागपत से लोकसभा सांसद बने थे. इस सीट से छह बार वो सांसद चुने गए. केंद्रीय मंत्री भी रहे. 2019 में SP-BSP-RLD के गठबंधन के तहत मुज़फ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा.
# अशोक खेमका

IAS अधिकारी अशोक खेमका. फोटो- इंडिया टुडे.
ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें ट्रांसफर्स की लंबी लिस्ट के लिए जाना जाता है. 55 बरस के हैं. 1988 में IIT खड़गपुर से ग्रेजुएट हुए. 1991 में सिविल सेवा परीक्षा निकाल ली. IAS अधिकारी हैं. हरियाणा कैडर से हैं. 27 बरस के करियर में उनका 53 बार ट्रांसफर हो चुका है. दिल्ली के दो पत्रकार खेमका के ट्रांसफर वाले सफर पर एक किताब भी लिख चुके हैं.
# सुंदर पिचाई

गूगल के CEO सुंदर पिचाई. फोटो- PTI.
दुनियाभर का ज्ञान देने वाले गूगल के सीईओ हैं. 48 बरस के हैं. 1993 में IIT खड़गपुर से ग्रेजुएट हुए. मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. फिर यूनाइटेड स्टेट्स (US) पहुंचे, स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की. पिचाई गूगल से साल 2004 में बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर जुड़े. CEO बनने से पहले वो गूगल ड्राइव, गूगल क्रोम, जीमेल, गूगल मैप, क्रोमबुक वगैरह का हिस्सा रहे. 2008 में वो वाइस प्रेसिडेंट बने और 2015 में उन्हें CEO बनाया गया.
# मोनिषा घोष

मोनिषा घोष. फोटो- ट्विटर @airnewsalerts
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं. 1986 में IIT खड़गपुर से ग्रेजुएट हुईं. फिर आगे की पढ़ाई के लिए कैलिफोर्निया गईं. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में Ph.D की. दिसंबर 2019 में उन्हें अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन (FCC) में चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर की पोस्ट पर अपॉइंट किया गया. मोनिषा इस पोस्ट पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं.
# राजकमल झा

जर्नलिस्ट राज कमल झा. फोटो- @rajkamaljha- ट्विटर
जर्नलिस्ट हैं, नॉवलिस्ट हैं. इस वक्त 'दी इंडियन एक्सप्रेस' के चीफ एडिटर हैं. पांच नॉवल लिख चुके हैं. जब IIT खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तभी कैंपस की मैगज़ीन के लिए काम करते थे. ग्रेजुएट होने के बाद प्रिंट जर्नलिज़्म की पढ़ाई करने कैलिफोर्निया गए. 1990 में वहां से एम.ए. की डिग्री ली. उसके बाद से ही वो पत्रकारिता की दुनिया में एक्टिव हैं.
# किरण सेठ

स्पिक मैके के संस्थापक किरण सेठ. फोटो- फेसबुक @DrKiranSeth
पेशे से मैथ्स के प्रोफेसर रहे, लेकिन शास्त्रीय संगीत बेहद पसंद था. इसलिए 1977 में SPIC MACAY (स्पिक मैके) की स्थापना की. जो युवाओं तक शास्त्रीय संगीत पहुंचाने पर फोकस करता है. IIT खड़गपुर से ग्रेजुएट होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए. वहां से लौटने के बाद उस्ताद नसीर से द्रुपद सीखने गए, कोलकाता. करीब एक महीने तक उनसे सीखा, फिर वापस दिल्ली आए. यहां IIT में पढ़ाना शुरू किया, लेकिन शास्त्रीय संगीत को लेकर दिलचस्पी बनी रही. फिर 1977 में स्पिक मैके की स्थापना की. 2009 में किरण सेठ को कला के क्षेत्र में योगदान के लिए 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया.
# जितेंद्र कुमार

जितेंद्र कुमार, 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' फिल्म के अपने कोस्टार आयुष्मान खुराना के साथ. फोटो- इंस्टाग्राम jitendrak1
'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' वाले अमन त्रिपाठी, 'कोटा फैक्ट्री' वाले जीतू भैया. हां यही. उभरते शानदार एक्टर. IIT खड़गपुर से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन खुद ऐसा कहते हैं कि वो बहुत बुरे सिविल इंजीनियर हैं. खैर, हम जितेंद्र को कई वेब सीरीज़ में देख चुके हैं. 'दी वायरल फीवर' यूट्यूब चैनल के कई वीडियो में भी ये दिखे हैं. जब जितेंद्र IIT में थे, तब कई सारे नाटकों में पार्ट लेते थे, वहीं इनकी मुलाकात बिस्वपति सरकार से हुई, जिन्होंने बाद में जितेंद्र को TVF जॉइन करने बुला लिया. साल 2012 में. उसके बाद से ही जितेंद्र एक्टिंग की दुनिया में एक्टिव हैं.
# बिस्वपति सरकार

कई सारी वेब सीरीज़ में हमें हंसाने वाले बिस्वपति सरकार. फोटो- chhotathalaiva- इंस्टाग्राम
अब बात निकली है तो कर ही लेते हैं. वो 'पंचायत' सीरीज़ में जितेंद्र के किरदार को गांव जाने के लिए मनाने वाला उसका दोस्त याद है? हां वही हैं बिस्वपति सरकार. IIT खड़गपुर ग्रेजुएट हैं. राइटर, डायरेक्टर, एक्टर हैं. TVF के कई वीडियो में कॉमिक एक्ट करने के लिए फेमस हैं. शुरुआत में एक फेमस पत्रकार का रोल किया था, बड़ी तारीफ मिली थी. 'TVF पिचर्स',. 'शुरुआत का इंटरवलट', 'इमैच्योर' में दिख चुके हैं.
# बिस्वा कल्याण रथ

'प्रीटेंशियस मूवी रिव्यू' वाले बिस्वा कल्याण रथ. फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट.
लिस्ट में हैं, मतलब IIT खड़गपुर से ग्रेजुएट हैं. 2012 में बायो-टेक्नोलॉजी में IIT खड़गपुर से डिग्री ली, फिर ग्राफिक डिज़ाइनिंग और एडवर्टाइज़मेंट की फील्ड में काम किया. लेकिन स्टैंड-अप कॉमेडी करना पसंद था, इसलिए 2014 में जॉब छोड़ी और फुल टाइम कॉमेडियन बन गए. 'प्रीटेंशियस मूवी रिव्यू' याद है, जिसमें कई सारी फिल्मों का बड़ा मज़ेदार रिव्यू दिया जाता था? हां, तो उसमें जो रिव्यू देते थे, उनमें से एक बिस्वा थे, दूसरे कनन गिल थे. मूवी रिव्यू के वीडियो काफी तेज़ी से वायरल हुए और बिस्वा को नई पहचान मिली.
तो ये 10 ऐसे नामी लोग हैं, जो IIT खड़गपुर से पढ़े हुए हैं और अपनी-अपनी रुचि वाले फील्ड में झंडे गाड़ रहे हैं.
वीडियो देखें: COVID-19 के बाद बॉलीवुड में ये 10 जबर फिल्में बनाने जा रही हैं