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IC 814: The Kandahar Hijack - सीरीज़ रिव्यू

IC 814: The Kandahar Hijack के बहाने आप महीनों से प्लान कर रहे सोशल मीडिया ब्रेक को ले सकते हैं. कुलमिलाकर ये देखी जानी चाहिए.

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ये सीरीज़ 29 अगस्त को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई थी.

IC 814: The Kandahar Hijack

Director: Anubhav Sinha 

Cast: Naseeruddin Shah, Pankaj Kapur, Vijay Varma, Manoj Pahwa

Rating: **** (4 Stars)

Netflix पर Anubhav Sinha की सीरीज़ IC 814: The Kandahar Hijack रिलीज़ हुई है. Anubhav Sinha ने Trishant Srivastava के साथ मिलकर शो को रचा है. अनुभव ही इसके डायरेक्टर भी है. कहना गलत नहीं होगा कि साल 2024 खत्म होने पर साल की बेस्ट वेब सीरीज़ वाली लिस्ट में इस शो की जगह ज़रूर होने वाली है. राइटिंग, एक्टिंग, सिनेमैटोग्राफी, साउंड से लेकर डायरेक्शन, हर पहलू पर जमकर मेहनत हुई है, और वही स्क्रीन पर ट्रांसलेट होती हुई दिखती भी है. 

IC 814 इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट का नाम था. 24 दिसम्बर 1999 की शाम को इस फ्लाइट ने काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़ान भरी. लेकिन इसे पांच आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था. उसके बाद सात दिनों तक लोगों को बंधक बना कर रखा गया. भारतीय सरकार उन लोगों को घर कैसे ला पाई, उसी घटना पर ये शो आधारित है. ‘IC 814’ एक उम्दा थ्रिलर है. प्लेन हाईजैक होने के बाद की टेंशन, वो डर का माहौल आपको बांध कर रखता है. जबकि एक गूगल सर्च से आप पूरी कहानी पता कर सकते हैं. ये शो सिर्फ उस कहानी को जस-का-तस दिखाने के बारे में नहीं था. अगर ऐसा होता तो मेकर्स इसे चीप थ्रिलर बनाकर व्यूज़ बटोर लेते. लेकिन उन्होंने अपने किरदारों और उनकी दुनिया में इंवेस्ट किया. उन्हें इतिहास के पात्रो की बजाय हम-आप जैसे इंसानों की तरह देखा. यही वजह है कि यहां कोई लार्जर दैन लाइफ हीरो नहीं. 

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भारी-भरकम कास्ट में भी विजय अपना काम दर्ज करवाते हैं. 

कोई इंसान सही करना चाहता है लेकिन डर के मारे उसके पांव जम जाते हैं, वो खुद से बड़ा काम नहीं कर पाता. पर ऐसे में आप उसे दुत्कारते नहीं, ना ही उसे जज करते हैं. सात दिन तक यात्रियों को बंधक बनाकर रखा गया. शुरू में वो रोते, चीखते, बिलखते हैं. लेकिन उनकी ज़िंदगी सातों दिन सिर्फ इसी काम तक सीमित नहीं रहती. ज़िंदगी आगे बढ़ती है. हम देखते हैं कि एक पिता अपने डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे बेटे की तरफ नज़र उठाकर भी नहीं देखा. लेकिन पांचवे या छठे दिन वो उसके सिर पर हाथ सहलाता है. केबिन क्रू में एक महिला बस अपने पिता की खैरियत जानना चाहती है. कोई हालात की फ्रस्ट्रेशन इस बात से निकाल रहा है कि उसे बिज़नेस क्लास में बैठने क्यों नहीं दिया जा रहा. 

किसी भी कहानी की पहली बुनियाद पड़ती है लेखन के लेवल पर. उस केस में यहां बुनियाद को अच्छे से भरा गया है. कुलमिलाकर शो की राइटिंग बहुत सॉलिड है. इस कहानी में कई सारे ट्रैक एक साथ चलते हैं. जैसे काठमांडू में इंडियन एम्बेसी के अधिकारी अपनी जांच में लगे हुए हैं. फ्लाइट में कैप्टन अपने विवेक का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. एक अखबार की रिपोर्टर और संपादक इस द्वंद में हैं कि जनता और देश के प्रति आपकी क्या ज़िम्मेदारी है. उधर RAW, IB और विदेश मंत्रालय ये समझने की कोशिश कर रहा है कि चूक की ज़िम्मेदारी कौन लेगा. इन सभी ट्रैक्स के बीच सही बैलेंस बनाकर रखा. कहीं भी ये नहीं लगता कि किसी एक की कहानी दूसरे पर ओवरलैप कर रही हो. हर ट्रैक पर इतना इंवेस्ट किया कि उन पर अलग से फिल्म या सीरीज़ बन जाए. 

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शो की राइटिंग इसकी सबसे बड़ी स्टार है.

अच्छी राइटिंग का एक और उदाहरण बताते हैं. शो के डायलॉग बहुत क्रिस्प है. गैर-ज़रूरी ढंग से शब्द ज़ाया नहीं किए. जैसे अंत में सब कुछ सही हो जाता है, उसके बाद आतंकवादियों से नेगोशिऐट करने वाले अधिकारी खड़े हैं. उनमें से एक कहते हैं, 

So We Won. 

बगल से सवाल आता हैं, Did We?

फिर कोई कहता है, We Fought. 

फिर एक सवाल, Did We?

मात्र नौ शब्दों में आप मेकर्स का पूरा टेक समझ जाते हैं. राइटिंग टीम ने सबटेक्स्ट का भी कायदे से इस्तेमाल किया है. सबटेक्स्ट वो टेक्नीक है जिसके ज़रिए आप किसी एक चीज़ के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन आपका मतलब बिल्कुल अलग है. जैसे ‘IC 814’ में आतंकवादी प्लेन को हाईजैक करने के बाद उसे अमृतसर लेकर जाते हैं. उधर RAW के चीफ को याद आता है कि पंजाब पुलिस के DGP प्रभजोत उनके दोस्त हैं. तब एक डायलॉग आता है, कि 'प्रभजोत चेस बहुत अच्छा खेलता है. आखिरी मोमेंट पर बाज़ी बदल देता था’. यहां प्रभजोत के चेस स्किल्स की बात नहीं हो रही है. इस बात में सबटेक्स्ट ये है कि प्रभजोत बाज़ी पलट सकते हैं, आतंकवादियों को पकड़ सकते हैं. ये डायलॉग पीक टेंशन वाले माहौल में आता है, जब दर्शक और यात्री दोनों खुद को असहाय पाते हैं. जबकि दर्शक कहानी जानते हुए भी खुद को एंगेज्ड पाता है. 

शो की कास्ट इसे देखने की एक और बड़ी वजह है. नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, कंवलजीत सिंह, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा, अरविंद स्वामी, आदित्य श्रीवास्तव और दिबयेन्दु भट्टाचार्य जैसे कलाकार एक स्पेस में हैं. हाईजैकर्स से डील करने की कोशिश कर रहे हैं. इन एक्टर्स को एक साथ देखना किसी जुगलबंदी की याद दिलाता है. जहां हर कोई सिंक में एक धुन बजा रहा है. कोई भी ये नहीं सोच रहा कि मुझे पर कैमरा है, खुद को चमका लेना चाहिए. वन फॉर ऑल, ऑल फॉर वन वाला ऐटिट्यूड है. यही अनुभवी और सिक्योर एक्टर्स की निशानी है. उनके अलावा विजय वर्मा ने फ्लाइट कैप्टन देवी शरण का रोल किया है. विजय अपने किरदार का पद और उसके साथ आने वाली ज़िम्मेदारी को समझते हैं. खुद की लय को इधर-उधर नहीं होने देते. दूर से देखने पर लगे कि वो साधारण बातें ही तो कर रहे थे, लेकिन यही एक अच्छे एक्टर की निशानी है. कि वो साधारण को सरल बना दे, उसे सुंदर बना दे. विजय ने यही किया है. 

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शुरुआती एपिसोड अपने थ्रिलर की वजह से बांध कर रखते हैं. 

पत्रलेखा फ्लाइट के केबिन क्रू में शामिल थीं. इतनी भारी-भरकम कास्ट में भी वो अपनी प्रेज़ेंस महसूस करवा पाती हैं. केबिन क्रू में उनकी साथी बनीं अदिति गुप्ता चोपड़ा ने भी अच्छा काम किया. यही बात आतंकी बने राजीव ठाकुर, हरमिंदर सिंह और दिलजॉन पर भी लागू होती है. ‘मुल्क’, ‘आर्टिकल 15’ और ‘अनेक’ जैसी फिल्मों पर अनुभव सिन्हा के साथ काम कर चुके सिनेमैटोग्राफर इवान मलीगन इस प्रोजेक्ट के लिए भी लौटे हैं. उनके कुछ फ्रेम्स ऐसे थे कि आप ध्यान खींचकर रखते हैं. लेज़ी काम नहीं हुआ. जैसे एक जगह गाड़ी के बाहर खड़े होकर कुछ अधिकारी बात कर रहे हैं. गाड़ी का दरवाज़ा खुलता है, एक अधिकारी उतरकर आगे किसी से बात करने जा रहा है. शॉट कट नहीं होता. दरवाज़ा खुलने से फ्रेम में जो जगह खाली हुई है, उसके बीच से आप उस दूर गए अधिकारी को किसी से बात करते हुए देख सकते हैं. कम्पोज़िशन को समझा है. किसी भी किरदार को बस ऐसे ही नहीं खड़ा किया कि चलो फ्रेम को भरना है. हर फ्रेम के पास कहने के लिए कुछ-न-कुछ है.   
आप लंबे समय से जो सोशल मीडिया ब्रेक चाहते थे, वो लेने का अब सही मौका है. ‘IC 814’ देखिए, क्योंकि देखी जानी चाहिए.   
                   
   
    
     
 

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