सुपरहीरो फिल्में, या सीरीज़. सुनने में ही फन किस्म की लगती हैं. आदर्शवादी हीरो होंगे. बच्चे जिनकी शक्लों वाली टी-शर्ट्स पहनेंगे. लड़कियों का उन पर क्रश होगा. उनकी मिसालें दी जाती हैं, कि बेटा ऐसा बनो. ये हीरो स्वार्थी नहीं होते, खुद से ऊपर लोगों को रखते हैं. ये एक स्टैंडर्ड टेम्पलेट है, सभी सुपरहीरोज़ के लिए. अब इन तमाम फैक्टर्स को उलट दीजिए. जो रिज़ल्ट निकलेगा, उसे कहेंगे ‘द बॉयज़’. अमेज़न प्राइम वीडियो का ओरिजिनल शो.
द बॉयज़: छिछला सा लगने वाला वो सुपरहीरो शो, जो सोसाइटी की धोती खोल देता है
‘द बॉयज़’ को जस्ट अनदर सुपरहीरो शो नहीं कहा जा सकता. थोड़ा भी अटेंशन से शो देखेंगे, तो पाएंगे कि ये हमेशा से ही सोशियो-पॉलिटिकल कमेंट्री करता रहा है. अपने समय और व्यवस्था पर तीखी टिप्पणियां करता रहा है.
कुछ सुपरहीरोज़ हैं, मतलब कुल गिनती में सात. इसलिए उनकी टीम को सेवन कहा जाता है. इनको हेड करता है होमलैंडर, एक नियर परफेक्ट सुपरहीरो. दुनिया इनकी जबरा फैन है. ये लोगों को बचाते हैं, उनके साथ घुलते-मिलते हैं. सारे सुपरहीरो वाले काम करते हैं. लेकिन असली कैच तो यहीं है. पोस्टर पर चिपकाने के लिए ही ये लोग हीरो हैं. काम इनके विलेन्स से भी घिनौने हैं. तो फिर यहां हीरो कौन हुआ? एक और ग्रुप है, ‘द बॉयज़’. जो इन सुपरहीरो लोगों को एक्स्पोज़ करना चाहता है. दुनिया को दिखाना चाहता है कि ये कागज़ी हैं. कहने को भले ही बॉयज़ सुपरहीरोज़ के खिलाफ हैं, पर ये भी कोई संत नहीं. इनके पास ऐसा करने की अपनी-अपनी वजहें हैं. बॉयज़ को साथ लाने वाला है बिली बुचर.
2019 में शुरू हुए ‘द बॉयज़’ के अब तक तीन सीज़न आ चुके हैं. तीसरे सीज़न में एक एपिसोड है. जहां बुचर एक इवेंट में जाता है. बेसिकली ये एक गन सेमीनार इवेंट है. गार्ड गेट पर उसकी चेकिंग करता है. चेकिंग के दौरान उसके कोट की पॉकेट से गन मिलती है. गार्ड उसे हाथ में लेता है और कहता है,
Nice Piece.
अच्छी बंदूक है. इतना कहकर गार्ड बुचर को बंदूक के साथ अंदर जाने देता है. जैसे कोई बड़ी बात नहीं. 03 जून 2022 की तारीख को मैंने ये एपिसोड देखा. ये सीन देखकर ठीक उससे 10 दिन पहले की घटना याद आ गई. जब अमेरिका के टेक्सैस शहर में एक लड़के ने स्कूल में फायरिंग कर दी थी. जिस वजह से 23 लोग मारे गए. ‘द बॉयज़’ का ये सीन अमेरिका के गन कल्चर और उससे उपजने वाली हिंसा पर बहुत कुछ कह जाता है. इसलिए ‘द बॉयज़’ को जस्ट अनदर सुपरहीरो शो नहीं कहा जा सकता. थोड़ा भी अटेंशन से शो देखेंगे, तो पाएंगे कि ये हमेशा से ही सोशियो-पॉलिटिकल कमेंट्री करता रहा है. अपने समय और व्यवस्था पर तीखी टिप्पणियां करता रहा है.
कुछ कारण बताते हैं, कि क्यों ऊपर से बचकाना लगने वाला ये शो गहरी बात कह जाता है.
# सब कुछ बिकाऊ है
‘द बॉयज़’ के क्रिएटर एरिक क्रिपकी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था,
मेरी मां सुपरहीरो फिल्में नहीं देखती, फिर भी समझती है कि सुपरहीरोज़ हर बॉक्स ऑफिस लिस्ट के टॉप पर हैं. वो हमारे टेलिविज़न पर हैं. उन्होंने पॉप कल्चर पर कब्ज़ा कर लिया है.
एरिक ने ये बात मार्वल के कॉन्टेक्स्ट में कही थी. उनके मुताबिक मार्वल असली है, उनके सुपरहीरोज़ असली हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है. जिन सुपरहीरोज़ को दुनिया पूज रही है, एरिक बस उन्हें अपने शो के ज़रिए वास्तविक दुनिया में ले आए हैं. सुपरहीरो फिल्में और उनके इम्पैक्ट पर राइट, लेफ्ट एंड सेंटर बहस हो चुकी हैं. ये बॉक्स ऑफिस पर क्या कोहराम मचा रही है, इस पर मार्टिन स्कॉरसेज़ी से लेकर फ्रांसिस फोर्ड कोपोला तक कुछ-न-कुछ बोल चुके हैं. कुछ समय पहले मार्वल की फिल्म ‘डॉक्टर स्ट्रेंज’ का सीक्वल आया था. तब न्यूयॉर्क के AMC एम्पायर 25 नाम के थिएटर ने फिल्म के एक दिन में 70 शोज़ चलाए. उस वक्त ये मामला गरमाया भी था कि इतनी स्क्रीन्स पर कब्ज़ा कर लेंगे तो इंडिपेंडेंट फिल्मों का क्या होगा. खैर, जैसा चल रहा है उस हिसाब से अभी बदलाव में काफी समय है. बाकी पॉप कल्चर पर सुपरहीरो इम्पैक्ट की ज़िम्मेदार मूल तौर पर दो कंपनियां हैं.
मार्वल और डीसी. ग्लोबल कॉमिक सीन को डॉमिनेट करने वाली कंपनियां. जिन्होंने हमें स्पाइडरमैन, आयरन मैन, बैटमैन और सुपरमैन जैसे तमाम पॉपुलर सुपरहीरोज़ दिए. पहले सिर्फ इन हीरोज़ की कॉमिक्स आती थीं. फिर गेम आने लगे. फ़िल्में आईं, टीवी शोज़ आए. और अब देखते ही देखते हर तरफ सिर्फ सुपरहीरोज़ हैं. भले ही हमें कोई सुपरमैन आसमान में उड़ते दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन क्या वो हमारे हर तरफ नहीं. ‘स्पाइडर मैन: नो वे होम’ चाहे दुनिया में कितना भी भौकाल काटे, लेकिन उसकी कमाई जाएगी मार्वल, सोनी और डिज़्नी जैसी बड़ी कंपनियों के पास. क्योंकि इन कंपनियों की हिस्सेदारी है उसमें.
ठीक इसी तरह ‘द बॉयज़’ की सेवन को भी एक कंपनी चलाती है. शीशे की बड़ी बिल्डिंग वाला ऑफिस है उनका. आसपास की सभी इमारतों को हाइट का कॉम्प्लेक्स देती है. ये कंपनी है वॉट. जो अपने सुपरहीरोज़ की बारीक-से-बारीक चीज़ मैनेज करती है. वो किस चैरिटी इवेंट में जाएंगे, वहां क्या बोलेंगे, कैसे दिखेंगे, उन पर कितने ऐड बनेंगे, कैसी फिल्में बनेंगी. ज़ैक स्नाइडर और वॉर्नर ब्रदर्स के बीच ‘जस्टिस लीग’ को लेकर जो मतभेद हुए, ‘द बॉयज़’ में उसे भी प्रॉपर फुटेज मिली. कि कैसे वॉट को सेवन पर बनाई फिल्म नहीं पसंद आई. फिर नए डायरेक्टर को लाया गया, और फिल्म पर कांट-छांट हुई.
ये तो अपने हीरोज़ की पब्लिक इमेज दुरुस्त करने की बात थी. वॉट इससे दो कदम आगे भी करता है. डिमांड और सप्लाय का खेल रचता है. एक लिक्विड है, कम्पाउंड वी. सुपरहीरो बनना है, तो इसका एक इंजेक्शन है ज़रूरी. वॉट इसी की मदद से सुपरहीरो बनाती है. और सिर्फ सुपरहीरो नहीं, कम्पाउंड वी से सुपर टेररिस्ट भी बनाये जाते हैं. यानी वायरस और एंटी वायरस, दोनों हम देंगे. क्योंकि हम एक्सपर्ट हैं. आपने किसी बच्चे को अपने अंडर लिया. उसे कम्पाउंड वी दिया. उसे लैब में रखकर एक्सपेरिमेंट किए, कि आपका प्रोडक्ट सफल होगा या नहीं. एक नॉर्मल परवरिश से पूरी तरह जुदा रहा ये बच्चा बड़ा होता है. आप इसकी पावर्स के बारे में जानते हैं. उनके मुताबिक उसकी ब्रांडिंग होती है. उसे एक सुपरहीरो नुमा नाम दिया जाता है. बैकस्टोरी ईजाद कर ली जाती है. जैसे दूसरी दुनिया से आया है. यहां के लोगों ने पाला जैसी फलां-फलां टाइप बातें.
प्रोडक्ट की तरह ट्रीट होता आया ये बच्चा ज़ाहिर तौर पर डिसकनेक्टेड है. डिसकनेक्टेड है खुद से, अपनी फीलिंग्स से. और इसे आपने दुनिया का हीरो बना दिया. अब अगर ये उत्पात मचाएगा, तो उसकी सफाई कौन करेगा. जवाब है आप. आपने इतना पैसा बहाया है उस पर, उसे ज़ाया थोड़े होने देंगे. उसे दुनिया के लिए हीरो बने रहने देंगे. इस बीच लोग मरेंगे, तो आप पैसा देकर बात दबाएंगे. मीडिया को अपने हाथ में रखेंगे. लेकिन किसी भी तरह अपनी इस इंवेस्टमेंट पर सॉलिड रिटर्न लेकर रहेंगे. इस पूरी इक्वेशन में आप शब्द वॉट के लिए इस्तेमाल हुआ है.
‘द बॉयज़’ हर मुमकिन सिनेरीयो के एक्स्ट्रीम एंड पर जाकर सोचता है. यही उसने कैपिटलिज़म के साथ किया. कि कोई कंपनी अपनी मनी मेकिंग मशीन को बचाए रखने के लिए बाकी चीज़ों को कितना छोटा आंक सकती है.
# एक अमेरिका हम सब में है
साल 2020. जब ‘द बॉयज़’ का दूसरा सीज़न आया. और अचानक ही इसके इर्द-गिर्द तगड़ा बज़ बनने लगा. शो को लेकर कॉलम, एडिटोरीयल पीस लिखे जाने लगे. उस साल एक नई सुपरहीरो ने सेवन को जॉइन किया था. स्टॉर्मफ्रंट, लोगों से मिलनसार होने वाली हीरो. समय के साथ चलने वाली. वो हीरो जो इस पूरे हल्ले की वजह भी थी. स्टॉर्मफ्रंट को देखते हुए शो की ऑडियंस को समझ आने लगा कि ऑल इज़ नॉट वेल. इमेज उसकी चमकी हुई सफेद थी, लेकिन उसकी आइडियोलॉजी उतनी ही मैली.
नॉन व्हाइट रेसेज़ को दोयम दर्जे का मानती. ‘बाहरी’ लोगों को खतरा बताती. अमेरिका को फिर से महान बनाने की बात करती. वो भी एकदम खुले में. ऊपर से उसके साथ होमलैंडर था. वो होमलैंडर, जो अपने लबादे की जगह अमेरिका का झंडा पहनता. देशभक्ति का चलता-फिरता मॉडल. टीवी न्यूज़ डिबेट से लेकर इंस्टाग्राम लाइव तक, हर जगह स्टॉर्मफ्रंट को सपोर्टर मिलने लगे. ये नए फैन्स उसने बनाये नहीं थे. इनके अंदर ऐसी भावनाएं पहले से मौजूद थी. बस स्टॉर्मफ्रंट ने आकर कंफर्मेशन दे दी. कि कोई है ताकतवर, जिसकी सोच आप जैसी ही है. बस फिर अंदर के ज़हर को बाहर उगलने से क्या डरना.
ऐसे माहौल में फिर दो तरह के लोग होते हैं. एक जिनका प्रिविलेज उन्हें अलाउ करता है कि इसे इग्नोर कर सकें. दूसरा जिन पर इसका असर पड़ने लगता है. शो में दूसरे टाइप वाले लोगों का एक गहरा एग्ज़ाम्पल मिलता है. एक एपिसोड की शुरुआत में हमारा परिचय एक नॉर्मल लड़के से होता है. उसके बेडरूम में स्टॉर्मफ्रंट के पोस्टर लगे हैं. अपने दिन की शुरुआत करता है. उसके हर तरफ टीवी और रेडियो पर स्पीच सुने जा सकते हैं, कि कैसे सुपर टेररिस्ट अमेरिका पर हमला कर देंगे, कि कैसे गैरकानूनी रूप से अप्रवासी अमेरिका के बॉर्डर्स में घुसे जा रहे हैं, देश की स्पिरिट को मलिन कर रहे हैं. ये लड़का अपनी क्लास जाता, घर के पास वाले स्टोर पर जाता, छोटी-मोटी चीज़ें खरीदता. जहां का ओनर श्वेत नहीं था.
यही उस लड़के का डेली रूटीन रहता. फिर एक दिन इसमें चेंज आता है. वो उठता है, स्टोर में जाता है. जिस स्टोर ओनर से अब तक सामान खरीद रहा था, हंसकर बातें करता था, उस पर शक होता है. बिना ज्यादा सोचे स्टोर ओनर पर गोलियां चला देता है. उसे मार डालता है, शायद ये सोचकर कि अपने देश के लिए कुछ महान काम कर रहा है. इस लड़के को कोई नाम नहीं दिया गया, न ही उसकी कोई खास वेशभूषा थी. मतलब उसके लिए आप नहीं कह सकते कि ये ऐसा या वैसा दिखता था. वो हम जैसा दिखता था. टीवी देखता, सोशल मीडिया पर घंटों अंगूठे चलाता, और जो दिखाया जाता, उसे कन्ज़्यूम करता जाता.
अल्पसंख्यकों के नाम पर नफरत फैलाकर राजनीति करने वालों पर ये एक स्टेटमेंट था. फिर चाहे आप स्टॉर्मफ्रंट में डोनाल्ड ट्रम्प के दीवार बनाने वाले स्पीच को ढूंढें या किसी और वर्ल्ड लीडर को. स्टॉर्मफ्रंट कि एक फैन फॉलोइंग खड़ी हो जाती है. जो कुछ समय बाद ढहने भी लगती है, जब सामने आता है कि स्टॉर्मफ्रंट के ताल्लुकात नाज़ियों से थे. इस पॉइंट पर होमलैंडर से लेकर हर कोई, उससे दूर होना चाहता है. इस सब हंगामे के बाद एक सीन आता है, जो सोचने पर मजबूर करता है. स्टॉर्मफ्रंट कहती है कि सब मेरे साथ थे, मेरी आइडियोलॉजी को मानते थे. लेकिन जैसे ही नाज़ी शब्द आया तो सब दूर हो गए.
‘द बॉयज़’ अपनी पॉलिटिकल कमेंट्री को लेकर सटल नहीं रहा. 13 जून 2024 से शो का चौथा सीज़न शुरू होने वाला है. फिर से बता दें कि आप इसे अमेज़न प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं.
# सब कुछ बिकाऊ है‘द बॉयज़’ के क्रिएटर एरिक क्रिपकी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था,मेरी मां सुपरहीरो फिल्में नहीं देखती, फिर भी समझती है कि सुपरहीरोज़ हर बॉक्स ऑफिस लिस्ट के टॉप पर हैं. वो हमारे टेलिविज़न पर हैं. उन्होंने पॉप कल्चर पर कब्ज़ा कर लिया है.एरिक ने ये बात मार्वल के कॉन्टेक्स्ट में कही थी. उनके मुताबिक मार्वल असली है, उनके सुपरहीरोज़ असली हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है. जिन सुपरहीरोज़ को दुनिया पूज रही है, एरिक बस उन्हें अपने शो के ज़रिए वास्तविक दुनिया में ले आए हैं. सुपरहीरो फिल्में और उनके इम्पैक्ट पर राइट, लेफ्ट एंड सेंटर बहस हो चुकी हैं. ये बॉक्स ऑफिस पर क्या कोहराम मचा रही है, इस पर मार्टिन स्कॉरसेज़ी से लेकर फ्रांसिस फोर्ड कोपोला तक कुछ-न-कुछ बोल चुके हैं. कुछ समय पहले मार्वल की फिल्म ‘डॉक्टर स्ट्रेंज’ का सीक्वल आया था. तब न्यूयॉर्क के AMC एम्पायर 25 नाम के थिएटर ने फिल्म के एक दिन में 70 शोज़ चलाए. उस वक्त ये मामला गरमाया भी था कि इतनी स्क्रीन्स पर कब्ज़ा कर लेंगे तो इंडिपेंडेंट फिल्मों का क्या होगा. खैर, जैसा चल रहा है उस हिसाब से अभी बदलाव में काफी समय है. बाकी पॉप कल्चर पर सुपरहीरो इम्पैक्ट की ज़िम्मेदार मूल तौर पर दो कंपनियां हैं.