साल 2017 में एक तेलुगु फिल्म आई थी. कतई विषैले आदमी के बारे में थी. नाम था Arjun Reddy. फिल्म खूब चली. सिनेमाघरों में हूटिंग, तालियां और सेंसिबिलिटी समेत सब पिटे. कहानी अर्जुन नाम के शख्स की थी. मेडिकल स्टूडेंट होता है. गुस्से पर नियंत्रण नहीं. लड़ाई-झगड़े करता फिरता है. प्रीति नाम की अपनी जूनियर पर मालिकाना हक समझता है. ‘अर्जुन रेड्डी’ ने सिर्फ ऑडियंस के बीच ही कोलाहल नहीं मचाया. सिनेमा भी इस पर स्टैंड लेने को मजबूर हुआ. ‘कुंबलंगी नाइट्स’ और Natchathiram Nagargiradhu जैसी फिल्मों ने अर्जुन के खिलाफ अपने ढंग से कड़ा स्टैंड लिया.
सनी देओल की वो फिल्म, जिससे कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे प्रेरित हुआ और खुद को पंडित कहलवाने लगा
किस्से सनी पाजी की फिल्म 'अर्जुन पंडित' के, जिसके एक सीन में जूही चावला की गर्दन कटते-कटते बची थी.
‘अर्जुन रेड्डी’ और फिर उसके रीमेक ‘कबीर सिंह’ पर जमकर हंगामा हो रहा था. मत बंट रहे थे. इस बीच ‘हमारे जमाने में तो’ वाली ब्रिगेड ने एंट्री मारी. उनका कहना था कि असली अर्जुन तो हमारे समय में था. बिल्कुल ज़हरीला इंसान. लड़की को छोटे कपड़े नहीं पहनने देता. उन्हें उसके सामने जला डालता. लड़की का बर्थडे मनाने के लिए उसे किडनैप करवा लेता. उसकी शादी के मंडप में ज़बरदस्ती घुस जाता. उसके दूल्हे से हाथापाई कर लड़की की मर्ज़ी के बिना उसे अपने साथ ले जाता. ये ‘अर्जुन पंडित’ का अर्जुन था. वो अर्जुन चल सका ताकि राधे और अर्जुन रेड्डी जैसे लोग दौड़ सकें.
‘अर्जुन पंडित’ को बनाया था राहुल रवैल ने. उन्होंने सनी देओल की पहली फिल्म ‘बेताब’ बनाई थी. उसके बाद दोनों ने मिलकर ‘अर्जुन’ बनाई. मुंबई शहर और उसकी असीम संभावनाओं के बीच पल रहे युवा की कहानी. इस फिल्म ने इम्तियाज़ अली समेत कई नामी फिल्ममेकर्स को प्रेरित किया. खैर, ‘अर्जुन’ के करीब 14 साल बाद राहुल और सनी ‘अर्जुन पंडित’ के लिए साथ आए. 20 अगस्त 1999 को ये फिल्म सिनेमाघरों में खुली. क्रिटिक्स ने फिल्म को खुलकर धोया. उसे कॉल आउट किया. उस समय की रिपोर्ट्स में ज़िक्र मिलता है कि फिल्म मुंबई में नहीं चली. लेकिन नॉर्थ में हाल ऐसा नहीं था. यहां फिल्म बहुतायत में देखी जा रही थी. अच्छा पैसा छाप रही थी. ‘अर्जुन पंडित’ को हिट करवाने में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों का बड़ा रोल था. इसी बेल्ट से आने वाले एक कुख्यात गैंगस्टर का फिल्म से क्या कनेक्शन था? कैसे फिल्म के सेट पर जूही चावला की गर्दन कटते-कटते बची थी? फिल्म से जुड़े ऐसे ही किस्सों के बारे में बात करेंगे.
# “कुछ इंच सिर उठाती तो मेरी पूरी गर्दन कट जाती”
‘अर्जुन पंडित’ के क्लाइमैक्स में एक्शन सीन है. गुंडे सनी और जूही चावला के किरदार की जान के पीछे पड़े हैं. सनी के किरदार अर्जुन को इसी चक्कर में कुछ गोलियां लग जाती हैं. हिंदी सिनेमा की आदर्श नारी की तरह जूही का कैरेक्टर निशा उसे एक ट्रेंच में ले जाती है. एक छोटी खाई के लिए ट्रेंच शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. यहां ये ट्रेंच था एक रेलवे पटरी के नीचे. इसकी ऊंचाई थी करीब तीन फीट. सनी देओल, जूही चावला और एक कैमरामैन को इस ट्रेंच में उतार दिया गया. सीन में होता ये है कि निशा गुंडों से बचाने के लिए अर्जुन को ट्रेंच में ले जाती है. और उसके बदन में धंसी गोलियां निकालने की कोशिश करती है.
कहानी में यहां तक जो घट रहा था उससे जूही अवगत थी. लेकिन तभी अचानक उनके सिर पर लाइट की मोटी बीम पड़ने लगी. नज़र ऊपर दौड़ाई तो देखा कि ट्रैक थर्रा रहा था. ट्रेन पूरी रफ्तार में भाग रही थी. जूही घबरा गईं. उन्हें मालूम नहीं था कि असल में ट्रेन चला दी जाएगी. उन्होंने कसकर सनी को पकड़ लिया. और गुज़रती ट्रेन के कोच गिनने लगीं. जूही ने एक इंटरव्यू में ये पूरा वाकया बताया. उन्हें लगा कि ट्रेन के कोच खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. वो बताती हैं कि वो लोग ज़रा सा भी हिल नहीं सकते थे. उन्होंने कहा कि मैं अगर अपना सिर कुछ इंच भी उठाती तो मेरी गर्दन कट जाती.
जूही बताती हैं कि उन्हें ट्रेन वाले हिस्से के बारे में जानकारी नहीं थी. अगर पहले से पता होता तो वो कतई ये सीन नहीं करतीं.
# यूपी के कुख्यात गैंगस्टर को ‘पंडित’ बनाने वाली फिल्म
‘सिनेमा और समाज पर उसका प्रभाव’. ये किसी बोर्ड एग्ज़ाम में पूछे जाने वाले निबंध का सवाल नहीं है. समय-समय पर इस टॉपिक पर बहस छिड़ती है. बस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाती. जावेद अख्तर जैसे दिग्गजों का कहना है कि समाज का सिनेमा पर प्रभाव पड़ता है. समाज दुरुस्त कीजिए, सिनेमा अपने आप अच्छा हो जाएगा. मनोज बाजपेयी कहते हैं कि फिल्में सिर्फ आपकी हेयरस्टाइल बदल सकती हैं. शायद ‘तेरे नाम’ को ध्यान में रखकर ये बात कही गई हो.
सिनेमा आपकी किसी कुंठा को बड़े परदे पर वैलिडेट करता है या नहीं, ये लंबी बहस का विषय है. भीड़ का पता नहीं लेकिन एक गैंगस्टर पर ‘अर्जुन पंडित’ का गहरा असर पड़ा था. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार यूपी के कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे को ये फिल्म बहुत पसंद थी. लोकल पत्रकार बताते हैं कि उसने 100 से ज़्यादा बार ये फिल्म देखी होगी. फिल्म में अर्जुन को पहले एक शरीफ आदमी की तरह दिखाया गया. वो एक प्रोफेसर होता है. गैंगस्टर बनने के बाद कोई उसे अर्जुन नहीं बुलाता. सब उसे पंडित कहते. विकास ने भी यही दोहराया. फिल्म के आधार पर उसके करीबी उसे पंडित पुकारने लगे. उसे ये अच्छा भी लगता.
बताया जाता है कि विकास लोगों को धमकाने के लिए फोन करता. और कहता कि पंडित बोल रहा हूं. नेता, पुलिसवाले और लोकल मीडियाकर्मियों के बीच वो इसी नाम से जाने जाना लगा. बता दें कि 10 जुलाई 2020 की तारीख को उत्तरप्रदेश पुलिस ने विकास को एक एंकाउंटर में मार गिराया था. उनके मुताबिक स्पेशल टास्क फोर्स विकास को उज्जैन से कानपुर ला रही थी. तभी बीच रास्ते में उनकी गाड़ी पलट गई और उसने भागने की कोशिश की. पुलिस ने बताया कि विकास ने उन पर गोलियां भी चलाई. इसी गोलीबारी में पुलिस ने उसे मार डाला.
# जब स्टार सिंगर के नाम पर फिल्म बेची गई
नब्बे का दौर. टेम्पो, चाय की टपरी और हर मोड़ पर उदित नारायण, कुमार सानू सुनाई पड़ते. इस बीच एक नया स्टार आया. पगड़ी बांधे. भांगड़ा करता. फिरंगी तो इस बंदे के म्यूज़िक पर दो दशक बाद बौराने वाले थे. अभी बारी इंडिया वालों की थी. दलेर मेहंदी का पहला एलबम ‘बोलो तारा रा रा’ रिलीज़ हुआ. पॉप कल्चर जब आम शब्द नहीं था, तब दलेर मेहंदी पॉप स्टार बन गए थे. उनका करिश्मा सिर्फ एक एलबम या गाने तक सिमट कर नहीं रह गया.
‘डर दी रब रब’, ‘हो जाएगी बल्ले बल्ले’ और ‘तुनक तुनक तुन’ ने धुआं उठा दिया था. शादियों में बिना इन गानों के बारात आगे नहीं बढ़ती थी. साल 1997 में अमिताभ बच्चन की फिल्म आई थी. ‘मृत्युदाता’ नाम से. फिल्म नहीं चली. अमिताभ की प्रोडक्शन कंपनी ABCL बर्बाद हो गई. फिल्म के नाम पर आग की तरह फैला तो दलेर का गाना ‘ना ना ना ना रे’. दलेर अब सर्टीफाइड स्टार बन चुके थे. ‘अर्जुन पंडित’ के मेकर्स भी दलेर नाम की इस लहर का फायदा उठाना चाहते थे.
फिल्म के लिए दलेर ने एक गाना गाया था ‘कुड़ियां शहर दियां’. उन्होंने जूही के साथ परफॉर्म भी किया. फिल्म से उनका सिर्फ इतना ही कनेक्शन था. ‘अर्जुन पंडित’ की रिलीज़ से पहले उसकी मार्केटिंग शुरू हुई. पोस्टर आए. सनी और जूही दिखे. लेकिन सिर्फ वही दोनों नहीं. पोस्टर में एक्टर्स जितने ही बड़े कद के दलेर भी थे. ये काफी लोगों के लिए हैरानी का सबब था. कि एक सिंगर को स्टार जितनी जगह दी है. मेकर्स दलेर के ज़रिए फिल्म बेचने की कोशिश कर रहे थे. ‘बॉर्डर’ के बाद सनी देओल की पिछली कुछ फिल्में पिट गईं. जूही का भी प्राइम टाइम नहीं चल रहा था. ऐसे में दलेर ही नए स्टार के तौर पर उभर रहे थे. तो मेकर्स ने उनको फिल्म के प्रोमोशन मटेरियल में इस्तेमाल करने में कोई हिचकिचाहट नहीं रखी. उनका प्रयोग कारगर भी साबित हुआ. ‘कुड़ियां शहर दियां’ किसी दहकती आग की तरह फैल गया. दलेर का म्यूज़िक दिमाग में भले ही नहीं लेकिन दिल में घर कर रहा था. इस गाने को आगे चलकर सनी की फिल्म ‘पोस्टर बॉयज़’ के लिए रीमेक भी किया गया था.
सनी के करियर का परिचय ‘घायल’, ‘घातक’, ‘बॉर्डर’ और ‘गदर’ जैसी बहुबड्डी फिल्मों से होता है. ‘अर्जुन पंडित’ महान फिल्म नहीं थी. लेकिन उसने सनी की बड़ी फिल्मों में अपनी जगह ज़रूर बनाई. हिंदी पट्टी के छोटे शहरों में आज भी अर्जुन पंडित लड़कों का हीरो है. उसके आक्रोश की नकल कर वो खुद में उतारने की कोशिश करते हैं. फिल्म कितनी भी प्राब्लेमैटिक रही हो लेकिन इसके असर को खारिज नहीं किया जा सकता.
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