The Lallantop

'लाल सिंह चड्ढा' की वो छह बातें, जो उसे 'फॉरेस्ट गम्प' से अलग बनाती हैं

किसी की पसंद और किसी की नापसंद 'लाल सिंह चड्ढा' में 'फॉरेस्ट गम्प' से अलग क्या है, जान लीजिए.

post-main-image
ये इतिहास के डॉ बड़े इवेंट गोधरा और परमाणु परीक्षण को छोड़ देती है.

आमिर खान की मच अवेटेड फ़िल्म 'लाल सिंह चड्ढा' सिनेमाघरों में प्रवेश पा चुकी है. इसको लेकर जनता में मिलाजुला रिस्पॉन्स है. पहले दिन 10.75 करोड़ की ओपनिंग भी आमिर के क़द को जस्टिफाई नहीं करती. ख़ैर, किसी की पसंद और किसी की नापसंद 'लाल सिंह चड्ढा' में 'फॉरेस्ट गम्प' से अलग क्या है? टॉम हैंक्स की फ़िल्म से क्या प्लस है और क्या माइनस है. आज इसी बात को कुछ बिंदुओं में समझने की कोशिश करेंगे. पर उससे पहले एक वैधानिक चेतावनी, यदि आपने 'लाल सिंह चड्ढा' अभी तक नहीं देखी है, तो आगे पढ़ने से पहले सतर्क हो जाएं. स्पॉइलर होने वाले हैं. आगे बढ़ने में रिस्क है. 

फ़िल्म में लाल के किरदार में आमिर 

#1. 'फॉरेस्ट गम्प' एक क्लियर फंडा लेकर चलती है कि फॉरेस्ट का अपना कोई ओपिनियन नहीं है. पूरी फ़िल्म में सिर्फ़ जेनी की क़ब्र पर वो अपना ओपिनियन देता है कि हो सकता है उसकी मां और कैप्टन डैन दोनों की बात सही हो. पर 'लाल सिंह चड्ढा' में लाल का किरदार इस क्लैरिटी को कहीं-कहीं ब्रेक करता है. हालांकि वो भी वही बातें बोलता है जो दूसरों ने उसे सिखाई-बताई हैं. पर कुछ-कुछ जगहों पर वो दूसरों की बातें इन्टरप्रेट भी करता है. उदाहरण के लिए जब मोहम्मद भाई से लाल कहता है, 'मजहब से कभी कभी मलेरिया फैलता है.' ये उसकी मां ने उसे नहीं बताया कि किस चीज़ से मलेरिया फैलता है, पर लाल को इतनी समझ है कि वो ख़ुद अपना मत दे सकता है. हां, फॉरेस्ट क्लाइमैक्स से पहले अपना ओपिनियन इस क्लैरिटी के साथ कहीं रखता नज़र नहीं आता है.

लाल की मां के किरदार में मोना सिंह 

#2. फॉरेस्ट गम्प को उसके मानवीय पक्ष के लिए याद किया जाता है. ये तर्क भी दिया जाता है कि इसी के चलते फॉरेस्ट गम्प को 1995 का ऑस्कर मिला, न कि पल्प फिक्शन को. 'लाल सिंह चड्ढा' भी ह्यूमन अप्रोच को अपनी मेन थीम बनाकर चलती है. कुछ-कुछ जगहों पर 'फॉरेस्ट गम्प' को कॉपी न करते हुए अपना नैरेटिव गढ़ती है. जैसे लाल की मां इसमें प्रिंसिपल के साथ सेक्स नहीं करती, बल्कि उसके घर का काम करने का प्रस्ताव रखती है. उसे अपना टिफिन ऑफर करती है. प्रिंसिपल टिफिन वापस कर देता है और बिना किसी फेवर के लाल को एडमिशन देने को तैयार हो जाता है. इस क्षण ये फ़िल्म 'फॉरेस्ट गम्प' के मानवीय पक्ष से एक बिलांग आगे निकलने की कोशिश करती है. संभव ये भी है कि ये मेकर्स की मजबूरी हो या स्ट्रेटेजिक मूव कि वो फ़िल्म के भारतीयकरण में सेक्स को इग्नोर करना चाह रहे थे. जो भी हो पर ये एक अच्छा ह्यूमन अप्रोच है.

#3. मानवीय पहलुओं की संवेदनशीलता में एक जगह और ये फ़िल्म 'फॉरेस्ट गम्प' को सरपास करती है. जब युद्ध क्षेत्र में घायलों को बचाते हुए लाल दुश्मन सेना के एक सिपाही को कंधे पर टांग लाता है. लाल को फ़र्क नहीं पड़ता कि वो किसे बचा रहा है. उसे सबको बचाना है. उसमें एक भोलापन है. किसी तरह का छल नहीं है. मानवता उसके लिए किसी भी देश से ऊपर है.

घायलों को बचाकर युद्ध क्षेत्र से दूर ले जाते आमिर

#4. 'लाल सिंह चड्ढा' ने 'फॉरेस्ट गम्प' के मानवीय पहलू को ठीक ढंग से पेश किया है. पर ये टॉम हैंक्स की फ़िल्म जितना पॉलिटिकली बोल्ड नज़र नहीं आती. फॉरेस्ट कई बार प्रेजिडेंट से मिलता है और बात करता है. लाल एक बार भी बात नहीं करता. 'फॉरेस्ट गम्प' एक समय पर पॉलिटिकली बोल्डनेस की हद पार कर जाती है. जब फॉरेस्ट प्रेसिडेंट को पैंट उतारकर गोली लगने की जगह दिखाने लगता है. पर आमिर की फ़िल्म में मेकर्स ऐसा कुछ अटेम्प्ट करने से बचे हैं. संभव है कि भारत को उन्होंने राजनीतिक रूप से अमेरिका जितना परिपक्व न समझकर ऐसा किया हो.

#5. 'फॉरेस्ट गम्प' में जेनी के किरदार को ढंग से एक्सप्लोर नहीं किया गया था. बस हिंट देकर चीज़ें छोड़ दी गई थीं. पर ये फ़िल्म अपने महिला किरदार को और ज़्यादा एक्सप्लोर करती है. रूपा के किरदार का फ़िल्म में एक अलग ट्रैक चलता है. उसके ज़रिए मूवी इंडस्ट्री के अंडरवर्ल्ड कनेक्शन को एक्सप्लोर करती है. पुरुष और महिला के पब्लिकली न्यूड होने की तुलना करती है. पर अच्छी बात ये है कि बिना वोकल हुए तुलना करती है. यानी ऑडिएंस की स्पून फीडिंग नहीं करती.

#6. ये फ़िल्म 'फॉरेस्ट गम्प' की तरह भारतीय इतिहास को लाल की कहानी के साथ पिरोने की कोशिश करती है. इमरजेंसी हटने से लेकर अन्ना आंदोलन और मोदी सरकार तक लगभग अभी हिस्टोरिकल इवेंट्स को किसी न किसी तरीके से कवर करती है, पर गोधरा और परमाणु परीक्षण को छोड़ देती है.

ख़ैर, ये तो फ़िल्म को लेकर हमारे ऑब्ज़र्वेशन हैं. आपके कुछ अलग हो सकते हैं. कमेंट में बताने के लिए आप ७५ साल से स्वतंत्र हैं.
…………

फिल्म रिव्यू: 'लाल सिंह चड्ढा' आपको क्यों देखनी चाहिए?