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कैसे चुना जाता है ऑस्कर का विनर, क्या आप भी इसके लिए वोट कर सकते हैं?

RRR के गाने 'नाटू-नाटू' के नॉमिनेशन का प्रॉसेस जान लीजिए.

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पूरा प्रॉसेस है यहां

Oscars 2023 के विनर्स 13 मार्च को सुबह पता चल जाएंगे. बेस्ट पिक्चर से लेकर बेस्ट गाने तक सब अवॉर्ड मिलेंगे. भारतीयों की दिलचस्पी इस बार ऑस्कर में और ज़्यादा है. कारण है, इंडिया को मिले तीन नॉमिनेशन. ये नॉमिनेशन अवॉर्ड में बदलें, तब तो मज़ा आए. पर आपको पता है कि ऑस्कर अवॉर्ड के लिए वोटिंग कैसे होती है? बेस्ट पिक्चर का विनर कैसे चुना जाता है? नहीं पता! हम किसलिए हैं, बताए देते हैं.

# ऑस्कर के लिए वोट कौन करता है?

अकैडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइन्सेज वो ग्रुप है, जो ऑस्कर देता है. इसमें फिल्म इंडस्ट्री के करीब 10000 से ज़्यादा मेम्बर्स हैं. इनमें से लगभग 9600 वोट करने के लिए एलिजिबल हैं. पिछले एक दशक में वोट करने वालों की संख्या में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि बीते कुछ सालों में अकैडमी में कई महिला प्रोफेशनल्स को जगह दी गई. रंगभेद के बैरियर टूटे हैं. साथ ही पूरी दुनिया से कई फिल्मी आर्टिस्ट को वोटिंग के लिए आमंत्रित किया गया है. अकैडमी मेम्बर्स में से अधिकतर लोग यूएस से होते हैं. इस समय 40 के करीब अकैडमी के सदस्य इंडिया से हैं.

# अकैडमी के मेम्बर्स कौन लोग होते हैं?

अगर कोई पहले ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुका है, तो ये सेफ बेट होती है कि उन्हें अकैडमी का मेम्बर बनाया जाए. पर कई लोग इससे इनकार भी कर देते हैं. जैसे: 'ब्लैक पैंथर: वकांडा फॉरेवर' के डायरेक्टर Ryan Coogler. उन्हें बेस्ट ओरिजनल सॉन्ग 'लिफ्ट मी अप' लिखने के लिए नॉमिनेट किया गया है. अब यहां एक दिलचस्प बात है कि अकैडमी में कोई भी फिल्म का जानकार जाकर मेम्बर नहीं बन सकता है. इसके लिए कुछ क्राइटीरिया है. पहली बात तो मेम्बर फिल्म आर्टिस्ट होना चाहिए. दूसरी बात वो थिएटर में रिलीज हुई फिल्मों के प्रोडक्शन में जुड़ा रहा हो. अकैडमी में मेंबरशिप को 17 ब्रांचों में बांटा गया है.

# ब्रांचेज क्या होती हैं?

कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो ऑस्कर अवॉर्ड की कैटगरी के अनुसार ही ब्रांच बनाई गई हैं. 17 में से 16 कैटगरी आर्ट से जुड़ी होती हैं. 17वीं ब्रांच नॉन-टेक्निकल होती है. ऑस्कर वोटर्स में डायरेक्टर, सिनेमैटोग्राफर और ऐक्टर तो परिचित डेजिग्नेशन हैं, जिनको ब्रांच का हिस्सा बनाया गया है. इसके अलावा कास्टिंग डायरेक्टर, एक्सिक्यूटिव्स, प्रोड्यूसर्स, मार्केटिंग और पब्लिक रिलेशन की भी ब्रांच हैं. बड़ी संख्या उन लोगों की भी है, जो मौजूदा ब्रांचेज में फिट नहीं बैठते. ऐक्टिंग कैटगरीज को जो ब्रांच वोट करती है, वो अब तक की सबसे बड़ी ब्रांच है. उसमें लगभग 1300 मेम्बर हैं. एक कमाल बात ये भी है कि कास्टिंग डायरेक्टर, एक्सिक्यूटिव्स, मार्केटिंग और पब्लिक रिलेशन की वोटिंग ब्रांच तो है, पर इनकी अवॉर्ड के लिए कोई कैटगरी नहीं है.

# क्या आप भी मेम्बर बन सकते हैं?

बेसिकली अकैडमी का मेम्बर कोई भी बन सकता है. बशर्ते उसके पास फीचर फिल्म में काम करने का अनुभव हो. फिल्म क्रेडिट्स में उसका नाम हो. हर कैंडीडेट को पहले हर ब्रांच की एक्सिक्यूटिव कमेटी से अप्रूवल मिला हुआ होना चाहिए. फिर वो बोर्ड को सबमिट किया जाएगा. बोर्ड में हर ब्रांच से चुने गए तीन लोग होते हैं. इसके अलावा तीन चुने गए गवर्नर भी. एक बात और अकेडमी का मेम्बर बनने के लिए आप जिस ब्रांच से बिलॉंग करते हैं, उसके दो मेम्बर आपको स्पान्सर करें, ये भी ज़रूरी है. हालांकि फर्स्ट टाइम के नॉमिनीज को बिना स्पॉन्सरशिप के ही ऑटोमैटिक मेम्बरशिप मिल जाती है. कुछ लोगों को अकैडमी की तरफ से भी इनवाइट किया जाता है. अगर मल्टीपल ब्रांच के लिए इनविटेशन है, तो आपको खुद एक ब्रांच चुननी होगी. क्योंकि अकैडमी एक आदमी को एक ही ब्रांच का मेम्बर होने की इजाजत देता है. साउथ इंडस्ट्री के बड़े नाम सूर्या अकैडमी के मेम्बर हैं. उन्होंने इस बार वोट भी किया है.

# नॉमिनीज कैसे चुने जाते हैं?

आप सोच रहे होंगे. RRR के 'नाटू-नाटू' गाने को नॉमिनेशन मिला कैसे? तो सुनिए. हर मेम्बर सिर्फ अपनी ब्रांच की कैटगरी के लिए वोट करता है और साथ ही बेस्ट पिक्चर के लिए बिड करता है. जिन ब्रांच की कोई अपनी कैटगरी नहीं है, वो सिर्फ बेस्ट पिक्चर के लिए वोट करते हैं. कुछ कैटगरी में फाइनल राउंड की वोटिंग से पहले भी एक वोटिंग होती है जिसे हम शॉर्टलिस्ट होना कहते हैं. इसमें म्यूजिक, विजुअल एफ़ेक्ट, साउन्ड, मेकअप और हेयर स्टाइल शामिल हैं. इनके अलावा इन्टरनेशनल फीचर फिल्म, डॉक्यूमेंट्री फीचर और शॉर्ट फिल्म कैटगरी में भी पहले शॉर्टलिस्ट होने के लिए वोटिंग होती है. उसके बाद इन्हें नॉमिनेट किया जाता है. जैसा कि RRR को 2023 ऑस्कर अवॉर्ड्स में बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग कैटगरी में के लिए पहले शॉर्टलिस्ट किया गया और फिर नॉमिनेट. जिन कैटगरीज़ में शॉर्टलिस्ट नहीं है. उस ब्रांच के सभी सदस्य डायरेक्ट 5 फिल्मों के नॉमिनेशन के लिए वोटिंग करते हैं.

# इन्टरनेशनल फीचर फिल्मों को कैसे नॉमिनेट किया जाता है?

मानिए एक देश से एक पिक्चर भेजी गई. (हालांकि इंडिपेंडेन्ट एंट्री भी हो सकती है, RRR की तरह.) अकैडमी सभी ब्रांचेज के सदस्यों को इस इन्टरनेशनल फीचर की कैटगरी में वोट करने की अनुमति देता है. पर पीछे कुछ विवाद भी हुए, जिनमें कमीटीज का सहारा लिया गया. खैर, सदस्य फिल्में देखकर हर फिल्म को अपना स्कोर देते हैं. इसके जरिए फिल्में पहले शॉर्टलिस्ट की जाती हैं. फाइनल नॉमिनीज के लिए वो सदस्य ही वोट कर सकते हैं, जिन्होंने सभी पिक्चरें देखी हैं. शॉर्ट फिल्म और डॉक्यूमेंट्री कैटगरी का भी यही प्रॉसेस है. ऐसा ही कुछ प्रॉसेस भारत से नॉमिनेट हुई बेस्ट डाक्यूमेंट्री फीचर फिल्म 'ऑल दैट ब्रीद्स' और बेस्ट डाक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म 'द एलिफेंट व्हिसपरर्स' के लिए अपनाया गया होगा.

# कैसे चुनी जाती है बेस्ट फिल्म?

जब एक बार नॉमिनेशंस तय हो जाते हैं. तब बेस्ट पिक्चर के लिए प्रेफ्रेंशियल बैलट होता है. पर ये भी बड़ा इंफ्लुएन्शियल मामला है. वोटर्स नॉमिनीज को मोस्ट से लीस्ट फेवरेट फिल्म के लिए रैंक करते हैं. मानिए कि पांच फिल्में नॉमिनेटेड हैं, तो सबसे ज़्यादा फेवरेट को मिलेगा 1 नंबर का रैंक और सबसे कम फेवरेट को 5 नंबर का रैंक. अब जो फिल्म 'नंबर 1' के 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट पाती है, उसे ऑटोमैटिक बेस्ट पिक्चर का अवॉर्ड मिल जाता है. पर एक ही बार में 50 प्रतिशत अंक मिलना टेढ़ी खीर है. इसलिए होता ये है कि जिस फिल्म को सबसे कम 'नंबर 1' रैंक वाले वोट मिलते हैं. उस फिल्म को ऑटोमैटिकली दो नंबर पर डाल दिया जाता है, उन सदस्यों के नाम के आगे जिन्होंने इसे नंबर वन पिक किया था. यानी वोट रीडिस्ट्रीब्यूशन. यही प्रॉसेस चलता रहता है. और सबसे कम वोट पाने वालों को एलिमिनेट किया जाता रहता है. कई बार तीसरे और चौथे फेवरेट तक भी वोट रीडिस्ट्रीब्यूशन करने की नौबत आन पड़ती है. ये तब तक होता है, जब तक एक फिल्म को 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट नहीं मिलते. बेस्ट पिक्चर के अलावा हर कैटगरी का चुनाव आसान होता है. क्योंकि वहां हर ब्रांच वोट नहीं करती. न ही प्रेफ्रेंशियल बैलट होता है. वहां तो सिर्फ वन वोट पर कैटगरी का मामला है. यानी एक ही फेवरेट चुनना है. कहने का मतलब है नॉमिनेशन के बाद भी एक वोटिंग होती है. इसमें सभी ब्रांच अपनी कैटगरी में वोट करके विनर का चुनाव करती हैं.

# ऑस्कर फिल्मों के लिए कैम्पेन क्यों होते हैं?

शॉर्टलिस्ट और नॉमिनेट होने से पहले भी किसी फिल्म के लिए असली चैलेंज कुछ और होता है. पहली चुनौती होती है, यूएस और दुनियाभर में फैले अकैडमी मेंबर्स तक ये बात पहुंचाना कि फिल्म ऑस्कर की रेस में है. दूसरी चुनौती होती है, उन सभी सदस्यों को अपनी फिल्म दिखाना, ताकि वो उन्हें वोट करें. हॉलीवुड फिल्मों के लिए भी ये बहुत मुश्किल प्रॉसेस होता है. मगर जो फिल्में यूएस में ब्लॉकबस्टर हो जाती हैं या फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड जीत जाती हैं, वो आसानी से अकैडमी के मेंबर्स का ध्यान खींच लेती हैं. इसलिए उनके अवॉर्ड जीतने के चांस बढ़ जाते हैं. ऐसा ही कुछ RRR ने गोल्डन ग्लोब जीतकर किया है. इसलिए उसके अवॉर्ड जीतने चांसेज अन्य भारतीय फिल्मों से ज़्यादा हैं. खैर, इसके अलावा एक प्रमोशनल कैंपेन शुरू करना पड़ता है. फिल्म को मजबूती से प्रमोट करना पड़ता है. ताकि ये फिल्म अकैडमी के सदस्यों तक पहुंचे. मेंबर्स को दिखाने के बाद आप बस ये उम्मीद कर सकते हैं कि उनको आपकी फिल्म पसंद आ जाए. पहले खबर थी कि RRR ने इस कैम्पेनिंग में लगभग 50 करोड़ रुपए खर्चे हैं. पर बॉलीवुड लाइफ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक राजामौली ने ऑस्कर कैम्पेन में 80 करोड़ इन्वेस्ट के किए हैं.

हमने अकैडमी अवॉर्ड में वोटिंग का बहुत लंबा और जटिल प्रॉसेस आपको समझाने की कोशिश की है. एकाध गलती भी हो सकती है, इसके लिए माफ कर दीजिएगा. 

वीडियो: दूसरा ऑस्कर माने जाने वाले 'गोल्डन ग्लोब' में RRR ने हथियाए दो नॉमिनेशन