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भीड़ ने औरत को घसीटा, उसके माथे पर देशद्रोही लिखा और फिल्म बन गई

बॉबी देओल की कल्ट क्लासिक 'सोल्जर' के किस्से, जिसमें धर्मेंद्र की मर्ज़ी चलती तो सनी देओल होते.

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बॉबी देओल की हिट फिल्म 'सोल्जर' से जुड़े रोचक किस्से. फोटो - Cinestaan

सन 97 की बात है. मुंबई शहर. तारीख इस घटना में शामिल किसी भी पात्र को ठीक से याद नहीं होगी. खैर, धर्मेंद्र के घर के दरवाज़े पर दो लोग पहुंचे. दुबले-पतले. दूध से साफ सफेद कपड़ों में. यही कपड़े आगे जाकर उनकी पहचान बने. इन दोनों लोगों ने प्यार करने वाले शाहरुख के हाथों से लड़की को बिल्डिंग से फिंकवा दिया था. अक्षय कुमार और उनके दोस्तों को खून के आरोप में फंसा डाला था. अब्बास-मुस्तन की ये जोड़ी उस खास दिन धर्मेंद्र से चाय पर गप्पे लड़ाने नहीं पहुंची थी. वो तो उनके बचपन के हीरो थे. अपने हीरो के सामने बैठकर, उसकी आंखों में आंखें डालकर उससे बात करने का विचार ही मन में घबराहट पैदा कर देने वाला था. 

लेकिन उस दिन ये लोग धर्मेंद्र के लिए नहीं पहुंचे थे. उनके बड़े बेटे के लिए भी नहीं. जिसने काथिया के सातों भाइयों को साथ मारने की प्रतिज्ञा ली थी. आज ये आए थे देओल परिवार के राजकुमार के लिए. वो लड़का, जो अपने पिता और बड़े भाई की तुलना में अच्छा नाच लेता था. बॉबी देओल सिनेमा में डेब्यू कर चुके थे. बतौर वयस्क, पहली फिल्म ‘बरसात’ ने बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बौछार कर डाली थी. दूसरी फिल्म ‘गुप्त’ एक थ्रिलर थी. फिल्म की कहानी से लेकर उसका संगीत, सब आउट ऑफ इंडिया से इम्पोर्ट किया गया था. उसी फिल्म के गाने ‘दुनिया हसीनों का मेला’ के लिए बॉबी इतना नाचे कि उनकी लेदर पैंट पसीने से झमाझम हो गई. 

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घोसए पर शूट करते हुए बॉबी की टांग टूट गई थी. 

अब्बास-मुस्तन मसाला थ्रिलर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे. ये बात अलग है कि उनकी कहानियों की जननी हॉलीवुड फिल्में हुआ करती थीं. ये लोग नई फिल्म बनाने जा रहे थे. उसके लिए उन्हें चाहिए थे बॉबी देओल. देओल आवास में दोनों एंटर हुए. बॉबी से मिलने की इच्छा बताई. बॉबी आए लेकिन लड़खड़ाते हुए. उनकी एक टांग टूटी हुई थी. ये चोट दी थी उन्हें ‘बरसात’ ने. हुआ ये कि सनी देओल उनकी डेब्यू फिल्म को सुपरवाइज़ करना चाहते थे. उस चक्कर में उन्होंने खुद एक साल तक काम नहीं किया. राजकुमार संतोषी ‘बरसात’ बना रहे थे. शूटिंग पूरी हो गई थी. मगर सनी को कुछ खटक रहा था. उन्हें बॉबी की एंट्री हीरो माकिफ नहीं लग रही थी. भाई सनी के परामर्श पर दो सीन जोड़े गए. पहले सीन में बॉबी को टाइगर से लड़ना था. 

फिल्म की टीम इटली पहुंची. दूसरे सीन के लिए फिल्म यूनिट आई यूनाइटेड किंगडम के लेक डिस्ट्रिक्ट में. सनी चाहते थे कि उस लोकेशन पर बॉबी के कुछ शॉट्स लिए जाएं, जहां वो घुड़सवारी करते दिखें. बॉबी को घोड़े पर चढ़ा दिया गया. उनका घोड़ा दौड़ रहा था. अचानक से घोड़ा अनियंत्रित हो गया. एक दूसरे घोड़े से जाकर भिड़ गया. भीषण टक्कर हुई. बॉबी धम से ज़मीन पर आ गिरे. उनेक पैर की हड्डी टूट गई. ऑपरेशन हुआ. पैर में सपोर्ट के लिए रॉड लगाई जो आज तक मौजूद है. अब्बास-मुस्तन जब मिलने पहुंचे, तब बॉबी उस चोट से रिकवर कर ही रहे थे. उन्होंने धर्मेंद्र की मौजूदगी में अपनी फिल्म की कहानी सुनाई. बॉबी कहानी सुनकर उत्साहित थे. लेकिन धर्मेंद्र ने सुझाव दिया कि ये फिल्म सनी करें. वजह थी बॉबी की चोट. 

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अब्बास-मुस्तन की ‘सोल्जर’ से बॉबी देओल का स्टिल. 

अब्बास-मुस्तन अपने हीरो को सीधे मना तो नहीं कर सकते. पर मन मारकर फिल्म भी नहीं बनाना चाहते थे. उनकी कहानी के लिए बॉबी ही फिट बैठते थे. अपनी बात पर कायम रहे. बॉबी अब्बास-मुस्तन के साथ अपनी पहली फिल्म करने वाले थे. फिल्म थी 1998 में आई ‘सोल्जर’. उस साल आई सबसे बड़ी हिन्दी फिल्मों में से एक. अन्नू मलिक के म्यूज़िक से पिरोये गाने सदाबहार हो गए. हर कहानी को सुनाने का एक क्रम होता है. सिनेमा के कूल चाचा गोदार कह गए हैं कि Every film should have a beginning, middle and end. अभी आपने ‘सोल्जर’ का जो किस्सा पढ़ा, वो इस कहानी का मिडल था. इसकी शुरुआत और समापन से जुड़े किस्से भी बताएंगे. 

# भीड़ ने औरत को घसीटा, उसके माथे पर देशद्रोही लिखा और फिल्म बन गई 

जिस तरह अब्बास-मुस्तन बॉबी देओल से मिलने पहुंचे थे, ठीक उसी तरह कुछ महीने पहले उनसे भी एक आदमी मिलने आया था. फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुकात रखता था. हाई-हैलो हुआ. गर्म चाय के प्याले खाली हुए. वो आदमी एक ऑफर लेकर आया था. नाम था श्याम गोयल. ये सज्जन धर्मेंद्र की फिल्म ‘तहलका’ के लिए डायलॉग लिख चुके थे. अब वो अब्बास-मुस्तन के लिए कहानी लिखना चाहते थे. अब्बास ने Cinestaan.com के साथ ये किस्सा साझा किया. श्याम ने उन्हें पंजाब की एक घटना बताई. 

एक फौजी था. उस पर गद्दारी के आरोप लगे. उसकी पत्नी को गांववालों ने घर से बाहर घसीट कर निकाला. गुस्से में माथे पर गोद दिया, ‘मेरा पति देशद्रोही है’. इतनी बर्बरता पर भी लोग शांत नहीं हुए. उस औरत को गांव से बाहर निकाल दिया गया. वो दौर इंटरनेट का नहीं था. इसलिए मीडिया में ये खबर नहीं उछली. श्याम गोयल ने उस घटना से प्रेरित होकर अपनी कहानी लिखी थी. अब्बास-मुस्तन को भी ये आइडिया जंच गया. मगर उन्होंने अपनी फिल्म को सिर्फ इस एक घटना पर आधारित नहीं किया. साल 1995 में एक विचित्र घटना घटी थी. 17 दिसम्बर 1995 की वारदात है. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के ऊपर से एक प्लेन गुज़रा. उससे हथियार नीचे फेंके गए. 

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पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप केस में आजतक किसी को भी सज़ा नहीं हुई है. 

इस घटना का नाम पड़ा ‘पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप’. इस घटना में आनंद मार्ग का नाम आया. किम डेवी नाम के शख्स को मुख्य आरोपी बताया गया. लेकिन आज तक इस घटना में किसी को भी दोषी ठहराकर सज़ा नहीं दी गई है. ‘पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप’ ने लोगों और मीडिया में खासी सनसनी पैदा की थी. रणबीर कपूर की फिल्म ‘जग्गा जासूस’ की कहानी पर भी इसका इन्फ्लूएंस नज़र आता है. अब्बास-मुस्तन ने पंजाब की घटना और पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप को साथ मिलाया. और बनी ‘सोल्जर’ नाम की फिल्म. फिल्म में हम देखते हैं कि आर्मी से जुड़े कुछ लोग हथियारों की स्मगलिंग करते हैं. पंकज धीर का किरदार भी इसमें शामिल था. मगर उसे अपने साथियों की इस हरकत के बारे में कोई आइडिया नहीं था. वो अवगत होने पर विरोध जताता है. बदले में उसे मार डाला जाता है. ऊपर से उसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है. कि ये दुश्मनों को हथियार सप्लाई कर रहा था. 

राखी ने उनकी पत्नी का किरदार निभाया. उनके माथे पर भीड़ लिख देती है, ‘मेरा पति देशद्रोही है’. उनका बेटा बने बॉबी आगे अपने पिता का बदला लेते हैं. अब्बास-मुस्तन मानते हैं कि ये उनकी पहली ओरिजनल हिन्दी फिल्म थी. ऐसी फिल्म जिसकी कहानी किसी हॉलीवुड फिल्म से नहीं उठाई गई. हालांकि 1976 में आई ‘बारूद’ नाम की फिल्म को लोग ‘सोल्जर’ की प्रेरणा बताते हैं. सचिन भौमिक ने ‘बारूद’ का स्क्रीनप्ले कागज़ पर उतारा था. उन्होंने ही श्याम गोयल के साथ मिलकर ‘सोल्जर’ का भी स्क्रीनप्ले लिखा था.      

# “बॉबी देओल आया और अपने साथ तूफान लाया”

14 फरवरी को नेटफ्लिक्स पर ‘द रोमांटिक्स’ नाम की डॉक्यू-सीरीज़ रिलीज़ हुई. ये सीरीज़ यश चोपड़ा के सिनेमा और उनकी लेगेसी को सेलिब्रेट करती है. हम स्विट्ज़रलैंड का ज़िक्र सुनते हैं. कैसे यश चोपड़ा की फिल्मों ने उस देश के टूरिज्म को बूस्ट देने का काम किया. उतना तो नहीं मगर ठीक उसी तरह ‘सोल्जर’ ने ये काम ऑस्ट्रेलिया के लिए किया. फिल्म का एक बड़ा हिस्सा वहां शूट हुआ था. दूसरा बड़ा चंक शूट हुआ राजस्थान में. 

फिल्म का क्लाइमैक्स शूट होना था बीकानेर के रेगिस्तान में. ड्रामैटिक इफेक्ट देने के लिए अब्बास-मुस्तन चाहते थे कि रेत सर-सर कर उड़े. मौसम तो उनके हाथ में था नहीं. इसलिए ऐसा करने के लिए पंखों का इस्तेमाल करने का फैसला लिया. मुंबई से बड़े-बड़े पंखे बीकानेर ले जाए गए. सेट लग गया. पंखे तैयार थे. लेकिन राजस्थान की मोटी रेत को हवा में नहीं ले जा सके. अब्बास-मुस्तन की पूरी प्लैनिंग चौपट हो गई. उस दिन की शूटिंग का कोई हासिल नहीं निकला. फिल्म के हीरो बॉबी अभी सेट पर नहीं आए थे. जिस वक्त अब्बास-मुस्तन रेत से स्ट्रगल कर रहे थे, उस समय बॉबी दिल्ली में थे. बीकानेर आने की तैयारी कर रहे थे. 

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बॉबी की वजह से ‘सोल्जर’ का क्लाइमैक्स शूट करने का आइडिया मिल गया.  

अगले दिन वो बीकानेर आए. किसी बस या गाड़ी से नहीं. बल्कि हेलिकॉप्टर से. उनका हेलिकॉप्टर हवा में धूल के गुब्बार बनाते हुए ज़मीन पर आ टिका. बॉबी का आना था और अब्बास-मुस्तन की मुसीबत का हल मिल गया. धूल उड़ाने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया गया. प्रोड्यूसर रमेश तौरानी को मनाया गया. एक दिन का ब्रेक लिया. नए सिरे से पूरी प्लैनिंग की. शूटिंग के दिन हेलिकॉप्टर अपने पंख फड़फड़ाने लगा. ये सुनने में आसान लगे लेकिन यहां एक बड़ा कैच था. हेलिकॉप्टर की ऊंचाई ज़्यादा नहीं रखी गई . बस वो इतनी ही हाइट पर उड़ता कि कैमरा के फ्रेम में ना आए. अब्बास-मुस्तन जैसी फिल्म बनाने के लिए निकले थे, वो बन चुकी थी. उनकी मेहनत को जनता ने खूब पसंद किया. ‘सोल्जर’ सुपरहिट फिल्म बनी. बॉबी देओल और उनकी पार्टनरशिप की नींव रख दी. प्रीति ज़िंटा को उनकी पहली बड़ी कमर्शियल सक्सेस दिलाई. नाइंटीज़ वाली जनता को उनकी कल्ट क्लासिक कहलाए जाने वाली फिल्म दी.

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