तिहाड़ जेल के फांसीघर में हुई इस फांसी से पहले भी यहां कई दोषियों की मौत की सज़ा पूरी की गई है. इनमें से कई मामले काफी हाई प्रोफाइल रहे जिन्होंने सालों तक ख़बरों में जगह बनाई. उनमें से कुछ ये रहे:
1. रंगा और बिल्ला
इन दोनों पर दो बच्चों- गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा की हत्या का आरोप लगा था. गीता और संजय बहन-भाई थे. इनके पिता नेवी में ऑफिसर थे. बच्चे 26 अगस्त, 1978 को धौलाकुआं के ऑफिसर्स इन्क्लेव के अपने घर से ऑल इंडिया रेडियो के लिए निकले थे. लेकिन वहां नहीं पहुंचे. बाद में उनकी लाशें मिलीं. जांच के बाद रंगा-बिल्ला का नाम आया. बिल्ला मतलब जसबीर सिंह. इस मर्डर केस में उसका साथी था रंगा खुस, जिसका असली नाम था कुलजीत सिंह. रंगा पहले ट्रक ड्राइवर हुआ करता था, जो बाद में मुंबई में टैक्सी चलाने लगा था. 31 जनवरी, 1982 को इन दोनों को फांसी दी गई.

2. करतार सिंह और उजागर सिंह
विद्या जैन के मर्डर का मामला. विद्या जैन दिल्ली के मशहूर सर्जन नरेंद्र जैन की पत्नी थीं. 4 दिसंबर, 1973 को दिल्ली के डिफेन्स कॉलोनी में उनके घर के बाहर चाकू से गोदकर उनकी हत्या कर दी गई थी. डॉक्टर नरेंद्र जैन तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि के पर्सनल आई सर्जन थे. बाद में पता चला कि नरेंद्र जैन ने सुपारी देकर उजागर सिंह और करतार सिंह से विद्या का क़त्ल करवाया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में नरेंद्र जैन और उनकी कथित प्रेमिका चंद्रेश को उम्रकैद की सज़ा सुनाई. लेकिन उजागर और करतार को फांसी हुई. इन्हें 9 अक्टूबर, 1983 को फांसी पर लटकाया गया.

3. मकबूल भट
आज़ाद कश्मीर की मांग करने वालों का नेता था. नेशनल लिबरेशन फ्रंट नाम के संगठन की शुरुआत की थी इसने. ये पाकिस्तान से चलता था. भारत आकर इन लोगों ने अपने संगठन के लिए लोग जुटाने की कोशिश की थी. इस दौरान उनकी सिक्योरिटी अफसरों से मुठभेड़ हुई. इसमें CID अफसर अमर चंद की मौत हो गई. इसी मामले में श्रीनगर की एक अदालत ने अगस्त, 1968 में मकबूल भट और उसके साथियों को फांसी की सज़ा सुनाई थी.
मुजफ्फराबाद में इन लोगों को जेल में रखा गया था, जहां से सुरंग खोदकर ये और इसके साथी पाकिस्तान निकल गए थे. इस तरह फांसी की सजा उस समय नहीं हो पाई. 1976 में मकबूल भारत के बॉर्डर से घुसकर कश्मीर में आया, तो बैंक लूटने की कोशिश की. वहां धरा गया. उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी. उस पर कुछ होता कि कश्मीर लिबरेशन आर्मी नाम के संगठन ने लन्दन में रबीन्द्र म्हात्रे नाम के भारतीय डिप्लोमेट को अगवा कर लिया और मकबूल को छोड़ने की मांग की. मांग पूरी न होने पर रबीन्द्र को उन्होंने मार दिया. इसके बाद मकबूल की दया याचिका ख़ारिज हो गई. 11 फरवरी, 1984 को उसे फांसी दी गई.

4. सतवंत सिंह और केहर सिंह
31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी. सतवंत सिंह और बेअंत सिंह नाम के उनके दो बॉडीगार्ड ने उनके शरीर में 30 गोलियां उतार दी थीं. बेअंत सिंह को उसी वक्त अन्य सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया था. इस मामले में सतवंत सिंह और केहर सिंह को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी. केहर सिंह डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सप्लाई एंड डिस्पोजल में असिस्टेंट था. इंदिरा गांधी की हत्या का प्लान उसी ने सतवंत सिंह और बेअंत सिंह के साथ मिलकर बनाया था. उसको इस बात से नाराजगी थी कि इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना भेज दी थी, जहां खालिस्तान की मांग कर रहे भिंडरावाला और उसके साथी छुपे हुए थे. इस मुठभेड़ में अकाल तख्त को काफी नुकसान पहुंचा था. इसी के बाद इंदिरा गांधी की हत्या की गई. उनकी हत्या के बाद उत्तर भारत में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे. 6 जनवरी, 1989 को सतवंत सिंह और केहर सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

5. अफ़जल गुरु
13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए हमले के मामले में अफ़ज़ल गुरु को दोषी करार दिया गया था. इस हमले में जैश-ए-मोहम्मद के हथियारबंद आतंकी संसद में घुस आये थे. ऐसी गाड़ियों में बैठकर, जिन पर गृह मंत्रालय और संसद के स्टिकर लगे हुए थे. अन्दर घुसते ही उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी थी. वहां मौजूद सिक्योरिटी फोर्स और आतंकियों के बीच लगभग आधे घंटे तक फायरिंग हुई. किसी मंत्री या सांसद को कोई चोट नहीं पहुंची. लेकिन आठ सुरक्षाकर्मी और एक कर्मचारी की मौत हुई इस हमले में. 16 दूसरे लोग घायल हुए.
हमला करने वाले सभी पांच आतंकी मारे गए. 18 दिसंबर, 2002 को स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में अफ़ज़ल गुरु, शौकत गुरु और सैयद अब्दुल रहमान गिलानी को मौत की सजा सुनाई. मामला ऊपर गया. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपील में शौकत गुरु और गिलानी को बरी कर दिया. लेकिन अफ़ज़ल गुरु की मौत की सजा बरक़रार रखी गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी अफ़ज़ल की मौत की सज़ा को बरक़रार रखा. कई लोगों ने उसकी फांसी की सज़ा माफ़ कर देने की अपील की थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 9 फरवरी, 2013 को सुबह आठ बजे अफ़ज़ल गुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

तिहाड़ जेल में नौ केन्द्रीय जेलें हैं. यहां के फांसीघर में जब कोई फांसी
दी जाने वाली होती है, तो पूरी फैसिलिटी को लॉकडाउन में रखा जाता है. किसी भी कैदी को बाहर निकलने की इजाज़त नहीं होती.
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