Chitrangada Singh, Vikrant Massey और Sara Ali Khan की एक फिल्म आ रही है. नाम है उसका Gaslight. 31 मार्च को डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ होने वाली है. आज उसका ट्रेलर आया है. जैसा कि कहा गया है कि अधिकांश कहानियों में एक बात कॉमन होती है. उनकी शुरुआत में या तो कोई किरदार किसी जगह से जा रहा होता है या किसी जगह कोई नया किरदार आ रहा होता है. ‘गैसलाइट’ के ट्रेलर की शुरुआत में मीशा नाम का किरदार एक बड़े से राज भवन में आता है. सारा ने ये किरदार निभाया है.
क्या खतरनाक चीज़ होती है 'गैसलाइट', जिस पर अब सारा अली खान की फिल्म आ रही है?
'गैसलाइट' का एक मतलब तो होता है लालटेन, दूसरा मतलब जानने के लिए ये स्टोरी पढिए.

देखकर लगता है कि मीशा किसी राज परिवार से आती है. मीशा का स्वागत करती है रुक्मिणी, जो शायद उसकी सौतेली मां है. हवेली में आने के बाद मीशा का परिचय तरह-तरह के लोगों से होता है. इसमें विक्रांत मैसी का किरदार भी शामिल है, जो राजा साब के साथ काम करता था. एक पुलिसवाला भी मिलता है जिसका रोल राहुल देव ने किया. सब मिलते हैं बस राजा साब नहीं दिखते. राजा साब यानी मीशा के पिता. दिखते हैं तो ऐसे वक्त पर जब मीशा के आसपास कोई नहीं होता. रात के सुनसान अंधियारे में. मीशा ये बात किसी को बताती है तो कोई उस पर यकीन नहीं करता. उसके पिता कहां हैं. उनका फोन क्यों बंद है. ऐसे सवाल उसका सिर घूमा रहे हैं. इनके जवाब मिलेंगे भी या नहीं, यही फिल्म की कहानी है.
अगर आप फिल्म का ट्रेलर न भी देखें तो भी सिर्फ उसका टाइटल सुनकर एक हद तक कहानी क्लियर हो जाती है. साल 1944 से पहले ‘गैसलाइट’ शब्द का एक ही मतलब होता था. लालटेन को गैसलाइट कहा जाता था. फिर उस साल एक फिल्म आई. जॉर्ज क्यूकोर नाम के शख्स ने ये फिल्म बनाई थी. उसका टाइटल था ‘गैसलाइट’. फिल्म की मुख्य किरदार होती है पॉला. उसकी एक रिश्तेदार होती हैं. बहुत पैसे वाली. उनकी डेथ हो जाती है. वो गुज़रने से पहले अपनी वसीयत पॉला के नाम कर चुकी होती हैं. इस सब के साथ होता ये है कि पॉला को मिलता है एक लड़का. दोनों को होता है प्यार. शादी कर लेते हैं.
शादी के बाद पॉला अपने पति के साथ अपनी गुज़र चुकी रिश्तेदार के घर आकर रहने लगती है. शिफ्ट होने के कुछ दिन बाद ही अजीब घटनाएं घंटने लगती हैं. और सिर्फ पॉला के साथ. उसे कुछ दिखता है. लेकिन बाकी सब ऐसी बात को नकारते हैं. ये इतना बदतर हो जाता है कि पॉला खुद पर सवाल उठाने लगती है. कि क्या उसकी मानसिक स्थिति सही है. स्पॉइलर ये है कि पॉला बिल्कुल सही होती है. उसके आसपास के लोग ऐसा माहौल बना रहे होते हैं. जहां पॉला खुद की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाने को मजबूर हो जाए. इस फिल्म का असर इतना गहरा हुआ कि ‘गैसलाइट’ शब्द का मतलब पूरी तरह बदल गया. इस कदर भरमाना जिससे इंसान खुद को मानसिक रूप से अस्थिर समझने लगे, वो ‘गैसलाइट’ कहलाया जाने लगा. जैसे फिल्म में पॉला का पति उसे गैसलाइट कर रहा होता है. उसे धोखे में रख रहा था.
अब आते हैं हिंदी वाली फिल्म पर. ‘गैसलाइट’ का ट्रेलर माहौल तो बना देता है. देखने लायक ये होगा कि फिल्म अपने थ्रिलर वाले पक्ष को अच्छी तरह भुना पाती है या नहीं.
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