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मूवी रिव्यू: गैसलाइट

फिल्म एक मजबूत थ्रिलर बनना चाहती है मगर ऐसे लूपहोल छोड़ देती है, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

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1944 में आई हॉलीवुड फिल्म ने 'गैसलाइट' शब्द का मतलब बदल दिया था. फोटो - पोस्टर

गैसलाइट. एक अंग्रेज़ी शब्द. मतलब होता है किसी को इस तरह भरमाना कि वो वास्तविकता पर शक करने लगे. ये मानने पर मजबूर हो जाए कि उसके दिमाग के साथ कुछ गलत है. साल 1944 से पहले इस शब्द को लालटेन के लिए इस्तेमाल किया जाता था. फिर आई एक हॉलीवुड फिल्म. ‘गैसलाइट’ के नाम से. फिल्म की सेंट्रल कैरेक्टर को लगता है कि उसके आसपास कुछ अजीब घटनाएं घट रही हैं. उसके अलावा किसी को ये होते नहीं दिखता. ऐसे में वो खुद पर सवाल उठाने लगती है. लेकिन अंत में सच कुछ और ही निकलता है. 

ये फिल्म इतनी पॉपुलर हुई कि गैसलाइट शब्द का मतलब पूरी तरह बदल गया. किसी को इस तरह भरमाना कि वो खुद पर सवालिया निशान उठाने लगे, इसे गैसलाइट करना कहा जाता है. साल 2023 में इसी नाम से एक हिन्दी फिल्म आई है. सारा अली खान, चित्रांगदा सिंह और विक्रांत मैसी मुख्य भूमिकाओं में हैं. फिल्म को बनाया है पवन कृपलानी ने. ये फिल्म अपने नाम के साथ कितना न्याय करती है और एंगेजिंग थ्रिलर साबित होती है या नहीं, अब उस पर बात करेंगे. शुरुआत कहानी से. 

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1944 में आई वो हॉलीवुड फिल्म जिसने गैसलाइट शब्द का मतलब बदल दिया.  

# फिल्म की शुरुआत होती है सारा के किरदार मीशा से. वो एक बड़े राजघराने की बेटी है. लेकिन पिता से मनमुटाव के चलते पिछले 15 सालों से घर से दूर रह रही है. पिता की चिट्ठी मिलती है. वापस आने को कहते हैं. मीशा अपनी हवेली लौट आती है. लेकिन जिन्होंने उसे बुलाया था, उनका कोई निशान नहीं दिखता. उसकी सौतेली मां रुक्मिणी बताती हैं कि किसी काम से बाहर गए हैं. ठोस जवाब नहीं मिलता कि मीशा के पिता आखिर गए कहां. 

हवेली में काम करने वाले कपिल की मदद से वो सच तक पहुंचना चाहती है. वो कपिल जो राजा साहब के करीब तो था लेकिन उनकी निजी ज़िंदगी से कोसों दूर. इस दौरान मीशा के साथ अजीब चीज़ें घटने लगती हैं. उसके साथ-साथ ऑडियंस को भी क्लियर नहीं होता कि चल क्या रहा है. सच आखिर है क्या. 

# ‘गैसलाइट’ अपने टाइटल को जस्टिफाई करती भी है और नहीं भी. अपने पहले हाफ में फिल्म मीशा और ऑडियंस को भ्रम में डालने की कोशिश करती है. मीशा के आसपास जो कुछ भी घट रहा है, वो कौन कर रहा है. कैसे हो रहा है. आपका अटेंशन वहीं रहता है. लेकिन अगले हाफ में ये मामला घुमा देती है. इस पॉइंट पर सवाल आता है कि फिल्म आखिर किसे गैसलाइट करना चाह रही है. मीशा को या किसी और को. ये एक बड़ा लूपहोल था, जिसे फिल्म किसी भी पॉइंट पर नहीं भर पाती. 

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चित्रांगदा की परफॉरमेंस फिल्म में मैच्योर है. 

‘गैसलाइट’ एक एंगेजिंग थ्रिलर बनना चाहती है. कुछ हिस्सों पर आपकी एंटीसिपेशन बढ़ती भी है, ये जानने में कि अब क्या होने वाला है. मगर समस्या ये है कि ऐसे पल सिर्फ चुनिंदा बनकर रह जाते हैं. ‘गैसलाइट’ अपने कुछ जम्प स्केर सीक्वेंस को ठीक से इस्तेमाल कर पाती है. जहां किरदार रहस्यमयी वातावरण में खुद को पाता है और अचानक से कुछ घटता है. हॉरर फिल्मों में अंधेरे में भूत को अचानक से दिखाने के लिए भी आमतौर पर जम्प स्केर का ही इस्तेमाल होता है. ‘गैसलाइट’ इन मोमेंट्स से ऊपर नहीं उठ पाती. 

# दो घंटे के अंदर बनी ‘गैसलाइट’ के पास दिखाने के लिए बहुत कुछ था. लेकिन सीमित लेंथ के चलते ऐसा नहीं कर पाती. कुछ इमोशनल सीन्स जहां किरदार बॉन्ड करने की कोशिश करते हैं, उन्हें जल्दी-जल्दी में निकाल दिया गया. फिल्म इस समय की भरपाई अपने Whodunnit वाले पक्ष में करना चाहती है. मगर कर नहीं पाती. एक थ्रिलर फिल्म का प्रेडिक्टेबल होना उसे कमजोर फिल्म नहीं बनाता. हम सभी को एक गर्व महसूस होता है, जब हम मुख्य किरदार से पहले मिस्ट्री तक पहुंच जाएं. और फिर उसके वहां पहुंचने का इंतज़ार करें.

‘गैसलाइट’ आपको वो गर्व महसूस करने का मौका नहीं देती. ये अपने सबसे अच्छे पत्तों को बचाकर रखना चाहती है. उनके इर्द-गिर्द जिज्ञासा बनाने की कोशिश करती है. लेकिन फिर धम से लाकर उन्हें टेबल पर पटक देती है. सस्पेंस अपने हाथों खराब कर देती है. 

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फिल्म अपने सस्पेंस को सही से नहीं खोल पाती. 

# मीशा बनी सारा अली खान के लिए रेंज दिखाने का स्कोप था. मगर वो या तो खुद के किरदार को या तो अंडर प्ले करती हैं या फिर ओवर. एक बैलेंस वाली लाइन पर नहीं चल पातीं. फिल्म विक्रांत मैसी के किरदार कपिल को एक्स्ट्रीम एंड पर ट्रीट करती है. एक इमोशन दिया तो फिर उसी के अनुसार एक्ट करना. बस यहां खास बात है कि विक्रांत एक किस्म का पक्ष होने के बावजूद, उसे कंविंसिंग तरीके से निभाते हैं. 

चित्रांगदा की परफॉरमेंस यहां मैच्योर है. वो फिल्म में मीशा की सौतेली मां रुक्मिणी बनी हैं. हमारे सिनेमा ने सौतेली मां को लेकर ऐसी इमेज बना दी है कि सबसे पहला शक उसी पर जाए. ‘गैसलाइट’ के शुरुआत में भी कुछ ऐसा ही होता है. लेकिन सेकंड हाफ में पूरी पिक्चर साफ होती है. बहरहाल चित्रांगदा दोनों ही हिस्सों में अपना कैरेक्टर ब्रेक नहीं करतीं. 
‘गैसलाइट’ एक वन टाइम वॉच फिल्म है. एक अच्छी थ्रिलर बन सकती थी. बशर्ते राइटिंग के लूपहोल फिक्स कर लिए जाते. फिल्म को आप डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर देख सकते हैं. 

वीडियो: सारा अली खान, विक्रांत मैसी की फिल्म ‘गैसलाइट’ का 70 साल पुरानी हॉलीवुड फिल्म से कनेक्शन है