The Lallantop

फिल्म रिव्यू- गेम चेंजर

Ram Charan और Shankar की फिल्म Game Changer कैसी है, जानिए ये रिव्यू पढ़कर.

post-main-image
'गेम चेंजर' से दिग्गज तमिल फिल्ममेकर शंकर ने अपना तेलुगु सिनेमा डेब्यू किया है.

फिल्म- गेम चेंजर
डायरेक्टर- एस. शंकर
एक्टर्स- राम चरण, कियारा आडवाणी, SJ सूर्या, जयराम, सुनील 
रेटिंग- ** (2 स्टार) 

***

इन दिनों भारतीय (मेनस्ट्रीम) सिनेमा संभवत: अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है. हालांकि ये डिबेटेबल मसला है. आप 80 या 90 के दशक का उदाहरण भी दे सकते हैं, जब खराब क्वॉलिटी का सिनेमा बना. मगर उसे बनाने वालों में एक किस्म का कन्विक्शन था. जिसकी वजह से खराब फिल्में भी एंटरटेनिंग बन पड़ती थीं. शायद वो फिल्में हमें एंटरटेनिंग इसलिए लगती हैं क्योंकि वो ज्यादातर लोगों का एंट्री पॉइंट थी कमर्शियल सिनेमा में. हमने सिनेमा देखा नहीं था. तो ये मजेदार लगीं. ख़ैर, एक वक्त पर कॉमर्शियल मास सिनेमा बनाना हमारी यूएसपी हुआ करती थी. अब वही हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गई. बीते पांच सालों में हमने एक से बढ़कर एक धुरंधर फिल्ममेकर्स को खेत होते देखा. इस कड़ी में नई एंट्री हैं शंकर शनमुगन. इसका अंदेशा तो 'इंडियन 2' से ही हो गया था. मगर उनकी नई रिलीज़ 'गेम चेंजर' इस ताबूत में अगली कील सरीखी है. वो फिल्ममेकर जिसका बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड 2024 से पहले शत-प्रतिशत था. अब वो अपनी तरह का सिनेमा भी नहीं बना पा रहे. इसका ये मतलब नहीं है कि 'गेम चेंजर' बिल्कुल ही बकवास यानी 'इंडियन 2' टाइप फिल्म है. बस ये शंकर के मयार की फिल्म नहीं है. 

पिछले 22 सालों में 13-14 ब्लॉकबस्टर तमिल और हिंदी फिल्में बनाने के बाद शंकर ने 'गेम चेंजर' से अपना तेलुगु डेब्यू किया है. शंकर का एक पैटर्न रहा है. उनकी फिल्मों का नायक पैदा नहीं होता, जनमानस से गढ़ा जाता रहा है.  उसके मसले भी हमेशा आमफहम ही रहे. इसलिए लोग उससे आसानी से जुड़ाव महसूस कर पाए. 'गेम चेंजर' से शंकर ने अपने खेल में थोड़ा सा बदलाव किया. पैटर्न वही रहा, बस इस बार उनका नायक IAS है. वो कर अभी भी वही रहा है, जो उनके पिछले नायक करते रहे. जनता की बेहतरी की हरसंभव कोशिश. मगर अब उसका ये सब करना बड़ा ऊबाऊ और रेपिटिटीव लगने लग पड़ा है. क्यों? बताते हैं.

कहानी से शुरू करते हैं. विशाखापत्तनम में राम माधव नाम का एक लड़का रहता है. उसे एंगर इशूज़ हैं. उसका वही फंडा है कि जब मैटर मारपीट से सुलझ सकता है, तो बातचीत क्यों करनी! तभी उसके जीवन में दीपिका नाम की एक महिला की एंट्री होती है. बड़े ही अटपटे मगर रवायती ढंग से दीपिका और राम प्रेम में पड़ जाते हैं. दीपिका तय करती है कि वो राम के एंगर इशूज़ को सुधारेगी. उसे रिहैबिलिटेट करेगी. क्योंकि अगर वो ये भी नहीं करेगी, तो फिल्म में उसके करने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं. ख़ैर, दीपिका की एक शर्त पर राम IAS बन जाता है. अब राम का एक ही मक़सद है विशाखापत्तनम को करप्शन फ्री शहर बनाना. उसके इस मक़सद के आड़े आता है राज्य के मुख्यमंत्री का बेटा मोपिदेवी. यहां से राम और मोपिदेवी के बीच अनवरत चलने वाला बीच चूहे-बिल्ली का खेल शुरू होता है.

'गेम चेंजर' में जो कुछ घट रहा है, उसकी एक वजह है. वो वजह से है, शंकर की पिछली फिल्म. शंकर ने तय किया कि वो अपनी कल्ट फिल्म 'इंडियन' को ट्रिलजी में तब्दील करेंगे. नतीजतन, उन्होंने 1996 में आई अपनी फिल्म 'इंडियन' का सीक्वल बनाया. सिर्फ सीक्वल नहीं, उन्होंने इसका पार्ट 2 और पार्ट 3 एक साथ शूट कर डाला. 'इंडियन 2' थिएटर्स में उतरी. भारी फजीहत हुई. कहा गया कि कतई डेटेड फिल्म है. कमल हासन जैसे बुद्धिजीवी कलाकार इस फिल्म में काम करने को तैयार कैसे हुआ.

जब तक ये सब हुआ, तब तक शंकर 'गेम चेंजर' पर काम शुरू कर चुके थे. उन्होंने 'गेम चेंजर' में सब ट्राइड एंड टेस्टेड फॉर्मूला लगा दिया. वो किसी भी तरह से उस तरह की फिल्म बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें जाना और पसंद किया जाता है. जिसमें कुछ नया तो नहीं होता, मगर नोस्टैल्जिया और फैमिलियर सेट-अप की वजह से लोग फिल्म देख लेते हैं. मगर 'गेम चेंजर' को वो ऐसी फिल्म बनाने से भी चूक गए हैं. इसकी वजह ये है कि शंकर ने खुद को री-इनवेंट नहीं किया. ये एक ऐसी समस्या है, जिससे उनके दौर के कमोबेश सभी फिल्ममेकर्स जूझ रहे हैं. मणि रत्नम अपवाद हैं. शंकर की इस फिल्म में भी आपको कई टेक्निकल अडवांस्ड चीज़ें देखने को मिलेंगी. मसलन, जिस तरह से उन्होंने गाने शूट किए हैं. वो कैमरा से लेकर एडिटिंग सब कुछ नए तौर-तरीकों से किया गया. बस कहानी और उसे कहने का तरीका वही पुराना है.

'गेम चेंजर' में 20-25 मिनट का फ्लैशबैक सीक्वेंस है. ये इस फिल्म का इकलौता हिस्सा है, जहां आपको शंकर का प्रभाव नज़र आता है. राम चरण और अंजलि की परफॉरमेंस, उस दौर का सेट-अप, इमोशन. यहां आपको वो सब चीज़ें मिलती हैं, जिसके लिए आप ये फिल्म देखने गए हैं. इसमें अपन्ना नाम के एक व्यक्ति की कहानी दिखाई जाती है, जो अपने गांव का नेता है. मगर हकलाने की वजह से उसे भाषण देने में दिक्कत आती है. ऐसा कुछ हम 'द किंग्स स्पीच' नाम की फिल्म में देख चुके हैं. जो कि ब्रिटिश रॉयल फैमिली के सदस्य रहे किंग जॉर्ज VI के जीवन पर आधारित थी. इसके अलावा शंकर ने अपनी पिछली फिल्मों के कुछ रेफरेंस भी इस्तेमाल किए हैं. मसलन, फिल्म के एक सीन में राम का किरदार कहता है-

"मैंने इससे पहले एक दिन के मुख्यमंत्री के बारे में सुना है. मगर एक घंटे का मुख्यमंत्री, ये पहली बार सुन रहा हूं." जो कि 'मुदलवन' और 'नायक' के संदर्भ में है. इसके अलावा फिल्म के विलन बने SJ सूर्या, 'शिवाजी- द बॉस' की तरह अपने गंजे सिर पर हाथ उंगलियां फेरते रहते हैं. जो कि कॉलबैक जोक जैसा लगता है.

'गेम चेंजर' में राम चरण ने राम माधव नाम के IAS ऑफिसर का रोल किया है. इस किरदार में हीरोइज़्म के अलावा कुछ है नहीं है. इसलिए उसे निभाने में राम चरण को कुछ खास मुश्किल पेश नहीं आई होगी. क्योंकि ये उनका ब्रेड एंड बटर है. हां फिल्म के फ्लैशबैक वाले सीक्वेंस में आपको बतौर एक्टर उनकी चमक देखने को मिलती है. SJ सूर्या ने मुख्यमंत्री सूर्यकांत के बेटे और फिल्म के विलन बोब्बिली मोपिदेवी का रोल किया है. सूर्या का काम आपको पसंद आएगा. क्योंकि वो अपने रोल में एक किस्म की अन-प्रेडिक्टेबिलिटी लेकर आते हैं. जो कि देखने में फ्रेश लगता है. कियारा आडवाणी के पास बेहद लिमिटेड स्क्रीन टाइम है. और उस दौरान उन्हें ऐसा कुछ करने को नहीं मिलता, जिसे याद रखा जा सके. कॉमेडियन सुनील यहां भी वही करते हैं, जो वो इतने सालों से करते आ रहे हैं. बाकी जयराम, समुतिरकनी और वेनेला किशोर जैसे एक्टर्स को करने के लिए कुछ दिया ही नहीं गया.

अगर संक्षेप में बताएं, तो 'गेम चेंजर' कभी अपने नाम को चरितार्थ नहीं कर पाती है. ये फिल्म या इसके किरदार कभी उस हद तक नहीं पहुंच पाते, जिसे गेम चेंजिंग माना जाए. कुल मिलाकर ये फिल्म वही करती है, जो इससे पहले सैकड़ों मेनस्ट्रीम पॉलिटिकल फिल्में कर चुकी हैं. निराश. 

वीडियो: थलपति विजय की फिल्म GOAT का रिव्यू