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फिल्म रिव्यू- फुकरे 3

पहले एक टर्म चलता था 'नो-ब्रेनर' सिनेमा. हिंदी में बोले तो आप अगर ये फिल्म देखना चाहते हैं कि अपना दिमाग घर पर छोड़कर आएं. 'फुकरे 3' उसी टाइप की फिल्म है.

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'फुकरे 3' एक सीन फिल्म की स्टारकास्ट.

Fukrey 3 थिएटर्स में लगी है. इस फिल्म को देखकर मन में एक ही सवाल उठता है कि ये लोग पिक्चर बनाने से पहले क्या फूंक रहे. 2013 में 'फुकरे' पार्ट 1 आई थी. दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले कुछ बच्चों की कहानी थी. जो अपनी आगे की लाइफ को लेकर कंफ्यूज़ थे. क्या करना है, कैसे करना है, जैसे मसले उनके सामने मुंह बाए खड़े थे. 2017 में सीरीज़ की दूसरी किस्त आई. अब ये बच्चे स्कूल से कॉलेज में आ गए हैं. मगर इनके मसले अब भी वही हैं. इनकी उम्र बढ़ रही है. मगर बुद्धि नहीं. अब इस फ्रैंचाइज़ की तीसरी फिल्म रिलीज़ हुई है. जो आपको हंसाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. मगर विडंबना ये है कि फिर भी आप फिल्म के जोक्स की बजाय, फिल्म पर हंसते रह जाते हैं.

'फुकरे 3' के नायक वही नालायक बच्चे हैं. हनी, चूचा, लाली और पंडित जी. चूचा को अब भी डेजा चू आ रहे हैं. हनी उसे डिकोड कर रहा है. भोली पंजाबन उसका फायदा उठा रही है. यहां पर खेल थोड़ा सा पॉलिटिकल होता है. भोली दिल्ली से चुनाव लड़ने जा रही है. उसे पानी माफिया ढींगरा स्पॉन्सर कर रहा है. भोली और ढींगरा के बीच एक डील हुई है, जो शहर के लिए बहुत खतरनाक है. ऐसे में ये लड़के भोली के खिलाफ चूचा को चुनाव में खड़ा कर देते हैं. क्योंकि भोली के इरादे नेक नहीं हैं. इसके बाद दोनों गैंग्स के बीच चूहे-बिल्ली का खेल शुरू होता है.

'फुकरे 3' को पूरी तरह से चूचा का वन मैन शो बनाने की कोशिश की गई है. जोक्स से लेकर लव ट्रायंगल सब इसी किरदार के इर्द-गिर्द बुने गए हैं. बाकी सभी किरदारों को दरकिनार कर दिया गया. बीच-बीच में पंडित की टूटी-फूटी अंग्रेज़ी के सहारे फिल्म को खींचने की कोशिश की जाती है. जो एक से ज़्यादा मौकों पर काम कर जाता है. मगर चूचा को हर बात में वही 'ओए होए होए होए' करते सुनना बोरिंग और रेपिटीटिव लगता है. फिल्म का ह्यूमर लेवल वैसा ही, जैसा चौथी में पढ़ने वाले बच्चों को बच्चों का होता है. मगर उसके साथ एक ज़रूरी सोशल विषय नत्थी करके गंभीर बनाने की नाकाम कोशिश की जाती है.

हम ये नहीं बिल्कुल नहीं कह रहे कि 'फुकरे 3' से हमने कुछ आउट ऑफ द वर्ल्ड एक्सपेक्ट कर लिया था. मगर ये तो उम्मीद रहती है कि फिल्म क्वॉलिटी के मामले में फ्रैंचाइज़ की पिछली फिल्म से बेहतर हो. कुछ नया दिखाए. चौंकाए. मनोरंजन करे. 'फुकरे 3' से ये सारी चीज़ें नदारद हैं. हम कब तक फ्रैंचाइज़ के नाम पर थोड़े हेर-फेर के साथ वही कहानी और किरदार बार-बार देखेंगे. पिछले 10 सालों में उन किरदारों के जीवन में कुछ भी नहीं बदला. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि पिछले 10 सालों में इस फिल्म फ्रैंचाइज़ को फॉलो करने वाली ऑडियंस के जीवन में आमूलचूल बदलाव आ चुका है. फिल्म इस चीज़ को कभी अड्रेस नहीं करती.

पहले एक टर्म चलता था 'नो-ब्रेनर' सिनेमा. हिंदी में बोले तो आप अगर ये फिल्म देखना चाहते हैं कि अपना दिमाग घर पर छोड़कर आएं. 'फुकरे 3' उसी टाइप की फिल्म है. जिसके पास आपको ऑफर करने के लिए कुछ भी नया नहीं है. फिल्म हर बार एक नया फितूरी आइडिया लेकर आती है. कभी चूचा को भविष्य दिखने लगता है. कभी उसका पेशाब बारूद बन जाता है. पब्लिक जब सवाल उठाती है, तो कहा जाता है कि इस फिल्म को सिर्फ एंटरटेनमेंट पर्पस के लिए बनाया गया था. इसको ज़्यादा सीरियसली लेने की ज़रूरत नहीं है. ऐसे तो देश में बनने वाले हर तरह के सिनेमा का मक़सद खारिज किया जा सकता है. अब कोई फिल्म इसलिए तो बन नहीं रही कि उसका इस्तेमाल में क्रांति के लिए किया जाए. हर तरह का सिनेमा मनोरंजन के लिए ही बनता है. अगर वो फिल्म आपकी शिक्षित करती है, तो बोनस.

फिल्म में सभी एक्टर्स काम बढ़िया है. क्योंकि अगर आप एक ही चीज़ बार-बार करेंगे, तो उसमें महारत तो हासिल हो ही जाएगी. 'फुकरे 3' में हनी का रोल किया है पुलकित सम्राट ने. चूचा बने हैं वरुण शर्मा. लाली का कैरेक्टर प्ले किया है मनजोत सिंह ने. और पंडित जी बने हैं पंकज त्रिपाठी. भोली पंजाबन का रोल किया है ऋचा चड्ढा ने.

कुल जमा बात ये है कि 'फुकरे 3' एक ऐसी फिल्म है, जिसके होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. फिल्म के पास कहने के लिए कोई नई बात नहीं है. इस फिल्म के होने का मक़सद सिर्फ हिट फ्रैंचाइज़ को कैश करना है. 'फुकरे 3' को मृगदीप सिंह लांबा ने डायरेक्ट किया है. और लिखा है विपुल विग ने. 

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