अर्जन सिंह. देश के पहले एयर चीफ मार्शल. एयरफोर्स में पांच सितारा रैंक हासिल करने वाले इकलौते अफसर. महज़ 19 साल की उम्र में पायलट ट्रेनिंग के लिए चुने जाने वाले शख्स, जो 44 की उम्र में एयरफोर्स चीफ बने. साल 2017 को आज ही के दिन यानी 16 सितंबर को 98 वर्ष की उम्र में उन्होंने दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च ऐंड रेफरल में आखिरी सांस ली थी. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे उनकी ज़िंदगी के तीन बेहद खास किस्से, जो बताते हैं कि अर्जन सिंह पर्सनल से लेकर प्रोफेशनल लाइफ में कैसे इंसान थे. कूच कीजिए.
अर्जन सिंह: पहले एयरफोर्स मार्शल, जो खुद पाकिस्तान जाकर बम बरसाना चाहते थे
लाख चाहने के बावजूद अंग्रेज इनके खिलाफ कोर्ट मार्शल में कोई एक्शन नहीं ले पाए थे.


अर्जन सिंह के हॉस्पिटल में भर्ती होने के दौरान उनका हालचाल लेने पहुंचे थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
#1. जब लाख चाहने के बाद भी अर्जन सिंह का कोर्ट मार्शल नहीं कर पाए अंग्रेज
सेना यानी अनुशासन. कोई सैनिक नियम तोड़े या अनुशासनहीनता करे, तो उसका कोर्ट मार्शल होता है. अर्जन सिंह का भी हुआ. अंग्रेजों ने किया था, लेकिन लाख चाहने के बावजूद वो अर्जन पर कोई एक्शन नहीं ले पाए. बात फरवरी 1945 की है. तब अर्जन केरल के कन्नूर केंट एयर स्ट्रिप पर तैनात थे और वायुसेना की कमान अंग्रेजों के हाथ में थी. अर्जन ने उड़ान भरी और एयरक्राफ्ट लेकर सीधे कॉरपोरल के घर के ऊपर पहुंच गए. कॉरपोरल एयरफोर्स की एक रैंक होती है. अर्जन एयरक्राफ्ट को काफी नीचे उड़ा रहे थे और उन्होंने कॉरपोरल के घर के कई चक्कर लगाए.

दिसंबर 1942 की अर्जन सिंह की एक तस्वीर
एयरक्राफ्ट की आवाज सुनकर कॉरपोरल के साथ-साथ मोहल्ले के लोग भी घरों से बाहर निकल आए. मोहल्लेवालों के लिए इतने नजदीक से एयरक्राफ्ट देखना नया अनुभव था. लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों को ये पसंद नहीं आया. अर्जन सिंह की शिकायत पहुंची, तो उनका कोर्ट मार्शल हुआ. लेकिन अर्जन ने अपने पक्ष में ऐसे तर्क रखे, जिनकी वजह से अंग्रेज उनके खिलाफ एक्शन नहीं ले पाए. एक और वजह ये भी थी कि दूसरे वर्ल्ड वॉर की वजह से ब्रिटिश सेना को ट्रेंड पायलट्स की ज़रूरत थी. ऐसे में वो चाहते हुए भी अर्जन को बाहर नहीं कर सकते थे.

सैनिकों के साथ अर्जन सिंह.
अर्जन ने अपने बचाव में कहा था कि उन्होंने ट्रेनी पायलट का मनोबल बढ़ाने के लिए इतनी नीची उड़ान भरी थी. जो ट्रेनी पायलट उस वक्त एयरक्राफ्ट में अर्जन के साथ था, वो आगे चलकर एयर चीफ मार्शल बनने वाले दिलबाग सिंह थे. दिलबाग 1981 से 1984 तक एयरफोर्स के प्रमुख रहे. अर्जन सिंह के बाद वायुसेना अध्यक्ष बनने वाले वो दूसरे सिख थे. दिलबाग को 1944 में एक पायलट के तौर पर नियुक्ति मिली थी.
#2. पाकिस्तान जाकर बम बरसाना चाहते थे अर्जन सिंह
जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने के मकसद से जब सितंबर 1965 में पाकिस्तान ने अखनूर से भारत पर हमला बोला, तब अर्जन सिंह आर्मी चीफ के साथ रक्षामंत्री से मिलने पहुंचे. रक्षामंत्री वाईबी चव्हाण ने अर्जन सिंह से पूछा कि पाकिस्तान पर हवाई हमला करने के लिए उन्हें कितना वक्त चाहिए. अर्जन ने उनसे कहा, 'एक घंटा'. महज़ 26 मिनट बाद ही इंडियन एयरफोर्स के प्लेन पाकिस्तान पर हवाई हमला करने के लिए उड़ान भर चुके थे. फिर भी, अर्जन सिंह को पाक के साथ युद्ध जल्दी खत्म होने का हमेशा मलाल रहा. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था,

1965 के ऑपरेशंस के दौरान कश्मीर में आर्मी अधिकारियों के साथ अर्जन सिंह.
'मुझे इस बात का अफसोस भी है कि जब हम 1965 का युद्ध जीत चुके थे और पाकिस्तान को तबाह करने की स्थिति में थे, तभी युद्ध विराम हो गया. उस समय हम पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को नष्ट कर सकते थे. पाकिस्तान के विमान एक-एक करके खत्म हो रहे थे. वो जल्द से जल्द युद्ध-विराम चाहते थे. हमारे पास मेहर सिंह और केके मजूमदार जैसे बेहतरीन पायलट थे. हम पाकिस्तान के किसी भी हिस्से पर हमला कर सकते थे, जबकि पाकिस्तानी विमान अंबाला भी पार करने की स्थिति में नहीं थे. अहमदाबाद और मुंबई छोड़िए, वो दिल्ली तक भी नहीं पहुंचते. अखनूर ब्रिज पर कब्जे का उनका ख्वाब कभी पूरा नहीं हुआ. हम उन्हें तबाह कर सकते थे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव में हमारे नेताओं ने युद्ध खत्म करने का निर्णय ले लिया.'

जनवरी 1965 में Haiwara एयरबेस में रक्षामंत्री और स्टाफ के साथ अर्जन सिंह.
अर्जन खुद भी पाकिस्तान जाकर बम बरसाना चाहते थे. लड़ाकू विमान उड़ाने में तो वो एक्सपर्ट थे. सर्विस के आखिरी दिन भी उन्होंने विमान उड़ाया था. तो पाकिस्तान जाकर बम बरसाने के बारे में उनकी रक्षामंत्री से बात हुई, लेकिन रक्षामंत्री ने इसकी इजाज़त नहीं दी. यकीनन ये बेहद जोशबरा काम था, लेकिन ज़ाहिर है कि इसके लिए एयरफोर्स चीफ को दांव पर नहीं लगाया जा सकता था.
#3. सैनिकों की भलाई के लिए बेच दिया था खेत
अर्जन सिंह जंग के मैदान में जितने बहादुर थे, निजी जिंदगी में उतने ही दिलदार भी. उन्होंने दिल्ली में अपनी बहुत सारी जमीन और खेत बेचकर दो करोड़ रुपए का फंड बनाया और इसे रिटायर हो चुके एयरफोर्स कर्मियों की भलाई में लगा दिया. प्राइवेट प्रॉपर्टी को सैनिकों की भलाई में लगाने का ये अद्भुत उदाहरण है. अर्जन का जन्म पंजाब के ल्यालपुर में हुआ था, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से चला गया और उसका नाम हो गया फैसलाबाद. विभाजन के बाद अर्जन के परिवार को पंजाब में आदमपुर के पास चिरुवाली गांव में 80 एकड़ की जमीन दी गई थी.

26 जनवरी 2015 को बराक ओबामा से भेंट के दौरान अर्जन.
अर्जन अपनी जीवनी लिखने वाले को बताते हैं,
'जब मैंने इतनी जमीन बेची, तो इसमें जो घर बना था, वो मैंने जमीन की देखभाल करने वाले करतार सिंह को दे दिया. मैंने जमीन इसलिए बेच दी, क्योंकि नौकरी करते हुए मैं इसकी देखभाल नहीं कर सकता था. जब मैंने सरदार स्वर्ण सिंह को बताया कि मैंने ये जमीन बेच दी है, तो उन्होंने मुझे इसे मार्केट रेट से कम पर बेचने पर डांट भी पिलाई.'

अर्जन सिंह की किताब का कवर.
जिन स्वर्ण सिंह का जिक्र अर्जन ने किया, वो उस समय देश के विदेशमंत्री थे. स्वर्ण सिंह 1970 से 1974 तक देश के विदेश मंत्री रहे. अर्जन ने अपनी इस किताब Arjan Singh: Marshal of the Indian Air Force में लिखा है, 'अब मैं जाट नहीं रहा, क्योंकि मेरे पास जमीन नहीं है.'
उनकी ये किताब रूपिंदर सिंह ने लिखी है, जिसे आप यहां क्लिक करके
ले सकते हैं.
#4. अब्दुल कलाम के साथ गजब रिश्ता
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007 तक देश के राष्ट्रपति रहे. साल 2005 में अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ही दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह के प्रति अपना सम्मान दिखाया था. 22 अगस्त 2005 की ये तस्वीर काफी चर्चित हुई थी.

2005 में डॉ. कलाम के साथ अर्जन सिंह.
डॉ. कलाम की 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग में डेथ हो गई थी. 28 तारीख को जब उनका शरीर दिल्ली लाया गया, तो एयरपोर्ट पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों में अर्जन सिंह भी थे.

दिल्ली में डॉ. कलाम को सल्यूट करके अर्जन सिंह.
उस समय अर्जन व्हीलचेयर पर थे. उनका शरीर उनका साथ नहीं दे रहा था, फिर भी वो आए. वो कलाम के पार्थिव शरीर के नज़दीक पहुंचे, शरीर कांप रहा था, फिर भी वो तनकर खड़े हुए और डॉ. कलाम को सल्यूट किया.