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वो 5 वजहें जिनके लिए आपको 'लाल सिंह चड्ढा' देखनी चाहिए

और इसमें आमिर खान का नाम शामिल नहीं है.

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फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' के एक सीन में आमिर खान.

'फॉरेस्ट गंप' की ऑफिशियल हिंदी रीमेक 'लाल सिंह चड्ढा' सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है. आमिर खान और करीना कपूर स्टारर इस फिल्म को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. हमने ये फिल्म देख डाली है. हमें क्या लगा, वो आप इस रिव्यू में देख-सुन सकते हैं.

हम आपको वो वजहें बता रहे हैं, जिनके लिए 'लाल सिंह चड्ढा' देखी जानी चाहिए. और क्यों नहीं देखी जानी चाहिए.

# क्यों देखी जानी चाहिए 'लाल सिंह चड्ढा'?

1) ईमानदार रीमेक

'लाल सिंह चड्ढा' महान फिल्म नहीं है. मगर वो ओरिजिनल फिल्म 'फॉरेस्ट गंप' की ईमानदार रीमेक है. ईमानदार रीमेक होने का मतलब दिखने में फ्रेम टु फ्रेम कॉपी होना नहीं है. अगर कोई रीमेक ओरिजिनल फिल्म की कहानी, मैसेज, फील और आत्मा बचाए रखती है, उसे अमूमन ईमानदार रीमेक माना जाता है. 'लाल सिंह चड्ढा' ये काम कर ले जाती है. ये इसके सबसे मजबूत पक्षों में से एक है.  

‘फॉरेस्ट गंप’ के बॉक्स ऑफ चॉकलेट की जगह ‘लाल सिंह चड्ढा’ में गोलगप्पे ले लेते हैं. 

2) फीलगुड फैक्टर

हिंदी सिनेमा एक बुरे दौर से गुज़र रहा है. अच्छी फिल्में बन नहीं रहीं. जो बन रही हैं, वो टिकट खिड़की पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहीं. क्योंकि जनता उनके साथ जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही. ऐसे में एक विदेशी फिल्म को हिंदी में बनाया जाता है, जो आपके कल्चर में रच-बस के बात करती है. उससे आप कनेक्ट करते हैं. उसे देखने के बाद अच्छा महसूस करते हैं. फिल्म की सबसे बड़ी सफलता इसी बात में है कि वो आपको पहले से बेहतर फील करवा पा रही है. जो फील आपको अपने यहां बनी ओरिजिनल फिल्मों से नहीं आ रही है, वो एक अंग्रेजी फिल्म के रीमेक से आ रही है. 'लाल सिंह चड्ढा' इस डिपार्टमेंट में अंक बटोरती है.  

3) करीना कपूर और मोना सिंह की परफॉरमेंस

करीना कपूर खान ने 'लाल सिंह चड्डा' में रूपा नाम का किरदार निभाया है. वो लाल की बचपन की दोस्त है. उम्र के साथ ये दोस्ती प्रेम में बदल जाती है. लाल की ज़िंदगी में जो कुछ भी हो रहा है, रूपा का उसमें बहुत बड़ा योगदान है. करीना कपूर की परफॉमेंस आला है. मैं अब भी इस बात पर अडिग हूं. आपकी राय अलग हो सकती है. वो फिल्म की सबसे मजबूत इमोशनल कोर हैं. रूपा की ज़िंदगी में लाल से ज़्यादा चीज़ें घट रही हैं. जो उसे इंसान के तौर पर बदल रही हैं. उसका असर लाल की कहानी पर पड़ता है. जो फिल्म को प्रभावित करती है.

मोना सिंह ने लाल सिंह चड्ढा की मां गुरप्रीत का रोल किया है. गुरप्रीत सिंगल मदर है. उसने लाल को हमेशा ये सिखाया कि जितना कर सकते हो, उससे थोड़ा ज़्यादा करना. जब भी देश में हिंसक या कोई अप्रिय घटना हो रही होती है, तो वो लाल से कहती है कि बाहर मलेरिया फैल रहा है. बाद में एक सीन में लाल कहता है- धर्म से मलेरिया फैलता है. ये लाइन इस फिल्म का हासिल है. इसका श्रेय स्क्रीनप्ले लिखने वाले अतुल कुलकर्णी को भी मिलना चाहिए. उन्होंने चीज़ों को सूक्ष्मता से देखने के लिए एक सिंपल एनालॉजी का इस्तेमाल किया. जो कि सबकी समझ में आसानी से आएगी. मोना ने इस कैरेक्टर में एफर्टलेस लगती हैं. इन दो प्यारे परफॉरमेंसेज़ के लिए भी आप 'लाल सिंह चड्ढा' देख सकते हैं.

लाल का एडमिशन नॉर्मल स्कूल में करवाने के लिए हेडमास्टर से लड़ती गुरप्रीत.

4) पॉलिटिकल बट स्मार्ट फिल्म

अगर आप फॉरेस्ट गंप को रीमेक कर रहे हैं, तो आप फिल्म के राजनीतिक एंगल को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. उससे फिल्म की आत्मा मर जाएगी. क्योंकि उन घटनाओं से नायक का जीवन प्रभावित होता है. 'लाल सिंह चड्ढा' ये बात जानती है. इसलिए वो पॉलिटिकल कमेंट्री नहीं करती. न ही कोई पक्ष लेती है. वो बस घटती चली जाती है. लाल, पठानकोट का रहने वाला है. जो इंडिया-पाकिस्तान बॉर्डर के करीब है. उसे रूपा डिसूज़ा नाम की हाफ-क्रिश्चन लड़की से प्यार है. वो कारगिल युद्ध में अपने दुश्मन की जान बचाता है. बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के कनेक्शन का ज़िक्र करती है. लाल का सबसे खास दोस्त है बाला, जो हैदराबाद से आता है. इस फिल्म में इतना कुछ चल रहा है, मगर आपको बोलकर नहीं बताया जाता. क्योंकि कहानी की बुनावट का हिस्सा है. ये स्मार्ट फिल्ममेकिंग है.

फिल्म में एक सीन है, जहां पाकिस्तानी चरमपंथी मोहम्मद दिल्ली में बैठा है. वो कारगिल युद्ध के बाद से इंडिया में ही रहता है. एक दिन वो टीवी देख रहा होता है. न्यूज़ चैनलों पर 26/11 अटैक की खबरें चल रही हैं. अज़मल कसाब की फोटो फ्लैश हो रही है. अचानक से टीवी बंद होता है और कसाब की जगह मोहम्मद की परछाई टीवी पर दिखने लगती है. यहां कसाब और मोहम्मद अपनी जगह एक्सचेंज कर लेते हैं. कसाब में मोहम्मद खुद को देखने लगता है. इसके बाद वो फैसला लेता है कि पाकिस्तान वापस जाएगा और वहां एक स्कूल खोलेगा. लोगों को नफरती होने से बचाएगा. इस तरह की चीज़ें लाल सिंह चड्ढा को सिंपल होते हुए कॉम्प्लेक्स फिल्म बनाती हैं.

कारगिल वॉर में पाकिस्तानी चरमपंथी मोहम्मद पाजी की जान बचाने के सालों बाद उनसे मिलता लाल सिंह चड्ढा.

5) शाहरुख खान

'लाल सिंह चड्ढा' में शाहरुख खान ने कैमियो किया है. वो बड़ा ट्विस्टेड सा अपीयरेंस हैं. नैरेटिव के लिहाज़ से थोड़ा ओवर द टॉप भी. मगर वो प्यारा कैमियो है. उसके बारे में ज़्यादा डिस्कस करेंगे, तो आपके लिए स्पॉयल हो जाएगा. खुद जाकर देखिए मज़ा आएगा.

# वो वजहें जिनके लिए 'लाल सिंह चड्ढा' नहीं देखी जानी चाहिए

1) आमिर खान

अगर आप ये फिल्म आमिर खान के लिए देखने जा रहे हैं, तो निराश होंगे. आमिर टॉप फॉर्म में हैं. मगर वो उनका बेस्ट नहीं है. उनकी पंजाबी थोड़ी नकली लगती है सुनने में. वो थोड़े कमतर इसलिए भी लगते हैं कि क्योंकि फिल्म के दूसरे एक्टर्स की परफॉरमेंस कमाल की है. चाहे वो नागा चैतन्य हों, करीना कपूर हों या मोना सिंह. हो सकता है आपको इस फिल्म की सबसे बुरी चीज़ खुद आमिर खान लगें. इसलिए आप अगर आमिर खान की परफॉरमेंस देखने जा रहे हैं, तो निराश होंगे. मगर फिल्म से नहीं.

2) अगर आप 'लाल सिंह चड्ढा' को बॉयकॉट कर रहे हैं

अगर आप 'लाल सिंह चड्ढा' का बहिष्कार कर रहे हैं, तो आप खुद ये फिल्म देखने नहीं जाएंगे. अगर आप जाते हैं, तो इससे आपका पर्पस डिफीट हो जाएगा. इससे ज़्यादा हम कुछ कहेंगे, तो आप कहेंगे कि कह रहा है. 

फिल्म रिव्यू- लाल सिंह चड्ढा