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दलित होने के चलते फिल्ममेकर नागराज मंजुले ने क्या-क्या झेला?

राइटर, डायरेक्टर और फिल्ममेकर नागराज मंजुले का कहना है कि उन्हें इस बात से पीड़ा होती है कि दलित की बात सिर्फ दलित ही करते हैं. इंसान होने के नाते बाकियों को भी इस पर बोलना चाहिए.

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GITN में नागराज मंजुले ने अपनी जाति के कारण सहन की गई घटनाओं पर विस्तार से बताया. (फोटो- ट्विटर)

लल्लनटॉप के शो ‘गेस्ट इन द न्यूज रूम’ (GITN) में इस बार गेस्ट के तौर पर पधारे राइटर, डायरेक्टर और फिल्ममेकर नागराज मंजुले (Nagraj Manjule). उन्होंने अपने करियर के साथ-साथ अपनी बनाई फिल्मों पर बात की. कई सवालों के जवाब दिए. नागराज मंजुले ने अपनी जाति पर भी बात की. ये बताया कि एक दलित होने के नाते उन्होंने क्या-क्या झेला, पूरी बात विस्तार से बताई.

नागराज मंजुले ने अपने एक बयान में कहा था कि एक दलित लड़का होने के चलते उन्हें कई सारी मर्यादाओं का पालन करना पड़ा. उन्होंने कहा था कि छोटे में हम खुद को सिर्फ इंसान समझते थे, बड़े होने पर पता चला कि मैं दूसरों की तरह आम इंसान नहीं हूं, क्योंकि मैं दलित हूं. इस कारण उन्हें अपनी मर्यादाओं का पालन करना पड़ेगा, अपनी औकात में रहना पड़ेगा. 

'कुछ घरों में मैं नहीं जा सकता था'

दलित होने के चलते नागराज मंजुले क्या कुछ सहना पड़ा? इस सवाल पर उन्होंने बताया,

“मैं जब छोटा था तो मुझे नहीं लगता था कि ऐसा कुछ है. शायद मेरे साथ ऐसा होता रहा होगा, पर मुझे उसका एहसास नहीं था. लेकिन ये बाद में समझ आने लगा. कुछ घर होते थे जिनके अंदर मैं नहीं जा सकता था. पानी को नहीं छू सकता था. खाने को नहीं छू सकता था. कुछ घरों से खाना आता था, पर हमारे घर से वहां नहीं जा सकता था. इसका कारण मुझे बाद में पता चला. जब आप छोटे होते हो तो आपको इन सब बातों की फिक्र भी नहीं होती है कि समाज में क्या चल रहा है. कौन सी जाति से हो. आपको आगे कहां जाना है. लेकिन जैसे ही आपको समझ आती है, आप जब कुछ सीमाओं को लांघने की कोशिश करते हो, तब आपको मुश्किलों को पता चलता है.”

मंजुले ने बताया कि ये सारी चीजें उन्हें तब पता चली, जब वो पढ़ाई करने लगे और खुद को समझने लगे. तब उन्हें पता चला की वो दलित हैं. उन्होंने बताया,

“मुझे लगता था कि जो बाबा साहब आम्बेडकर की वजह से जागे हैं, वो ही दलित हैं. मैं दलित नहीं हूं. मुझे ये संवेदना नहीं थी कि मैं दलित हूं. लेकिन धीरे-धीरे जब चीजों को देखने लगा तो मुझे एहसास होने लगा. हम जब पानी भरने जाते थे, तो कुछ लोग नल को हमारे हाथ लगाने के बाद धोते थे. तो ये सब मुझे तब नजर आने लगा.”

मंजुले ने आगे कहा कि उनके पिता चाहते थे कि वो और उनके सभी भाई पढ़ाई करें और आगे बढ़ें. लेकिन उनके पिता और आसपास के लोगों ने जो सहा है, उसे वो देखते थे.

'जब रेलवे लाइन पर एक सुअर कट गया था'

एक घटना का जिक्र करते हुए नागराज मंजुले ने बताया कि उनके घर के पास रेलवे लाइन पर एक सूअर कट गया था. जिसके बाद रेलवे का एक शख्स उनका घर ढूंढता हुआ आया और कहा कि सूअर को वहां से हटा दो. इस पर मंजुले ने शख्स से कहा,

“आप मेरे घर क्यों आए हो, आप खुद निकाल दो. ये बात आप मुझे मत बताओ. रेलवे को बताओ जाकर. मुझे इस बात पर काफी गुस्सा आया तो मेरी मां ने कहा कि तुम उनके मुंह मत लगो.”

ऐसी घटनाओं पर मंजुले ने कहा कि अभी भी शायद कहीं न कहीं ऐसा होता होगा. लेकिन आशा है कि दुनिया अब बदल रही है.

भाई ने दी सलाह, पर मंजुले नहीं माने  

नागराज मंजुले ने अपनी शॉर्ट फिल्म पिस्तुल्या को मिले नेशनल अवार्ड के वक्त दिए एक इंटरव्यू के बारे में बताया. उन्होंने इंटरव्यू में कह दिया था कि वो दलित जाति से आते हैं. इस पर उनके छोटे भाई और दोस्त ने उनसे कहा था कि तुम ये सब क्यों बोल रहे हो. दोस्त और भाई ने उन्हें ऐसा ना बोलने की सलाह दी. उन्होंने अपने भाई से पूछ लिया कि वो ऐसा क्यों ना बोलें, तो जवाब मिला,

“तुमने अभी-अभी इंडस्ट्री में कदम रखा है. शायद ऐसा बोलकर तुम खुद को दरकिनार करवा दोगे.”

मंजुले ने आगे बताया कि उन्होंने अपने भाई से कहा कि सच तो यही है. पिताजी पत्थर तोड़ने का काम करते हैं. अगर ये छुपा कर मैं कुछ बोलूंगा, तो क्या बोलूंगा. तब बोलने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं. तो फिर से मैंने ये सब कहना शुरू किया. जिसके बाद मैंने फैंड्री लिखी. उसके लिए प्रोड्यूसर्स ने तुरंत हां कर दी.

जाति की बात रखने को लेकर दबाव!

देश में जाति विशेष की बात करने और उसको लेकर अपने विचार रखने को लेकर दबाव होने की बात पर मंजुले ने कहा,

“लोग चाहते हैं कि ऐसे मुद्दों पर मैं अपनी बात रखूं. लेकिन मुझे बुरा इस बात का लगता है कि सिर्फ मैं ही बोल रहा हूं. तो जरूरी नहीं है कि मेरी जाति है, तो मैं ही बोलूंगा. संवेदनशील होना अलग बात है, और जाति का होना अलग बात है.”

मंजुले ने आगे कहा कि इन सब बातों का ये मतलब नहीं है कि उन्हें इस पर बात नहीं करनी है. वो बोले कि उन्होंने खुद ही इस बात को छेड़ा है, इसलिए वो तो बात करते रहेंगे. लेकिन उन्हें इस बात से पीड़ा होती है कि दलित की बात सिर्फ दलित ही करते हैं. इंसान होने के नाते बाकियों को भी इस पर बोलना चाहिए.

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