दिवाली के मौके पर इस हफ्ते सिनेमाघरों मेंआमिर खान और अमिताभ बच्चन स्टारर 'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान' रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म बेसिकली एक पीरियड मसाला फिल्म है. आप कभी बाज़ार में घूमते हुए मुंह के स्वाद के लिए कुछ खा लेते हैं. लेकिन वो खाना आप रोज नहीं खा सकते क्योंकि उससे हाजमा खराब होने का डर बना रहता है. 'ठग्स...' वही है. इसके अलावा फिल्म में क्या है और कैसे है जानते हैं. सबसे पहले
कहानी
एक रिवेंज ड्रामा है 'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान'. अंग्रेज भारत आते हैं और लोकल राजा-महाराजाओं को छल-कपट या ताकत के बल पर अपने अंडर कर लेते हैं. ये सब काम करने का जिम्मा एक अंग्रेज अफसर जॉन क्लाइव और उसके कुछ साथियों पर है. उनका सामना होता है बेग नाम के भारतीय राजा से जो उनकी हुकूमत के सामन घुटने टेकने से इंकार कर देता है. छल से उसका राजपाट लेकर क्लाइव उसे मार देता है. इसके बाद इस बदले की कहानी में एंट्री होती खुदाबख्श की जो बेग की इकलौती बची हुई संतान जफ़ीरा की सुरक्षा का जिम्मा लेता है. साथ ही साथ वो अंग्रेजों के खिलाफ जंग भी छेड़े हुए है. कहानी में जबरदस्ती एक और कैरेक्टर की एंट्री होती है. एक ठग की, जिसका रोल आमिर खान ने किया है. इसके बाद ये तीनों मिलकर क्लाइव से कैसे बदला लेते हैं, पूरी फिल्म में यही होता है. अगर आपको स्पॉयलर जैसा कुछ महसूस हो रहा है, तो आप फिल्म देखने के बाद इस लिखे को दोबारा से पढ़ सकते हैं. फिल्म जितनी ट्रेलर में दिखी है, उतनी ही है.
इससे पहले आमिर फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' में दिखे थे.
एक्टर्स का काम
फिल्म में अमिताभ बच्चन, आमिर खान और फातिमा सना शेख ने लीड रोल किया है, जबकि कटरीना का एक्सटेंडेड कैमियो है. वो दो गानों के अलावा ढाई सीन्स में दिखती हैं. आमिर खान ने 'दंगल' में जो किया था, इसमें वो उसका ठीक उल्टा करते नज़र आते हैं. उन्हें देखकर आपको मजा तो आता है लेकिन संतुष्टि नहीं होती. हमने आमिर पीरियड और कॉमेडी दोनों तरह की फिल्मों में देखा है. लेकिन इस फिल्म में वो कुछ अलग ही करते दिखाई दे रहे हैं. इसलिए उनसे निराशा होती. निराशा उन्हीं से होती है, जिनसे उम्मीद रहती है. उनके ऊपर हैं अमिताभ बच्चन. खुदाबख्श जहाजी उनके किरदार का नाम है. उम्रदराज लेकिन लॉयल आदमी है. अपने देश और राजा दोनों के प्रति. उसने एक सोच को डेवलप किया है. जब फिल्म में इसका ज़िक्र किया जाता है, तो आपको 'सत्या 2' याद आती है. मैंने देखी है इसलिए बताए दे रहा हूं, आप मत देख लीजिएगा. पिछले दिनों अमिताभ ने 'पिंक' और 'पिकू' जैसी फिल्मों में काम किया है. 'ठग्स...' में उनके रोल के लिए हमें उनसे ज़्यादा अभिषेक को जिम्मेदार मानना चाहिए. बाप तो बाप होता है! फिर आती हैं फातिमा सना शेख. वो लगातार दो फिल्मों में आमिर के साथ काम कर चुकी हैं. और शायद वो पहली ही एक्ट्रेस होंगी, जिन्होंने आमिर का हाइएस्ट और लोएस्ट दोनों ही इतने कम समय में देख लिया. उनका रोल जफ़ीरा का है. एकमात्र कैरेक्टर जिसकी कोई जस्टिफाइड बैकस्टोरी है. इस फिल्म में उनके साथ एक बड़ी इंट्रेस्टिंग चीज़ हुई है. एक्सप्रेशंस तो जगह पर हैं लेकिन उनके डायलॉग्स बड़े बिखरे हुए से हैं. ऐसा लगता है वो सोच कुछ और रही हैं कह कुछ और. कटरीना दो आइटम सॉन्ग्स में दिखाई देती हैं. उनको बस फिल्म का तापमान बढ़ाने के लिए रखा गया था. वो उन्होंने जबरदस्त तरीके से किया है. इस बार हालांकि उनके फेस पर कुछ एक्सप्रेशंस देखने को मिलते हैं.
ये कटरीना और आमिर की दूसरी फिल्म है, इससे पहले वो 'धूम 3' में भी साथ काम कर चुके है.
फिल्म की अच्छी बात
होगी तो बताएंगे न! इस फिल्म की बुरी बात ये है कि इसकी सबसे अच्छी बात ही इसकी बुरी बात है. ये बड़े बजट की फिल्म है. पैसे पानी जैसे बहाए गए हैं इसकी मेकिंग में. वो बहा हुआ पैसा आपको स्क्रीन पर अच्छा लगता है. विजुअल्स का बड़ी खूबसूरती से फिल्म में इस्तेमाल किया गया है. लेकिन वो बैकग्राउंड है. सामने आपकी कहानी होती है, जिसे जनता की गोली अपनी छाती पर लेनी होती है. यहां बात गोली चलने तक पहुंचती ही नहीं. पिछले वाक्य को अपने स्टेट ऑफ माइंड के मुताबिक ढाल लें. एक चीज़ है जिसकी तारीफ की जानी चाहिए और वो है एक्टर्स का एक्शन. आज कल जिसे स्टंट कहा जाता है. इसमें भी बाज़ी फातिमा के ही हाथ लगती है. उनके एक दो सीन्स हैं, जो 'अरे भाई भाई भाई' टाइप हैं. एक जगह तो उन्हें ये सब करते हुए देख आमिर भी चौंक जाते हैं. डायलॉग्स भी फिल्म के ठीक लगते हैं क्योंकि बोल-चाल की भाषा में लिखे गए हैं. लेकिन बच्चन साहब वाले नहीं. उनकी रियल लाइफ इमेज को रील लाइफ तक कैरी किया गया है. इसी चक्कर में एक बार तो अमिताभ 'बाजीराव मस्तानी' से दीपिका का डायलॉग रिपीट करत देते हैं. 'बाजीराव...' में दीपिका कहती हैं- 'इश्क करना अगर खता है, तो सज़ा दो मुझे'. वहीं इस फिल्म में अमिताभ का किरदार कहता है- 'आजादी है गुनाह, तो कूबूल है सज़ा'.
'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान' आमिर और अमिताभ की एक साथ पहली फिल्म है.
कुछ ऐसा जो खला हो
ये लिस्ट तो गज़ब की लंबी है. कुछ तो इतनी दिलचस्प खामियां इस फिल्म ने समेटे हुए हैं कि उसके लिए अलग से एक कॉपी लिखी जानी चाहिए. फिल्म की कहानी साल 1795 में सेट है. इसके शुरुआती समय में ही बेग, क्लाइव को चाय पिलाते हैं. और आपको शायद पता हो कि चाय की खेती ही 1820 के आसपास में शुरू हुई है. इसके बाद आते हैं वो अंग्रेज अफसर, जो न सिर्फ शुद्ध हिंदी में आपस में बात करते हैं बल्कि हिंदुस्तान में दशहरा क्यों? कैसे और कब मनाया जाता है, वो भी एक-दूसरे को बताते हैं. इंट्रेस्टिंग! पता नहीं आमिताभ के साथ एक बाज क्यों लगा दिया गया है. पिछली फिल्म 'बाज़ार' में जो काम 'केम छो माजा मा' वाले गाने ने किया था. वो इस फिल्म में ये बाज करता है. ऊपर से इसके स्क्रीन पर आने के बाद स्कूटी के इंडिकेटर जैसी चिढ़भरी आवाज़ आने लगती है. ये पक्षी बस एक सीन में काम आता है लेकिन फिल्म में कटरीना से ज़्यादा बार दिखता है. इसके अलावा कुछ किरदार तो ऐसे हैं, जिसे कभी भी स्क्रीन पर भेज दिया जाता है. ये कहां से आया क्यों आया? किसी को नहीं पता. और कुछ लोग जबरदस्ती फिल्म में शामिल हो जाते है. 'शाहिद', 'रांझणा और 'तनु वेड्स मनु' जैसी फिल्मों में काम कर चुके मो. जीशान अयूब को देखकर तो दिल ही भर आता है. उन्होंने एक अजीब तरह से बात करने वाले पंडित का रोल किया है. उसे कौन सी विद्या आती है, ये मैं फिल्म खत्म होने के कई घंटे बाद तक भी सोच ही रहा हूं. शायद अगले प्रेस कॉन्फ्रेंस में आमिर खान बताएं. फिल्म में इतनी ज़्यादा बकवास बातें है कि एक सीन में अमिताभ बच्चन, आमिर खान को मुंह पर ही बोल देते हैं कि वो ये बकवास बंद करें नहीं तो वो पागल हो जाएंगे. सिनेमाहॉल में बैठे दर्शक उनसे खासे सहमत भी दिखे.
फातिमा और आमिर की एक साथ दूसरी फिल्म है. इससे पहले वो आमिर खान के साथ 'दंगल' में काम कर चुकी हैं.
माहौल बनाने के लिए और क्या किया गया है?
अरे पूछो क्या नहीं किया गया है! फिल्म में तीन गाने हैं और कमाल की बात कि तीनों ही आइटम सॉन्ग्स हैं. एक नया ट्रेंड आया है आजकल कि फिल्म में आइटम नंबरों संख्या बढ़ने लगी है. ये चीज़ 'स्त्री' से लेकर 'बाज़ार' और 'ठग्स...' तक में दिख चुकी है. फिल्म की लंबाई ज़्यादा फिर भी थोड़ी क्रिस्प सी लगती है. बावजूद इसके ये फिल्म ऐसी है आप एक झपकी लेकर वापस स्क्रीन पर बढ़ती कहानी देखेंगे और समझ जाएंगे कि आपके पीछे क्या हुआ है. मतलब एक तरह से थोड़ी प्रेडिक्टेबल भी है. बैकग्राउंड में बज रहा ट्यून सुनकर ऐसा लगता है जैसे 'रेस' (सैफ वाली ब्रो) के बैकग्राउंड स्कोर को खराब करके लगा दिया गया है. बाकी तो बाज़ है ही!
इस फिल्म को विजय कृष्ण आचार्य ने डायरेक्ट किया है.
ओवरऑल एक्सपीरियंस
वही जो ऊपर बताया है. इससे आपको इतना अंदाज़ा तो लग ही गया होगा कि फिल्म देखनी है कि नहीं है. अगर आप सैटिसफाइड महसूस नहीं कर रहे, तो एक ट्रिविया ले लीजिए. फिल्म ठीक उसी दिन रिलीज़ हुई है, जिस दिन हमारे यहां नोटबंदी हुई थी. और फिल्म में सिर्फ एक ही ठग है. तो फिर फिल्म का नाम 'ठग्स' ऑफ हिन्दोस्तान क्यों है?
वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू- ठग्स ऑफ हिंदोस्तान