फिल्म- फाइटर
डायरेक्टर- सिद्धार्थ आनंद
स्टारकास्ट- ऋतिक रोशन, दीपिका पादुकोण, अनिल कपूर, अक्षय ओबेरॉय
रेटिंग- *** (3 स्टार)
फाइटर - मूवी रिव्यू
'फाइटर' और 'टॉप गन' में समानता ये है कि दोनो राष्ट्रवाद को केटर करती हैं. बस फर्क इतना है कि दोनो में से एक ही अच्छी फिल्म कहलाने के मानकों पर खरी उतरती है.
Hrithik Roshan, Deepika Padukone और Anil Kapoor की फिल्म Fighter का टीज़र देखने के बाद लग रहा था कि Siddharth Anand की फिल्म ने Tom Cruise की Top Gun से हेवी वाली प्रेरणा ली है. दोनो फिल्मों में समानता ये है कि दोनो ने अपने देश के राष्ट्रवाद को केटर किया. एक ने कहा कि अमेरिका खूबसूरत है, महान है. तो दूसरी ने कहा कि हिंदुस्तान ही बाप है. कल्चर के लिहाज़ से ‘टॉप गन’ बहुत इंफ्लूएंशियल फिल्म थी. 80 के दशक में कूल चश्मे बनाने वाली Ray Ban कंपनी बंद होने के कगार पर थी. फिर ‘टॉप गन’ आई. टॉम क्रूज़ भाईसाहब एवियेटर चश्मे पहले एयरप्लेन के रनवे पर दिखे.
उसके बाद तो ये ऐसा स्टाइल स्टेटमेंट बना कि Ray Ban के stonks आसमान छू गए. इस एक फिल्म ने पूरी कंपनी को बचा लिया. फिल्म का गाना ‘डेंजर ज़ोन’ किसी काल में बंधकर नहीं रहा. अमेरिकियों के सुख-दुख का साथी बना. मुश्किल दिनों में अमेरिकियों में देशभक्ति फूंकी. इंडिया में ऐसा कल्चरल इम्पैक्ट हमने ‘चक दे इंडिया’ के वक्त देखा था. जब फिल्म के थीम सॉन्ग के ज़रिए देश की उपलब्धियों को सेलिब्रेट किया जा रहा था. ‘टॉप गन’ की पॉलिटिक्स चाहे जो भी रही हो, लेकिन उसका इम्पैक्ट सिर्फ एक ही वजह से बना रहा – वो एक मज़बूत फिल्म थी. पार्टनर आपकी पॉलिटिक्स चाहे कुछ भी हो, फिर चाहे वो जेंडर पॉलिटिक्स हो या किसी और किस्म की पॉलिटिक्स. सबसे ज़रूरी बात है कि आप एक फिल्म बना रहे हैं. आपकी फिल्म चाहे कुछ भी प्रीच करे, वो संदेश बाद में आएगा, पहले उसे एक फिल्म की तरह ही देखा जाएगा. उस मामले में ‘फाइटर’ की उड़ान ‘टॉप गन’ तक नहीं पहुंच पाती.
फिल्म के क्लाइमैक्स में पैटी (ऋतिक रोशन) अज़हर अख्तर (ऋषभ सिन्हा) नाम के आतंकी को पीट रहा होता है. ये एक्शन सीन उत्सुकता जगाता है. दोनो में हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट को पेसी ढंग से कोरियोग्राफ किया गया है. बस यहां ओवर-द-टॉप किस्म के डायलॉग मज़ा किरकिरा करते हैं. वही डायलॉग्स जो हम दसियों बार सुन चुके हैं. ‘कश्मीर के मालिक हम हैं’, ‘बाप वो, बेटा ये’ किस्म की बातें. हम इंडिया और पाकिस्तान, दोनो ही देशों को अलग रोशनी में नहीं दिखा पा रहे (या दिखाना नहीं चाह रहे). बीते साल विकी कौशल की फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन फैमिली’ आई थी. फिल्म में उनका किरदार एक पंडित का बेटा होता है. उसे बाद में पता चलता है कि वो वास्तविकता में मुस्लिम है. बस उसके बाद वो टिपिकल तरीके से पेश आने की कोशिश करता है. भाषा में ज़्यादा से ज़्यादा उर्दू का इस्तेमाल, ‘ख’ पर ज़ोर लगाकर बोलना, आंखों में मन सूरमा भरना. वहां इस चीज़ पर तंज कसा गया था. ‘फाइटर’ इसे सीरियसली ले लेती है. पाकिस्तानी किरदारों को उसी तरह से दिखाती है जैसा हम अनेकों बार देख चुके हैं.
फिल्म की कहानी साल 2019 के पुलवाना हमले के इर्द-गिर्द रची गई है. कहानी के हीरो कुछ एयरफोर्स के पायलट्स हैं जो खुद से ऊपर उठकर देश के लिए मिशन को अंजाम देते हैं. एयरफोर्स की कॉम्बैट से लेकर उनकी ज़िंदगी को रोचक ढंग से दिखाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है. जैसे पाकिस्तान के फाइटर प्लेन F-16 को हरे रंग में पुता हुआ दिखाया गया. हमारे साथी निखिल वाठ ने बताया कि ये मुमकिन नहीं. दरअसल प्लेन को ऐसे पेंट करने से उसका मास बढ़ता है. कोशिश यही होती है कि उसे एकदम लाइट रखा जा सके. बहरहाल, सिद्धार्थ आनंद ने भले ही अपनी क्रिएटिव लिबर्टी के लिए कुछ बदलाव किए हों. लेकिन वो फिल्म के हित में काम कर जाते हैं.
पहला तो फिल्म के VFX बचकाने किस्म के नहीं लगते. खासतौर पर जब आप एयर कॉम्बैट देखते हैं. कुछ मौकों पर वो थ्रिल पैदा करते हैं. फिल्म के VFX पर DNEG ने काम किया है. ये वही कंपनी है जिसने ऑस्कर विनिंग ‘ड्यून’ के वीएफएक्स बनाए थे. इसी कंपनी ने ‘ब्रह्मास्त्र’ और ‘भेड़िया’ जैसी फिल्मों के वीएफएक्स भी डिज़ाइन किए थे. टेक्निकल फ्रंट पर फिल्म में दुरुस्त काम हुआ है. फिल्म के इंटरवेल ब्लॉक में इंडियन एयरफोर्स का एक प्लेन पाकिस्तान की ज़मीन पर क्रैश करने वाला होता है. यहां हम देखते हैं कि बशीर (अक्षय ओबेरॉय) और ताज (करण सिंह ग्रोवर) के प्लेन पर हमला हुआ है. अब तक इस एक्शन सीक्वेंस में ज़्यादातर लॉन्ग शॉट्स थे जहां इंडिया और पाकिस्तान, दोनो के प्लेन्स में हम चेज़ देखते हैं. हमला होने के बाद कैमरा ताज और बशीर के क्लोज़ अप पर फोकसू करता है. हम उनके डरे हुए चेहरे देखते हैं. पीछे हल्की सी जगह में दिखता है कि उनके प्लेन ने आग पकड़ ली है. यहां अगर लॉन्ग शॉट होता तो हम सिर्फ इतना ही समझ पाते कि उनका प्लेन क्रैश कर गया है. क्लोज़ अप ने उन दोनो को ऐन मोमेंट पर ह्यूमनाइज़ कर दिया.
सिद्धार्थ आनंद ने ‘वॉर’ और ‘फाइटर’ में एक चीज़ बरकरार रखी है. उन्हें ऋतिक की पूरी फैन सर्विस करनी आती है. सिनेमा एक विज़ुअल मीडियम है. ऋतिक का चार्म, उनके लुक्स, को सिद्धार्थ ने अच्छी तरह भुनाया है और उन्हें ऐसे पेश किया है कि उनके फैन्स को शिकायत नहीं रहेगी. बस काश ऋतिक के लिए ऐसे ही दमदार सीन भी लिखे जाते जहां वो अपने एक्टर को स्पेस दे सकते. ऋतिक की ही बात नहीं, बाकी सभी किरदारों के हिसाब से भी फिल्म का इमोशनल कोर बहुत हल्का है. ऋतिक का किरदार पैटी एक पुरानी गिल्ट के साथ जी रहा है. उसकी गलती से एक पुराने साथी की मौत हो जाती है. फिल्म उसे ठीक से जगह नहीं देती. एक जगह मिनी (दीपिका पादुकोण) एक किरदार से उस दिवंगत साथी के बारे में पूछती है. और वो सीन सिर्फ दो लाइनों में निपटा दिया जाता है. वो किरदार पैटी के लिए ज़रूरी क्यों था, उसकी वजह से वो मूव ऑन क्यों नहीं कर पा रहा, इस पर फिल्म पूरा लंबा रूट लेकर पहुंचती है.
ऋतिक, दीपिका और अनिल कपूर के हिस्से ऐसा कोई सीन नहीं आता जो इंटेंस एक्टिंग की डिमांड करता हो. कुछ इमोशनल सीन्स हैं जहां ज़रूरत के हिसाब से ये लोग डिलीवर करते हैं. फिल्म में आशुतोष राणा ने कैमियो किया है. उनके एक सीन की बात करना ज़रूरी है. वो सीन इस बात का एग्ज़ाम्पल है कि कैसे राइटिंग और एक्टिंग एक-दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करते हैं. वो फिल्म में मिनी के पिता बने हैं जो बेटी के एयरफोर्स जाने पर उससे नाता तोड़ लेता है. आगे उसे अपनी गलती का एहसास होता है. बेटी से बात करने पहुंचता है. वहां उनका किरदार अपनी मनोदशा समझाता है कि कैसे उसे हमेशा से एक बेटी की जगह बेटा चाहिए था. बेटे को वो संपत्ति समझता था. इस पूरे कुबूलनामे के वक्त वो आंखें नीचे रखता है. गिल्ट के चलते उसकी आंखें एक जगह टिककर नहीं रह पाती. अपनी पूरी बात कहने के बाद वो सिर उठाता है. हुसैन और अब्बास दलाल की रची लाइन कहता है – “आज तुझे देखने के लिए मुझे अपना सिर उठाना पड़ता है”.
म्यूज़िक बड़े किस्म की एक्शन फिल्म को एलिवेट करने का काम करता है. ‘फाइटर’ के गाने भले ही यादगार किस्म के नहीं. लेकिन दो ट्रैक्स ने मेरा ध्यान खींचा. पहला तो पैटी की थीम और दूसरा ‘मिट्टी’ गाने में इस्तेमाल किया गया ‘वंदे मातरम’ का रेंडिशन. फिल्म से एक गाना (इश्क जैसा कुछ) सेंसर बोर्ड ने उड़वा दिया था. बाकी वो फिल्म में होता तो भी एलबम की ज़्यादा मदद नहीं हो पाती. कुल मिलाकर ‘फाइटर’ एक एवरेज फिल्म है. टेक्निकल एंड पर सही काम हुआ लेकिन लिखाई के मामले में टारगेट से चूक गए.
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