The Lallantop

Fateh - मूवी रिव्यू

बतौर डायरेक्टर Sonu Sood की पहली फिल्म Fateh कैसी है?

post-main-image
Hans Zimmer ने फिल्म के लिए To The Moon नाम का स्कोर भी कम्पोज़ किया है.

Fateh (2025)
Director: Sonu Sood
Cast: Sonu Sood, Naseeruddin Shah, Jacqueline Fernandez
Rating: 2.5 Stars

Fateh कौन है? वो कहां से आया है? उसके करीबी लोग रहे हैं? जैसा वो हमको दिखता है, वो ऐसा कैसे बना. Sonu Sood की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म ‘फतेह’ में ये सवाल बने रहते हैं. सोनू ने फिल्म डायरेक्ट करने के अलावा लीड कैरेक्टर भी खुद प्ले किया. उनके अलावा Naseeruddin Shah, Vijay Raaz, Jacqueline Fernandez और Dibyendu Bhattacharya जैसे एक्टर्स भी फिल्म का हिस्सा हैं. बतौर डायरेक्टर, सोनू का डेब्यू कैसा हुआ है. अब उस पर बात करेंगे.

फतेह पंजाब में रहता है. अपना डेयरी फार्म चलाता है. शुरुआत के कुछ शॉट्स में दिखता है कि वो दूसरों की ज़रूरत, उनकी मजबूरी समझता है. चुपचाप उनकी मदद करता है. उसका यही रवैया उसे पंजाब के गांव से निकालकर दिल्ली ले आता है. यहां फतेह को साइबर फ्रॉड के रैकेट के बारे में पता चलता है. ये लोग लोन देकर लोगों को ब्लैकमेल करते हैं. उनकी ज़िंदगी बर्बाद कर देते हैं. उनका नेटवर्क पूरे देश में फैला है. इतने ताकतवर दुश्मन से वो कैसे लड़ता है, यही फिल्म की मेन कहानी है.

fateh movie review
नसीरुद्दीन शाह फिल्म के मेन विलेन बने हैं.   

ट्रेलर से ये साफ हो चुका था कि ‘फतेह’ एक प्योर एक्शन फिल्म है. अच्छी बात ये है कि सोनू ने उस पहलू में कोई आलस नहीं दिखाया. उनके काम पर कई पॉपुलर फिल्मों का इंफ्लूएंस नजर आता है मगर सोनू ने इस बीच कई इनोवेटिव और अनोखे टूल्स का इस्तेमाल किया है. एक सीन में एक शख्स चिल्लाने के लिए मुंह खोलता है, मगर हम उसकी चीख नहीं सुनते. उसकी जगह गाड़ी का तेज़ हॉर्न सुनाई देता है, और हम अगले सीन पर पहुंच जाते हैं. ऐसे ही एक सीन में किसी किरदार को मारा जा रहा होता है, उसका खून निकलने ही वाला था कि सीन कट हो जाता है. अगले शॉट में दिखता है कि एक प्लेट में केचअप निकाली जा रही है. एक और सीन में केचअप के ज़रिए खून दिखाया गया है.

इसी तरह फिल्म कुछ मौकों पर ‘शो डोंट टेल’ के सिद्धांत का पालन भी करती है. एक किरदार पूरी तरह टूट चुका है. सारी उम्मीद हारकर, नम आंखें लिए कमरे में जाता है और दरवाज़ा बंद कर लेता है. फिल्म आपको नहीं दिखाती कि उसने अपने साथ क्या किया. अगले शॉट में डेयरी फार्म में काम करने वाले उसके साथी जमा हो रहे होते हैं, और अपने कमरे की खिड़की से फतेह उन्हें देख रहा है. आप एक शीशे में इन सबकी परछाइयां देख रहे हैं. ऐसे शॉट्स दर्शाते हैं कि डायरेक्टर ने अपने काम को सीरियसली लिया. सिनेमा एक विज़ुअल मीडियम है वाले पॉइंट को समझा और विज़ुअल्स को दिखाने के लिए इंट्रेस्टिंग तरीके निकाले. ये कुछ ऐसा था जो बीते समय की बहुत सारी मेनस्ट्रीम हिन्दी फिल्मों से गायब दिखा.

fateh action scene
मेकर्स ने एक्शन में इनोवेशन दिखाने में कोई कंजूसी नहीं बरती.   

यही नयापन फिल्म के एक्शन में भी लाने की कोशिश की. ‘एनिमल’ की कामयाबी के बाद हिन्दी सिनेमा में एक्शन को लेकर एक नया ट्रेंड दिख रहा है. सभी इस होड़ में हैं कि कौन ज़्यादा खून-खच्चर दिखा सकता है. उसी क्रम में ‘फतेह’ में आपको ‘एनिमल’, ‘ओल्डबॉय’ और ‘डेयरडेविल’ के एक्शन के निशान दिखते हैं. मगर मेकर्स ने अपनी तरफ से भी नयापन लाने की कोशिश की है. जैसे एक जगह फतेह अपने दुश्मनों पर लगातार गोलियां चला रहा है. कैमरा उसी के साथ घूम रहा है. वो एक शख्स की छाती में अपनी बंदूक धंसाता है और लगातार फायर करता है. कैमरा गन के पास से होते हुए उस शख्स की छाती में जा घुसता है. ये शॉट एक ट्रांज़िशन का काम करता है.

बाकी फिल्म ने जितना नयापन अपनी एक्शन कोरियोग्राफी और एडिटिंग जैसे पहलुओं में दिखाया, काश उतना नयापन राइटिंग को भी बख्शा होता. फिल्म की राइटिंग एक ऐसा धागा है जो सभी पहलुओं को कसकर एक साथ रखता है. यहां वो धागा मज़बूत क्वालिटी का नहीं. ऐसा कहने की पहली वजह ये है कि फिल्म का कोई इमोशनल कोर नहीं है. किसी भी पॉइंट पर आपको किरदारों के प्रति कुछ महसूस नहीं होता. आप उनके साथ उनके सफर में जुड़ नहीं पाते. फतेह सिंह कैसा इंसान है, ऐसा कैसे बना, इन सवालों के जवाब कभी नहीं मिलते. फिल्म ने अपने नेगेटिव किरदारों को कैसे पेश किया, वो भी उसकी हल्की राइटिंग का ही नमूना है. नसीरुद्दीन शाह, विजय राज और दिबयेन्दु भट्टाचार्य कमाल के परफॉर्मर्स हैं. मगर इनके किरदार इतने उबाऊ, बासी और टिपिकल किस्म के हैं कि आपको रोककर नहीं रखते. ऐसा लगता है कि इन विलेन्स के पास कोई मज़बूत मोटिव ही नहीं है. हर विलेन तभी दमदार है जब वो अपनी कहानी का हीरो हो, फिल्म इस बात से कोई राब्ता नहीं रखती.

‘फतेह’ आपको बहुत निराश करती है , लेकिन फिर भी ये पूरी तरह खारिज कर देने वाली फिल्म नहीं है. फिल्म जिस नोट पर खत्म होती है, उससे दूसरे पार्ट के दरवाज़े खुलते हैं. सोनू सूद उस फिल्म में क्या करते हैं, ये देखने लायक होगा.         
                   
 

वीडियो: मूवी रिव्यू - Singham Again जानिए क्या कुछ है खास?