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शाह बानो केस पर बनने वाली फिल्म में इमरान हाशमी!

साल 1985 के Shah Bano Case ने इंडिया के लीगल सिस्टम को हमेशा के लिए बदल दिया था. अब इस केस पर बनने वाली फिल्म में Emraan Hashmi और Yami Gautam होंगे.

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ये फिल्म सात साल तक चले केस पर आधारित होगी.

बीते जनवरी में खबर आई थी कि Shah Bano Case पर एक हिंदी फिल्म बनने जा रही है. तब बताया गया कि इस फिल्म में Yami Gautam लीड किरदार में नज़र आएंगी. अब इस प्रोजेक्ट पर एक और बड़ा अपडेट आया है. PeepingMoon की नई रिपोर्ट के मुताबिक Emraan Hashmi का नाम भी इस फिल्म से जुड़ गया है. शाह बानो के केस ने इंडिया के लीगल सिस्टम को हमेशा के लिए बदल दिया था. फिल्म की कहानी सात साल तक चले केस को केंद्र बनाकर रची गई है. फिल्म में इमरान हाशमी, शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान के रोल में नज़र आएंगे.

इस फिल्म को थिएटर्स के लिए बनाया जाएगा. ‘राणा नायडू’ और ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके सुपर्ण वर्मा इस फिल्म के डायरेक्टर होंगे. वहीं ‘हीरामंडी’ पर काम कर चुकीं रेशु नाथ इस फिल्म की राइटर हैं.

# शाह बानो केस क्या था?

इंदौर की शाह बानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए 1978 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. निचली अदालत ने शाह बानो को गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया, लेकिन इसमें तय की गई रकम काफी नहीं थी. शाह बानो ने पर्याप्त गुजारा भत्ता पाने के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अपील की.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 1980 में फैसला सुनाते हुए गुजारे भत्ते की रकम बढ़ा दी. लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ शाह बानो के पति ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने भी 1985 में शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया. इसके साथ ही कोर्ट ने जजमेंट में धर्म के नाम पर औरतों के साथ किए जाने वाले अत्याचारों पर कठोर टिप्पणी की थी. सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने का सुझाव दिया था. मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार किए जाने की भी बात कही थी.

इसी के चलते मामले ने तूल पकड़ लिया. मुस्लिम उलेमाओं को लगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके धर्म पर हमला है. जगह-जगह प्रदर्शन हुए. फैसले को बदलने के लिए मांग होने लगी.

# राजीव गांधी सरकार नया कानून ले आई

इसका राजीव गांधी सरकार पर दबाव पड़ा और सरकार द मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 ले आई. इसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए इद्दत के तीन महीने बाद शौहर की गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी खत्म होने वाली बात थी. ये बात भी थी कि अगर इद्दत की मियाद के बाद तलाकशुदा औरतें अपना खर्चा नहीं उठा पाएं, तो उनकी जिम्मेदारी उनके किसी रिश्तेदार पर हो सकती है. वो भी ना हो तो स्थानीय वक्फ बोर्ड पर.

5 मई, 1986 को संसद में द मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 पास हुआ था. इस कानून की समाज के कई वर्गों ने कड़ी आलोचना की थी. विपक्ष ने इसे कांग्रेस की तरफ से अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति "तुष्टिकरण" का कदम बताया था. वहीं इसके बाद आने वाले सालों में सुप्रीम कोर्ट ने कई केसों में इसी एक्ट की व्याख्या करते हुए कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को इद्दत के बाद भी गुजारे भत्ते का अधिकार है.
 

वीडियो: तारीख: क्या था शाह बानो केस जिसने भारतीय राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया?