Do Patti
Director: Shashanka Chaturvedi
Cast: Kajol, Kriti Sanon, Shaheer Sheikh
Rating: 2 Stars (**)
दो पत्ती - मूवी रिव्यू
कैसी है Kajol, Kriti Sanon और Shaheer Sheikh की फिल्म Do Patti?
फिल्म की शुरुआत दो जुड़वा बहनों से होती है – सौम्या और शैली. दोनों के रोल कृति सैनन ने किए हैं. सौम्या इंट्रोवर्ट किस्म की लड़की है. शांत रहने वाली. दूसरी ओर शैली स्ट्रीट स्मार्ट टाइप की लड़की है. वो ऐसी इंसान नहीं जिसे आसानी से कोई भी ठग सके. बिल्कुल सीता और गीता जैसा हिसाब है. खैर बचपन से ही दोनों की बिल्कुल नहीं बनती. शैली की आदतों के चलते उसे घर से दूर भेज दिया जाता है. कहानी कुछ साल आगे बढ़ती है. सौम्या की मुलाकात ध्रुव सूद से होती है. सौम्या को उससे प्यार हो जाता है. सब कुछ पिक्चर परफेक्ट चल रहा होता है, तभी फिर से लाइफ में शैली की एंट्री होती है. वो क्या घमासान मचाती है, तीनों लोगों की ज़िंदगी कैसे बदलती है, यही फिल्म की कहानी है. इन तीन किरदारों के अलावा यहां इंस्पेक्टर विद्या ज्योति भी है. अपनी नौकरी से असंतुष्ट और लॉ की पढ़ाई कर चुकी विद्या बस ये समझने की कोशिश कर रही है कि सौम्या, शैली और ध्रुव की ज़िंदगी में आखिर चल क्या रहा है.
हर फिल्म की एक सेंट्रल थीम होती है. यानी वो आइडिया जो पूरी फिल्म को बांधकर रखता है. जैसे हॉलीवुड फिल्म The Shawshank Redemption का सेंट्रल आइडिया उम्मीद यानी Hope था. ‘दो पत्ती’ के केस में वो सेंट्रल थीम क्लियर नहीं है. पहले आपको लगता है कि ये दो बहनों की खींचतान पर केंद्रित है. कि कैसे बचपन से एक को दूसरी से दिक्कत रही. चाहे वो मां का अटेंशन पाना हो या परिवार में अपनी जगह समझनी हो. शुरुआत से फिल्म का हर पहलू इसी दिशा में संकेत करता है कि शैली, सौम्या की लाइफ में उथल-पुथल मचाने को आतुर है. लेकिन फिर अचानक से कहानी खत्म होते-होते ये पूरा आइडिया बदल जाता है. ये घरेलू हिंसा जैसी भयावह सच्चाई पर आधारित कहानी बन जाती है. दोनों बहनों का रिश्ता बदल जाता है. सब कुछ एकदम फ्लिप हो जाता है. मेकर्स को लगा होगा कि वो ऐसा कर के ऑडियंस को चौंका देंगे, मगर ऐसा कोई इफेक्ट पैदा नहीं हो पाता. आपके हाथ बस निराशा रह जाती है.
हमारे यहां बननेवाली अधिकांश फिल्मों के साथ एक और बड़ी समस्या है. कि उनको देखकर किसी-न-किसी फिल्म की याद आती है. उनके रेफ्रेंस वास्तविक दुनिया से आने की बजाय सिनेमा से आते हैं. एक सेट ट्रेट वाला किरदार कैसे बर्ताव कर रहा है, उसे देखकर झट से आपके दिमाग में कोई फिल्म कौंधेगी. ‘दो पत्ती’ में भी ऐसा ही होता है. सिनेमा में अनेकों बार इस्तेमाल किए गए ट्रोप दिखते हैं. वो फिल्म के अनुभव को एलिवेट करने की जगह उसे बैठा देते हैं. शाहीर शेख का किरदार ध्रुव सूद यहां विलन है. जब भी वो अपना डार्क साइड दिखाएगा तो उसका एक ही तरीका होगा. जबड़े को भींचकर, गर्दन टेढ़ी कर, धीमी आवाज़ में बात करना. देखकर लगता है कि यहां शाहीर का दोष नहीं. वो अपनी तरफ से दो चीज़ें जोड़ने की ही कोशिश करते हैं. मगर स्क्रिप्ट उनके हिस्से कोई यादगार सीन नहीं आने देना चाहती. कृति ने दो रोल किए, दोनों में उन्होंने ठीक काम किया. मगर दोनों एक्स्ट्रीम एंड पर चलते हैं. सौम्या के रोल में वो एकदम शांत, composed लगती हैं. दूसरी ओर शैली तेज़-तर्रार किस्म की है. कृति ने उस किरदार को सौम्या से बिल्कुल विपरीत बनाया. विद्या ज्योति बनी काजोल को मेकर्स ने दो सांचो में फिट कर दिया. पहला है ‘कभी खुशी कभी गम’ के जैसा, जहां वो हंस-खेलकर किसी से मज़ाक कर लें. दूसरा है सीरियस किस्म का. इतना काफी नहीं था तो ऊपर से उन्हें एक एक्सेंट भी दिया गया जो बस खलल डालने का ही काम करता है.
‘दो पत्ती’ हर मायने में बहुत टिपिकल फिल्म है. थोड़ा भी ध्यान से देखेंगे तो पूरी कहानी आपके लिए पहले ही खुल जाएगी. ये आपके विवेक और समझ के साथ खिलवाड़ करती है. कुछ इंटेलिजेंट ऑफर नहीं करती. कहानी कसी हुई नहीं, विद्या ज्योति जांच कर रही है और कुछ जगहों पर बिना इजाज़त लिए ऐसे ही घुस जाती है. उसे केस नहीं मिला, फिर भी सरकारी खर्च पर उत्तराखंड से हरियाणा चली जाती है. ऐसे लूपहोल्स को कोई कैसे जस्टिफाय कर सकता है.
मेरे लिए किसी सॉलिड थ्रिलर फिल्म का पैमाना है कि उसे देखते ही महसूस हो कि दिमाग का ये हिस्सा उड़ जाए. ताकि उसी नए उत्साह से फिल्म को फिर से देखा जा सके. ‘दो पत्ती’ को देखने के बाद ऐसी कोई कामना नहीं हुई.
वीडियो: आलिया भट्ट की जिगरा- मूवी रिव्यू हमसे जान लीजिए