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वेब सीरीज़ रिव्यू - दहाड़

'दहाड़' अपनी मैसेजिंग में भटकता नहीं. उसे पूरी मज़बूती के साथ पेश करने की हिम्मत रखता है.

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'दहाड़' की राइटिंग उसका सबसे मज़बूत पक्ष है. फोटो - स्क्रीनशॉट

सोनाक्षी सिन्हा पुलिस थाने में अंदर घुसती हैं. उन्होंने पुलिस ऑफिसर की वर्दी पहनी है. वर्दी पर नाम लिखा है अंजली भाटी. राजस्थान के मंडावा पुलिस स्टेशन के हॉल से होते हुए अंजली अपनी डेस्क तक पहुंच रही है. एक पुलिसवाले उसे देखकर मुंह बनाता है. अपनी डेस्क की दराज़ से अगरबत्तियां निकालता है. अपने लाइटर से उन्हें जला लेने के बाद उसे थोड़ा आराम मिलता है. बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था कि अंजली जैसा कोई उसके बराबर कैसे काम कर सकता है. पहला तो वो एक महिला है. ऊपर से कथित नीची जाति से. ये अमेज़न प्राइम वीडियो की सीरीज़ ‘दहाड़’ का एक सीन है. शो में लगातार ये सीन आता रहता है. हम सबको ये आभास दिलाने के लिए कि हम जिस प्रगतिशील दुनिया में मुंह ऊपर कर के जी रहे हैं. उसकी जड़ें आज भी अंदर से सड़ी हुई हैं. 

ऊपर बताए सीन के आधार पर ‘दहाड़’ को प्रोमोट नहीं किया गया. ज़ोया अख्तर और रीमा कागती के बनाए शो की कहानी खुलती है मर्डर से. एक-के-बाद-एक लगातार लड़कियों की लाशें पब्लिक टॉइलेट से मिल रही हैं. सबकी मौत  एक ही तरह से हुई. पुलिस उस सीरियल किलर तक कैसे पहुंचती है. और उस सफर में उन्हें क्या-कुछ देखने को मिलता है, ये शो का मेन प्लॉट है. 

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शो अपनी ऑडियंस से खटकने वाले सवाल पूछता है. 

अगर ‘दहाड़’ को थ्रिलर शो मानकर देखने बैठेंगे तो निराश होंगे. आपको पहले एपिसोड में ही पता चल जाता है कि खून कर कौन रहा है. अपने आठ एपिसोड में ये शो इस मिस्ट्री पर नहीं खेलता. ये कहानी सतही नहीं. ये अपने समय और उसमें घट रही पॉलिटिक्स के प्रति सजग है. उसे किसी ऑडियंस की तरह नहीं देखती. बल्कि उस पर कमेंट्री करती है. इस कहानी को राजस्थान में सेट करने की भी ठोस वजह है. हम अंजली से मिलते हैं. अन्य मुख्य किरदारों की तरह वो ऑडियंस की फेवरेट कैरेक्टर नहीं. ऐसी नहीं कि जिसे हर कोई पसंद करे. उसे सब को खुश भी नहीं रखना. उसे बस सही बात कहनी है. वो सही बहुत सारे लोगों को चुभती है. उन्हें गलत लगती है. 

वो लोग जो मानते हैं कि लड़कियों की फलां-फलां उम्र में शादी हो जानी चाहिए. वो लोग जो खुद को कथित ऊंची जाति का मानते हैं. ऐसे ही अनुभवों ने अंजली को बल दिया. तभी कहती है,

बहुत दरवाज़े बंद हुए मेरे मुंह पर, लेकिन मेरा मुंह बंद नहीं हुआ. 

सुमित अरोड़ा ने शो के लिए डायलॉग लिखे हैं. जिस तरह उन्होंने शेखावाटी भाषा के शब्दों को किरदारों की बोलचाल में ढाला, वो तारीफ के काबिल है. अंजली को सिर्फ यही आभास नहीं दिलाया जाता कि उसकी जाति क्या है. इस बात का आभास भी करवाया जाता है कि वो एक महिला के शरीर में जन्मी है. थाने के हवलदार उसे ‘भाटी साब’ बुलाते हैं. आखिर काम करते पुलिसवाले के रूप में पुरुषों की छवि ही तो पुख्ता है. एक्शन लेते पुलिसवाले को हम ऐंग्री यंग मैन और सिंघम की उपमा देते हैं. यही चीज़ें जब अंजली करती है तो सेक्सिज़म झेलती है. 

‘दहाड़’ में हत्यारा 29 लड़कियों को एक ही तरह से मार डालता है. अलग-अलग जिलों, क्षेत्रों से आने वाली लड़कियों को उसने एक ही बात बोली. सभी उसके जाल में फंस गईं. ऐसा कैसे मुमकिन हुआ. ‘दहाड़’ उस किलर की धूर्तता से ज़्यादा उन लड़कियों के जीवन पर बात करता है. उनकी लाइफ में ऐसी क्या कमी थी जो किसी अनजान शख्स ने प्यार से बात की और वो सब कुछ पीछे छोड़कर उसके साथ चली गईं. उन्हें अपने घर की दीवारों में और उसके बाहर समाज की अदृश्य दीवारों में कैसा माहौल मिल रहा था, जो उन्होंने खुशी से ये फैसला लिया. शो ये सवाल हम सभी से पूछता है. मेरे हिसाब से ये शो सभी इंडियन पेरेंट्स को देखना चाहिए. ये समझने के लिए कि आपकी कुंठा, क्रोध में कही गई बात एक बच्चे के दिमाग के साथ क्या कर सकती है. उसे ज़िंदगी भर एक ऐसे डर के साथ अकेला छोड़ देती है जिसकी कोई जगह ही नहीं होनी चाहिए थी. ये सारी थीम हम पुलिसवालों और हत्यारे के परिवार के ज़रिए देखते हैं. 

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सोनाक्षी सिन्हा का करियर बेस्ट काम माना जा सकता है.  

शो के विलेन की बात की जानी ज़रूरी है. कद-काठी, शक्ल से वो ऐसा नहीं जिसे देखकर डर लगे. वो ऐसा इंसान है जो सुबह मोहल्ले में हमें दिख जाए. उससे हाई-हैलो हो. हम आगे बढ़ जाएं और खुद से कहें कि कितना भला आदमी है. यही उसकी सबसे भयावह बात है. कि वो हमारे साथ रहने वाले किसी भी दूसरे इंसान जैसा है. किसी के साथ हाथापाई करने में सक्षम नहीं. उसके लिए सबसे बड़ा हथियार है दिमाग, उसका और सामने वाले का. वो किसी से बात करे और मिनटों में सामने वाले की सबसे बड़ी इनसिक्योरिटी पर चोट कर देगा. यही उसे खतरनाक बनाता है. कागज़ पर जैसा वो लिख गया, उसके साथ विजय वर्मा उतना ही इंसाफ करते हैं. कुछ पॉइंट्स पर उसे देखकर गुस्सा आता है. लेकिन कभी बुरा भी लगता है. ये भाव लगातार बदलते रहते हैं. विजय आपसे ये रिएक्शन निकलवा पाते हैं, ये उनकी ताकत है. 

अंजली बनी सोनाक्षी सिन्हा के लिए ये करियर बेस्ट कामों में से एक है. अंजली जिस माहौल से उठी है वो उसे कमज़ोर पड़ने की इजाज़त नहीं देता. वरना दुनिया कच्चा चबा जाएगी. अंजली को उसके हिस्से की हिम्मत, सख्ती देने का बढ़िया काम किया है सोनाक्षी ने. गुलशन देवैया अंजली के सीनियर देवी लाल बने हैं. एक ऐसा आदमी जो सही करना चाहता है. लेकिन जानता है कि वो वास्तविक दुनिया में ही जी रहा है. जिन मोमेंट्स में वो पुलिसवाले बन सख्ती नहीं दिखा रहे, वो सीन देखने लायक हैं. चाहे वो फिर एक ‘कूल पिता’ बने हों या एक ईमानदार सहकर्मी. गुलशन कैरेक्टर पर से अपनी पकड़ नहीं छूटने देते.

कुछ ऐसा ही सोहम शाह के किरदार कैलाश के बारे में भी कहना चाहिए. सीरीज़ खत्म होने तक सबसे ज़्यादा बदलाव उसी में आता है. सोहम को एंड में देखने पर लगता है कि क्या ये वही शख्स है जिसे हमें शुरुआती एपिसोड में देखा था. वो किरदार के ट्रांज़िशन के साथ खुद को ढालते हैं. ‘दहाड़’ में मुझे ज़्यादातर चीज़ें पसंद ही आईं. सिवाय एक चीज़ के. कि ये शो विलेन के दिमाग में गहराई से नहीं उतरता. अंत में उससे पूछा जाता है कि तूने ये सब क्यों किया. और वो एक लाइन में बात निपटाने वाले जवाब देता है. शो के क्लाइमैक्स को भी जल्दी में निकाला गया. उसे समय दिया जाना चाहिए थे. बहरहाल, मेरी रिकमेंडेशन है कि ‘दहाड़’ देखा जाना चाहिए. ये ऐसी कहानी है जो अपनी मैसेजिंग में भटक नहीं जाती. उसे पूरी मज़बूती के साथ पेश करने की हिम्मत रखती है. 
  
 

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