फिल्म- क्रेज़ी
डायरेक्टर- गिरिश कोहली
एक्टर्स- सोहम साह, निमिषा सजयन, टीनू आनंद, शिल्पा शुक्ला, पीयूष मिश्रा
रेटिंग- 2.5 स्टार्स
फिल्म रिव्यू- क्रेज़ी
'तुम्बाड' वाले सोहम साह की नई फिल्म Crazxy कैसी है, जानने के लिए देखें ये रिव्यू.

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'तुम्बाड' वाले सोहम साह की नई फिल्म आई है Crazxy. मगर इसे 'क्रेज़ी' पढ़ा-बोला जाना चाहिए. वीर पहाड़िया और 'स्कायफोर्स' के बाद सोहम और 'क्रेज़ी' पीआर ओवरड्राइव के परफेक्ट उदाहरण हैं. 'तुम्बाड' को राही अनिल बर्वे ने लिखा और डायरेक्ट किया था. वो पूरी तरह से उनका आइडिया था. सोहम ने ऐन वक्त पर फिल्म को फाइनेंस किया और फिल्म में लीड रोल किया. ख़ैर, संदर्भ के बाद हम एक फिल्म के तौर पर 'क्रेज़ी' की बात करते हैं.
'क्रेज़ी' अभिमन्यु सूद नाम के एक सर्जन के जीवन में घटने वाले एक दिन की कहानी है. अभिमन्यु ने एक पेशेंट की सर्जरी की, जिसके बाद उसकी मौत हो जाती है. मरीज के परिवारवाले उसके खिलाफ कोर्ट जाते हैं. मगर 5 करोड़ में कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने को तैयार हो जाते हैं. जब अभिमन्यु वो पैसे लेकर घर से निकलता है, तभी उसे एक फोन कॉल आता है. ये एक फोन अभिमन्यु की पूरी सिचुएशन को बदल देता है. अब उसके बाद सिर्फ एक घंटे का समय है, जिसमें उसे अपने एक करीबी की जान बचानी है. अभिमन्यु ये कर पाता है या नहीं, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
'क्रेज़ी' सिंगल कैरेक्टर थ्रिलर फिल्म है. यानी इस पूरी फिल्म में सिर्फ एक किरदार नज़र आता है. अमूमन सिंगल कैरेक्टर्स वाली जो फिल्में होती हैं, उनमें वो किरदार एक ही लोकेशन तक महदूद रहता है. मगर 'क्रेज़ी' अपने उस किरदार को उठाकर सड़क पर पटक देती है. ताकि ये फिल्म के फास्ट-पेस्ड थ्रिलर फिल्म बन सके. शुरुआती कुछ मिनटों में फिल्म वैसी चलती भी है. मगर बीतते समय के साथ दर्शकों पर उसकी पकड़ कमज़ोर होती चली जाती है. मेकर्स ने फिल्म के क्लाइमैक्स में दो चीज़ें करने की कोशिश की हैं. अव्वल, तो फिल्म को इमोशनल नोट पर खत्म करने की कोशिश. और दूसरा डाउन सिंड्रोम और उससे पीड़ित लोगों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाने की कवायद. मगर दोनों में से कोई भी चीज़ ढंग से हो नहीं पाती. जिससे ओवरऑल फिल्म का प्रभाव कम होता है.
'क्रेज़ी' देखते हुए आपको 'इत्तेफ़ाक' जैसी फिल्में याद आती हैं. मगर 'क्रेज़ी' में उस हड़बड़ाहट का अभाव नज़र आता है. अगर दिखती भी है, तो उसमें विसंगति है. मसलन, फिल्म का एक सीन है, जब अभिमन्यु को लगता है कि जो फोन कॉल उसे आया, उसके पीछे उसकी पूर्व पत्नी का हाथ है. वो उस मामले की पूरी जांच-पड़ताल किए बग़ैर इस नतीजे पर पहुंच जाता है. जबकि असल समस्या वो नहीं है, जो अभिमन्यु को लगता है. इसलिए जब उसके पास समय की कमी है, तब वो सड़क किनारे गाड़ी लगाकर टेंशन में सिगरेट पीने लगता है. जिससे दर्शकों को ऐसा लगता है कि जिस आदमी के लिए हर सेकंड कीमती है, वो सड़क किनारे खड़े होकर सिगरेट पीते हुए आसमान कैसे निहार रहा है. जो मैंने अर्जेंसी और हड़बड़ाहट मिसिंग होने वाली बात कही, वो यहां से उपजती है.
हालांकि, 'क्रेज़ी' के बारे में ये नहीं कहा जा सकता है कि मेकर्स वो फिल्म बनाने में चूक गए, जो वो बनाना चाहते थे. एक थ्रिलर के तौर पर ये फिल्म अच्छे अंक से क्वॉलिफाई करती है. इस फिल्म का हाइलाइट वो सीन है, जहां अभिमन्यु की गाड़ी का टायर पंचर हो जाता है. वो अपनी कार का टायर बदलने के साथ-साथ वीडियो कॉलिंग की मदद से अपने जूनियर को सर्जरी के लिए गाइड कर रहा है. ये पूरा सीक्वेंस शानदार है. और इसमें आपको सोहम साह की परफॉरमेंस भी प्रभावशाली है. वैसे तो पूरी फिल्म में उनका काम शानदार है. मगर मेकर्स ने कुछ एक्टर्स से सिर्फ वॉइस एक्टिंग करवाई है. यानी सिर्फ उनकी आवाज़ सुनाई आती है, वो फिल्म में किसी मौके पर दिखाई नहीं देते. सोहम की पूर्व पत्नी की आवाज़ निमिषा सजयन ने दी है. वहीं उनकी प्रेमिका की आवाज़ शिल्पा शुक्ला की है. इसके अलावा पीयूष मिश्रा और टीनू आनंद की आवाज़ भी फिल्म में सुनने को मिलती है. मगर उन किरदारों के नज़र नहीं आने से एक अधूरेपन का भाव पैदा होता है. आप तृप्त नहीं हो पाते.
'क्रेज़ी' एक ठीक-ठाक थ्रिलर फिल्म है. अगर आप बहुत उम्मीदें लेकर ये फिल्म देखने नहीं गए हैं, तो आप निराश नहीं लौटेंगे. आपको वो सब मिलता है, जो फिल्म ने वादा किया था. बाकी बेहतरी की गुंजाइश हर चीज़ में होती है. 'क्रेज़ी' भी इससे अछूती नहीं है.
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