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मूवी रिव्यू: कोबरा

‘कोबरा’ के पास स्केल था, ऑडियंस थी. नया ट्राइ किया जा सकता था. उसकी जगह मेकर्स ने सेट ढर्रे पर चलना ज़्यादा बेहतर समझा.

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फिल्म की सबसे बडी समस्या है कि वो वही दिखाती है जो आप दर्जनों बार पहले भी देख चुके हैं.

पोस्टपोन होते-होते चियां विक्रम की फिल्म ‘कोबरा’ फाइनली रिलीज़ हो गई है. फिल्म को बनाया है अजय न्यानमुत्थु ने. ए आर रहमान ने फिल्म के लिए म्यूज़िक दिया है. विक्रम के साथ फिल्म में रोशन मैथ्यू और ‘KGF’ फेम श्रीनिधि शेट्टी जैसे एक्टर्स भी हैं. साथ ही पूर्व क्रिकेटर इरफान पठान ने भी फिल्म से अपना एक्टिंग डेब्यू किया है. इतने सारे लोगों ने साथ आकर कैसी फिल्म बनाई है, आज के रिव्यू में उसी पर बात करेंगे. 

ओडिसा का मुख्यमंत्री. फ़्रांस का मेयर. स्कॉटलैंड का प्रिंस. रूस का डिफेंस मिनिस्टर. इन सब में एक बात कॉमन थी, कि इन सबकी हत्या कोबरा नाम के शख्स ने की है. कोबरा के पीछे छिपा है मदी नाम का आदमी. मदी मुश्किल हालात में बड़ा हुआ. लेकिन उसकी मैथ्स पर पकड़ ने कुछ हद तक ज़िंदगी आसान बनाने की कोशिश की. मैथ्स के मामले में मदी जीनियस आदमी है. मतलब कोई उसका हाथ नहीं पकड़ सकता. मदी अपनी इसी नॉलेज की मदद से, और प्रॉस्थेटिक की मदद से, बड़े-बड़े लोगों के मर्डर किए जा रहा है. इंडिया की इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी से लेकर इंटरपोल तक सब उसके पीछे हैं. मदी ऐसा क्यों कर रहा है, आगे पूरी फिल्म परत-दर-परत यही खोलना चाहती है. 

vikram cobra
विक्रम के किरदार को सिर्फ मैथ्स की नॉलेज नहीं. उसका प्रॉस्थेटिक गेम भी स्ट्रॉन्ग है.      

कुछ फिल्में होती हैं जिनका वन लाइनर सुनने में बहुत स्मार्ट लगता है. ये फिल्में भी खुद को स्मार्ट समझती हैं, कि हम कुछ अदभुत और नया ही बनाने जा रहे हैं. लेकिन ये फिल्में स्मार्ट होती नही. ‘कोबरा’ ऐसी ही फिल्म है. मेकर्स के पास खर्च करने के लिए खूब पैसा था. विदेशी लोकेशन्स पर जाकर शूटिंग भी की गई. बड़े एक्टर्स को साइन किया. फिल्म बनाने में एक्टर, लोकेशन आदि जैसी चीज़ें बाद में आती हैं. सबसे पहले आती है कहानी. उसी स्तर पर फिल्म पिछड़ जाती है. आप लॉजिक तलाशते-तलाशते परेशान हो जाएंगे. ऐसा कैसे हो सकता है, ऐसा क्यों हुआ, ये सवाल एक या दो नहीं बल्कि अनगिनत मौकों पर आपको परेशान करेंगे. 

इंटरनेशनल एजेंसी जांच कर रही है, और उनके ऑफिस में एक कॉलेज स्टूडेंट घुस आती है. वो सबके सामने बता रही है कि कोबरा ने अपने मर्डर कैसे किए होंगे. बस अगले हर पल से वो भी जांच एजेंसी के साथ बिना रोक-टोक साथ हो जाती है. विक्रम के किरदार मदी की ज़िंदगी के तीन हिस्से हम देखते हैं. एक बचपन, दूसरा जवानी और तीसरा आज का समय. तीनों की टाइमलाइन ऐसी है कि कोई फिरकी ले रहा हो. ये आपस में मैच नहीं होतीं. 

roshan mathew
रोशन का किरदार टिपिकल विलेन वाली हरकतें ही करता रहता हैं. 

फिल्म फर्स्ट हाफ में ही थकाने लगती है. फिर आता है सेकंड हाफ, जहां मिस्ट्री खुलनी है. किरदार की करनी के पीछे की वजह क्लियर होनी है. सेकंड हाफ फिल्म को धकेलता ही है. उसे इंट्रेस्टिंग बनाने में कोई मदद नहीं करता. स्पॉइलर नहीं दूंगा, बस इतना कहूंगा कि सेकंड हाफ को बनाने में ‘प्रेस्टीज’ और ‘धूम 3’ को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया. ये अपने आप में कितना नया है, इसका अंदाज़ा आप खुद लगा लीजिए. फिल्म में विक्रम का किरदार मदी स्कीज़ोफ्रेनिया से जूझता है. फिल्म उसे सेंसीटिविटी के साथ डील करने की जगह रहस्य की तरह पेश करने में इच्छुक दिखती है. कुछ सीन्स हैं, जहां मदी को हम हैलूसिनेट करते हुए देखते हैं. उन्हीं में से एक है इंटेरोगेशन वाला सीन, जहां मदी से पूछताछ हो रही है. विक्रम इस सीन में कमाल करते हैं. उनके हावभाव, आवाज़ की टोन, सब कंट्रोल में रहते हैं. बस इस सीन के साथ एक मसला है. उसे देखकर ‘अन्नियन’ या कहें तो ‘अपरिचित’ की याद आती है. ऐसा लगता है कि अजय विक्रम को उसी सांचे में फिट करना चाहते थे. 

फिल्म में रोशन मैथ्यू का किरदार एक बड़े बिज़नेसवाला बंदा है. फिल्मों में किसी सनकी या साइकोपैथ कैरेक्टर के लिए जो रगड़ा हुआ टेम्पलेट है, बस उसी में रोशन का किरदार ऋषि घूमता है. ज़ोर-ज़ोर से हंसना. हंसते-हंसते बेवजह गोलियां चला देना. अपने ही गुर्गों को मार डालना. ऋषि ये तमाम हरकतें करता है. उसका एंट्री सीन ही एक किसिंग सीन है, ये दर्शाने के लिए कि वो कितना बुरा है. श्रीनिधि शेट्टी ने भावना नाम का कैरेक्टर प्ले किया, जो मदी का लव इंट्रेस्ट है. रोमांस के डिपार्टमेंट में भी फिल्म ताज़ा नहीं. ये हिस्सा कम कर देते तो भी नैरेटिव पर ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता. 

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इरफान पठान बस फिल्म में हैं. 

बस इस हिस्से का एक ही फायदा है. श्रीनिधि को इतना स्क्रीन प्रेज़ेंस मिलता है, जितना उन्हें ‘KGF’ के दोनों पार्ट्स में नहीं मिला. ‘कोबरा’ इरफान पठान की पहली फिल्म थी. वो यहां इंटरपोल एजेंट बने हैं. फिल्म में वो ऐसे हैं कि उनकी जगह किसी को भी लिया जा सकता था. मतलब वो कुछ जोड़ नहीं पाते. ‘कोबरा’ के पास स्केल था, ऑडियंस थी. नया ट्राइ किया जा सकता था. उसकी जगह मेकर्स ने सेट ढर्रे पर चलना ज़्यादा बेहतर समझा. ऐसे में ए आर रहमान का म्यूज़िक भी फिल्म की कोई खास मदद नहीं कर पाता.      

वीडियो: मूवी रिव्यू - लाइगर