Citadel: Honey Bunny
Creator: Raj & DK
Cast: Varun Dhawan, Samantha Prabhu, Kay Kay Menon
Rating: 2.5 Stars
Citadel: Honey Bunny - सीरीज़ रिव्यू
Varun Dhawan और Samantha Prabhu की सीरीज़ Citadel: Honey Bunny स्टैंड आउट करती है या नहीं, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.
Avengers: Endgame वाले Russo Brothers ने Citadel यूनिवर्स की नींव रखी थी. उसका इंडियन अडैप्टेशन Citadel: Honey Bunny अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुआ है. इसे The Family Man वाले Raj & DK ने बनाया है. Varun Dhawan और Samantha Prabhu लीड रोल में हैं. उन्होंने बनी और हनी के रोल किए हैं. बिना ज़्यादा शब्द खर्च किए, अब सीरीज़ पर बात करते हैं.
ये सीरीज़ दो टाइमलाइन में चलती है – 1992 और 2000. साल 2000 में हम देखते हैं कि हनी और उसकी बेटी नाडिया के पीछे कुछ लोग पड़े हैं और वो उनसे बचकर भाग रही है. इसका कनेक्शन उसके अतीत से है. साल 1992 में वो एक स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस थी. हर ऑडिशन से रिजेक्ट होकर घर लौट आती. सेट पर उसकी दोस्ती थी स्टंटमैन बनी से. बनी बाहर से एक स्टंटमैन है लेकिन दोहरी ज़िंदगी जी रहा है. सीक्रेट एजेंट बनकर मिशन पर जाता है. बाबा नाम के शख्स को रिपोर्ट करता है और उसकी हर बात का आंख बंद कर के पालन करता है. बनी की इसी दूसरी दुनिया में हनी की भी एंट्री होती है. दोनों एक मिशन पर जाते हैं. वहां चीज़ें इतनी बिगड़ जाती हैं कि उनका वर्तमान, भविष्य ट्रैक से उतर जाता है. इस खतरे से कैसे डील करेंगे, और वो मिशन क्या था, यही शो की कहानी है.
राज एंड डीके के काम में उनका कुछ सिग्नेचर नज़र आता है. जैसे एक है उनका क्वर्की ह्यूमर. उसके निशान यहां भी देखने को मिलते हैं. जैसे पहले एपिसोड में हनी और बनी बाइक पर निकले हैं और उनके पीछे दुश्मन पड़े हैं. सामने एक ट्रक आ जाता है. हनी कहती है कि स्लाइड मत करना. यानी बाइक को झुकाकर इसके नीचे से मत निकाल लेना. ऐसा हम दर्जनों एक्शन फिल्मों में होते देख चुके हैं. पर बनी ऐसा कुछ नहीं करता. वो हनी से कहता है कि क्या तुम पागल हो. इतना कहकर बाइक रोककर उसकी दिशा मोड़ लेता है. उसके दूसरे सिग्नेचर स्टाइल है लॉन्ग टेक. कोई एक्शन सीन चले जा रहा है और कैमरा कट नहीं करता. ‘सिटाडेल’ के कुछ एक्शन सीन्स भी ऐसे ही फिल्माए गए हैं.
क्लाइमैक्स वाली मार-धाड़ को ऐसे शूट किया गया कि जैसे कैमरा एक्टर्स के साथ ही चल रहा हो. इससे सीन में पर्याप्त थ्रिल पैदा होता है. साथ ही दिखता है कि एक्शन सीन्स को कितना अच्छे से कोरियोग्राफ किया गया, और एक्टर्स एक-दूसरे के साथ कितना sync में थे. ये वो पॉइंट्स हैं जो सीरीज़ को उठाने का काम करते हैं. मगर ऐसा तभी हो सकता है कि जब आपकी नींव यानी राइटिंग मज़बूत हो. ‘सिटाडेल: हनी बनी’ के केस में ऐसा नहीं हो पाता. सीरीज़ अपनी दोनों टाइमलाइन को साथ लेकर चलती है. लेकिन अंत में जिस तरह उन्हें मिलाती है वो बहुत बचकाना लगता है. किरदार सब कुछ बोलकर बता रहे हैं और आगे बढ़ जाते हैं. छला हुआ सा महसूस होता है.
आपके किरदार की जर्नी उस बात से निर्धारित होती है उसके रास्ते में कितनी और कैसी रुकावटें आ रही हैं. ‘सिटाडेल’ के साथ ये प्रॉब्लम है कि ये अपने सारे सिक्के क्लाइमैक्स वाले सस्पेंस पर लगा देता है. उससे पहले तक हनी और बनी के लिए सब कुछ मुट्ठी में है. किसी सीन में वो फंसे, उसके अंत तक ही उससे बाहर निकल जाते हैं. हीरो का सफर तभी यादगार रहेगा जब उसे कोयले की तरह जलाया जाए. जितनी ज़्यादा मुश्किल, आप उतना ही उसकी कहानी में इंवेस्टेड होंगे. क्लाइमैक्स के चक्कर में ‘सिटाडेल’ ये नहीं करता, और क्लाइमैक्स आने तक आपको फर्क पड़ना बंद हो जाता है. अचानक प्रकट हुए बहुत सारे इत्तेफाक पूरा ड्रामा खत्म कर देते हैं.
ऐसा नहीं है कि शो की राइटिंग के नाम हम सिर्फ शिकायत पत्र ही लिख रहे हैं. यहां कुछ ऐसी बातें भी हैं जिनकी पूरी तारीफ होनी चाहिए. जैसे मुझे ये सीरीज़ देखते वक्त लगा कि ये दो एजेंट्स की बजाय एक परिवार के आइडिया पर बात करती है. हनी और बनी के बचपन ऐसे रहे कि वहां प्यार और अपनेपन के लिए कभी जगह ही नहीं बन पाई. ऐसे में बनी को मिलते हैं बाबा. उसका रोल केके मेनन ने किया. बाबा एक टेक्स्टबुक उदाहरण है कि एक पेरेंट को कैसा नहीं होना चाहिए. वो अपने बच्चों की वफादारी चेक करने के लिए उन्हें जला-भूना चिकन खिलाता है. एक के सामने दूसरे की तारीफ करता है, कि वो होता तो मुझे सोचना ही नहीं पड़ता. प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करने की कोशिश करता है. बस फिर उसके गोद लिए हुए बच्चे उसके प्यार को पाने के लिए सही-गलत की सीमा लांघ जाते हैं. सीरीज़ को ये पहलू थोड़ा और उतरकर एक्सप्लोर करना चाहिए था.
केके मेनन ने कमाल का काम किया है. कुछ सीन्स में बाबा को देखकर आपको उस पर गुस्सा आने लगेगा, कि ये कितना ज़हरीला आदमी है. ऐसा ही बढ़िया काम वरुण धवन और समांथा प्रभु ने भी किया है. एक सीन है जहां हनी, बनी को उनकी बेटी के बारे में बता रही है. उस सीन में वरुण का कोई डायलॉग नहीं. बस आप उनका चेहरा देखिए और समझ जाएंगे कि यहां एक पिता है जिसने कभी अपनी बेटी को नहीं देखा. बाकी समांथा प्रभु की एक्टिंग से लेकर एक्शन तक, सब पर कूल का लेबल लगा है. वो पूरी तरह से अपने किरदार के कंट्रोल में दिखती हैं. एक नोट भी ऊपर-नीचे नहीं जाता. नाडिया बनी काशवी मजुमदार की भी बात करना ज़रूरी है. वो बहुत स्मार्ट एक्टर हैं. एक सीन है जहां नाडिया बचकर निकल रही है और उसे चोट आ जाती है. तब वो तुरंत अपने मुंह पर उंगली लगा लेती है, कि मानो खुद के दर्द की कराह रोक रही हो.
‘सिटाडेल: हनी बनी’ के पास अपने कुछ मोमेंट्स हैं जो इसे बेहतरीन सीरीज़ बन सकते थे. मगर दिक्कत यही है कि ऐसे हिस्से सिर्फ चंद पल बनकर सिमट जाते हैं.
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