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मूवी रिव्यू - छोरी 2

कैसी है Nushrratt Bharuccha और Soha Ali Khan की फिल्म Chhorii 2, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

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ये साल 2021 में आई 'छोरी' का सीक्वल है.

Chhorii 2
Director: Vishal Furia
Cast: Nushrratt Bharuccha, Soha Ali Khan, Saurabh Goyal
Rating: 1.5 Stars

"छोरी 2" की कहानी पिछली फ़िल्म से आगे बढ़ती है. साक्षी (नुशरत भरूचा) जो हरियाणा के किसी काल्पनिक गांव के हैवानों से ख़ुद को और अपनी अजन्मी बच्ची को बचा लाई थी. वो अब शहर में रह रही है. एक स्कूल में पढ़ा रही है. उसकी बेटी ईशानी (हार्दिका शर्मा) सात-आठ साल की हो चुकी है. वो अपनी इस नई लाइफ में एडजस्ट हुई ही है कि एक दिन कुछ अनिष्ट हो जाता है. ईशानी गायब हो जाती है. साक्षी और उसकी मदद करने वाला इंस्पेक्टर समर (गश्मीर महाजनी) उसे ढूंढ रहे हैं. तभी सीसीटीवी में वो गाड़ी कैप्चर होती है जिसमें ईशानी को किडनैप किया गया है. वो उसी गांव के मुखिया की गाड़ी है जिस गांव से साक्षी "छोरी" पार्ट 1 में बचकर आई थी. अब वे दोनों उस गांव जाते हैं. क्या वे ईशानी को बचा पाते हैं? उस गांव में गन्ने के खेतों की भूल भुलैया के बीच बने गहरे घनघुप्प अंधेरे कुएं, सुरंगों का रहस्य क्या है? वो शैतान कौन है जो इन सुरंगों में बनी गुफा में रहता है? ये दासी मां (सोहा अली ख़ान) कौन है जो इस शैतान की मदद कर रही है?

इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर विशाल फुरिया और अजित जगताप की कहानी और स्क्रिप्ट देती है, जो कि बहुत उबाऊ, फ्रस्ट्रेट करने वाली और न पसंद आने वाली राइटिंग है. दिव्य प्रकाश दुबे और मुक्तेश मिश्रा के डायलॉग्स उल्लेखनीय नहीं हैं. वे उतने ही बासी और अप्रभावी हैं जितना कि उस गुफा में रहने वाला आदिमानव है.

अंशुल चौबे की सिनेमैटोग्राफी वाला ओपनिंग सीन संतुष्ट करने वाला है. ये शायद सिंगल टेक सीन है जिसमें एक बच्ची गन्ने के घुमावदार और भूल भुलैया नुमा खेत में लालटेन लिए दौड़ रही है. हम ठिठकते हुए इंतजार करते हैं कि अब क्या होगा.

कास्टिंग में सोहा अली खान प्रशंसनीय हैं. हरियाणवी लहजा और देहाती औरत की देहभाषा उन्होंने अच्छी पकड़ी. नुशरत साक्षी के रोल में औसत हैं. कहीं कहीं एक जुझारू मां के तौर पर वे ठीक ठाक रही हैं. क्लाइमैक्स में उनके चेहरे पर लगा ख़ून नकली सा लगता है और अंत में उसकी कन्टीन्यूइटी भी लचर हो जाती है.

डायरेक्टर विशाल फुरिया एंड क्रेडिट्स में बताते हैं कि कैसे देश में छोटी बच्चियों की शादियां कर दी जाती हैं और प्रेग्नेंसी के चलते उनकी मृत्यु हो जाती है. इन प्लेट्स को पढ़ते हुए हम गंभीर हो उठते हैं लेकिन फिल्म सिर्फ मैसेजिंग के ऊपर इतनी निर्भर है कि हॉरर जॉनर में कुछ नया, इनोवेट करते हुए दर्शक को इंगेज करने या एंटरटेन कर पाने में विफल रहती है. फ़िल्म पर राही अनिल बर्वे की "तुम्बाड" का असर साफ दिखता है. लेकिन "तुम्बाड" पसंद इसलिए की गई क्योंकि वो लालच वाली मैसेजिंग पर बहुत कम खेलती है और सिनेमा क्राफ्ट से दीवाना बना देती है. बचपन में सुनी डरावनी भूतों की कहानियों को बहुत भारतीयकृत कथा-परंपरा वाले ढंग से प्रस्तुत करती है.

"छोरी 2" को देखते हुए हम और इंतजार करते हैं कि वो आपको डरा सके, आपके होश उड़ा सके, आपको हक्का बक्का कर सके. लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता. जब नौ-नौ दस-दस साल के लड़के साक्षी को किसी मरे हुए जानवर की तरह कुएं में रस्सी से घसीटते हुए ले जाते हैं और उसका सिर पत्थरों पर टकराने पर वे संवदेनाहीन ढंग से कहकहे लगाकर हंसते तो हम असहज होते हैं. लेकिन वहां स्क्रिप्ट और क्राफ्ट का आवेग इतना पुअर होता है कि हम आक्रोशित या भयभीत नहीं हो पाते. फिल्म में दासी मां की मायावी शक्तियों का भी कोई तुक समझ नहीं आता. उसका कोई लॉजिकल एक्सप्लेनेशन नहीं मिलता. जैसे कि अंत में साक्षी में जो शक्तियां आती है, उनका मिल जाता है.

अंत में "छोरी 3" के लिए गुंजाइश छोड़ी गई है. लेकिन इस फ़िल्म ने बतौर दर्शक काफी निराश किया है. इसे देखना वक्त की बर्बादी ही लगा. "छोरी 2" को आप एमेजॉन प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं.

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