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ब्लडी डैडी: मूवी रिव्यू

फिल्म में मारधाड़ करते शाहिद कपूर हैं, सॉलिड विलेन बने रॉनित रॉय हैं, 'गो कोरोना गो' है, लेकिन ये है कैसी?

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शाहिद कपूर ने पहली बार ऐसी एक्शन फिल्म की है. फोटो - स्क्रीनशॉट

Shahid Kapoor की फिल्म Bloody Daddy Jio Cinema पर रिलीज़ हो चुकी है. जब फिल्म का टीज़र आया था, तब काफी लोगों ने उसकी तुलना ‘जॉन विक’ से की थी. मगर फिल्म बनाने वालों का कहना था कि ये सिर्फ एक्शन पर नहीं चलेगी. यहां ड्रामा भी है. ‘ब्लडी डैडी’ का एक्शन कैसा है और उससे भी ज़रूरी, क्या ये अच्छी एक्शन फिल्म साबित होगी? यही सब जानते हैं.  

शाहिद कपूर फिल्म में बने हैं सुमेर. हमें पता चलता है कि इस बंदे का तलाक हो चुका है. सुमेर का बेटा अथर्व उसी के साथ रहता है. लेकिन मानता है कि उसके डैड ज़िम्मेदार इंसान नहीं हैं. सभी को सुमेर से यही शिकायत है. कि वो ज़िम्मेदार इंसान नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि सुमेर डबल रोल अदा कर रहा है. सामने से वो पुलिसवाला है. लेकिन अंदर ही अंदर ड्रग्स के फेर में लगा रहता है. एक बार उसके हाथ लगता है ड्रग्स से भरा बैग. उसका साथी बताता है कि ये कम से कम 50 करोड़ का माल है. सुमेर ठीक से सेटल भी नहीं होता कि उसे पता चलता है कि उसके बेटे को सिकंदर नाम के आदमी ने किडनैप कर लिया है. वो ड्रग्स वाला बैग सिकंदर का ही था. डील सिम्पल है. बैग दे जाओ. बेटे को ले जाओ. ये सुनने में आसान लगता है मगर होता नहीं. सुमेर और सिकंदर के बीच आगे क्या-कुछ घटता है, यही फिल्म की कहानी है. 

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शाहिद एक्शन में जच सकते हैं बस उन्हें सही से इस्तेमाल नहीं किया गया. 

आमतौर पर एक्शन फिल्मों को लेकर एक धारणा बनी होती है. कि जहां जबर मारधाड़ हो बस वही अच्छी एक्शन फिल्म है. मगर केस ऐसा नहीं है. एक अच्छी एक्शन फिल्म सिर्फ अपने एक्शन की वजह से ही यादगार नहीं बनती. उसके इर्द-गिर्द पूरा ड्रामा होता है, जो उस एक्शन में रस भरता है. ‘ब्लडी डैडी’ ऐसा नहीं कर पाती. उसका एक्शन मन में कोई उत्साह पैदा नहीं कर पाता. फिल्म में सिर्फ एक एक्शन सीन है, जो माहौल बांध देता है. बैकग्राउंड में लाउड म्यूज़िक बज रहा है. सुमेर गुंडों से लड़ रहा है. उनसे पिट रहा है. उनको मार रहा है. अगर मुझसे कोई फिल्म के सबसे अच्छे पॉइंट के बारे में पूछे तो मुझे दो घंटे की फिल्म में सिर्फ यही सीन याद आता है. 

फिल्म के एक्शन को जैसे शूट किया गया है, उससे ज़्यादा बड़ी समस्या है कि उसे किस तरह से एडिट किया गया है. एक्शन वाले शॉट्स को जिस तरह लगाया है, उसमें फ्लो टूटता दिखता है. इस वजह से फिल्म का एक्शन आंखों को खटकता भी है. एक बहाव में नहीं चलता. लगभग आधी फिल्म बीत जाने के बाद पहला एक्शन सीन आता है. ‘ब्लडी डैडी’ की लेंथ भी फिल्म को नुकसान पहुंचाती है. पहला हाफ कौन किसका क्या लगता है, किसके कैसे संबंध हैं, यही दिखाने में निकलता है. कायदे से दूसरे हाफ को बिल्ड अप हुई चीज़ों को सही दिशा में ले जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. फिल्म का क्लाइमैक्स आराम से 20 मिनट पहले आ सकता था. एक पॉइंट पर आते-आते मैं बस इंतज़ार कर रहा था कि फिल्म के आखिरी वाले क्रेडिट कब रोल होंगे.

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रॉनित रॉय फिल्म की हाइलाइट साबित होते हैं. 

‘ब्लडी डैडी’ के पास अपनी लंबाई के लिए एक पक्ष हो सकता है. कि हम ड्रामा वाले पक्ष को मज़बूत करना चाहते थे. इसलिए चीज़ों को टाइम दिया. मेकर्स की कोशिश भले ही ये रही हो लेकिन ये स्क्रीन पर होते हुए नहीं दिखता. किरदारों के आपसी रिश्ते बहुत सतही तौर पर एक्सप्लोर किए गए हैं. फिल्म बीच-बीच में ह्यूमर का सहारा लेती है. एक-दो जोक्स लैंड करते भी हैं. बाकी सारे बेदम साबित होते हैं. फिल्म के राइटर-डायरेक्टर अली अब्बास ज़फर ने कुछ-कुछ पॉइंट्स पर पॉलिटिकल कमेंट्री भी की. जो अपने आप में सही है लेकिन फिल्म में कुछ नहीं जोड़ती. फिल्म की कहानी कोरोना की दूसरी लहर के बाद खुलती है. एक पार्टी में लोग नाच रहे हैं. DJ गाता है ‘गो कोरोना गो’ और अपना ड्रम पीटने लगता है. 

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कुछ जगह फिल्म का ह्यूमर लैंड कर पाता है लेकिन बाकी पॉइंट्स पर ये हल्का निकलता है. 

शाहिद कपूर ने अपने करियर में पहली बार इस तरह की एक्शन फिल्म की है. कुछ जगहों पर वो सुमेर कम और शाहिद ज़्यादा लगते हैं. बहरहाल उन्हें एक्शन सीन्स में देखना अजीब नहीं लगता. वो एक्शन में जच सकते हैं. बस यहां फिल्म का निर्देशन उनके साथ इंसाफ नहीं कर पाता. फिल्म की लिखाई के चलते एक्टिंग का ज़्यादा स्कोप नहीं बचता. फिर भी रॉनित रॉय मेरे लिए हाइलाइट रहे. उन्होंने फिल्म में सिकंदर का किरदार निभाया है. उन्हें देखकर लगता है कि वो पूरी तरह नियंत्रण में हैं. ना कम ना ज़्यादा. बाकी राजीव खण्डेलवाल, ज़ीशान कादरी, संजय कपूर और डायना पेंटी जैसे एक्टर्स ने भी सही काम किया है. जितनी ज़रूरत थी उतना वो लोग डिलीवर कर पाते हैं. 

‘ब्लडी डैडी’ से मुझे उम्मीद थी कि एक्शन वाले मामले में ये कुछ क्रांतिकारी करेगी. या कम से कम कोई जमा पत्थर तो हिलाएगी. लेकिन ये ऐसा नहीं कर पाती. मेरे लिए ये साल 2023 की भुला दी जाने वाली फिल्मों में शामिल होती है. 

वीडियो: दी सिनेमा शो: शाहिद कपूर से ब्लडी डैडी की फीस पूछी गई तो बोले, आप मैथमैटिक्स में मत घुसिए.