हमारे लिए हीरो की एक तय परिभाषा है. उसके साथ कुछ बुरा हुआ, अन्याय हुआ. लेकिन वो उससे लड़कर न्याय स्थापित करने की कोशिश करता है. बदले को सबसे ऊपर नहीं रखता. कहें तो अपने साथ जो हुआ, खुद को उसमें तब्दील नहीं होने देते. लेकिन DC का कैरेक्टर ‘ब्लैक एडम’ इस सांचे में नहीं बैठता. इसलिए उसे सुपरहीरो नहीं बल्कि एंटी-हीरो कहा जाता है.
मूवी रिव्यू: ब्लैक एडम
फिल्म का सबसे हाई पॉइंट उसके खत्म होने के बाद आता है.
‘ब्लैक एडम’ फिल्म की कहानी शुरू होती है कांदाक नाम के शहर से. वहां एक कीमती धातु है. जिसके लालच में राजा कुछ लोगों को वो एटेरनियम नाम का धातु ढूंढने को भेजता है. टेथ एडम नाम का एक आदमी वहां तक पहुंच जाता है. लेकिन इसके बदले में उसके परिवार को मार दिया जाता है. जब टेथ के लिए सब कुछ बुरा चल रहा था. ठीक उसी वक्त उसे शक्तियां मिलती हैं. इन शक्तियों से टेथ कांदाक का चैम्पियन या मसीहा बन जाता है. हालांकि किसी वजह से टेथ को कैद कर दिया जाता है. ये कहानी खुलती है टेथ की कैद के 5,000 साल बाद.
कांदाक में बाहरी लोगों ने घुसपैठ की हुई है. ये लोग ज़्यादा-से-ज़्यादा एटेरनियम निकालना चाहते हैं. वहां के निवासियों का शोषण करते हैं. कहानी के इस हिस्से से अमेरिका और उसके मिडल ईस्ट में शांति स्थापित करने वाली योजना याद आती है. खैर, कांदाक के लोगों का मानना है कि उनका चैम्पियन फिर लौटेगा. वो लौटता है और इस दुनिया में क्या हंगामा मचाता है, यही पूरी फिल्म की कहानी है. ‘ब्लैक एडम’ का पहले आई Shazam से कनेक्शन है. बस फिल्म उसे ठीक तरह से एस्टैब्लिश नहीं कर पाती.
कायदे से ये ‘ब्लैक एडम’ की ओरिजिन स्टोरी है, लेकिन ये अपने हीरो को अपने पांव ठीक से कभी जमाने ही नहीं देती. ज़्यादातर बुरी सुपरहीरो फिल्में एक तरह की समस्या से जूझती हैं. इमोशन पर ठीक से समय इंवेस्ट न करना. अपने किरदारों से ऑडियंस को दूर रखना. जनता का अटेंशन खींचने के लिए भारी VFX और एक्शन सीन्स. ‘ब्लैक एडम’ में भी ये सारी चीज़ें मौजूद हैं. दो घंटे के अंदर फिल्म पूरी करने के चक्कर में सही चीज़ों को प्रॉपर स्पेस नहीं मिलता. किरदार बहुत सतही लगते हैं. वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, उसके पीछे की ठोस वजह से फिल्म आपको दूर रखती है.
फिल्म जिस पॉइंट पर पहुंचना चाहती है, उसमें ज़्यादा वक्त नहीं लगाती. शुरुआती कुछ मिनटों में ही ‘ब्लैक एडम’ फिर से जाग उठता है. और आगे बाकी का एक्शन घटता है. यहां से हर सब-प्लॉट चलता नहीं बल्कि दौड़ता है. फिल्म आपको किसी भी विचार के साथ समय नहीं बिताने देती. मोटिव के नाम पर किरदारों को बस एक-एक लाइन पकड़ा गई. कि मेरे साथ ऐसा हुआ इसलिए मैं ये कर रहा हूं. जब कहानी घटनाओं की बजाय सिर्फ डायलॉग्स से आगे बढ़ने लगे तो आपका अटेंशन रोककर नहीं रख पाती. वैसे तो अच्छी और बुरी फिल्मों को आंकने का कोई तय पैमाना नहीं. लेकिन कहते हैं कि अच्छी फिल्मों में आपका ध्यान अपने फोन पर नहीं जाता. ‘ब्लैक एडम’ ये नहीं कर पाती.
फिल्म के एसेंस से मुझे शिकायतें रहीं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पूरी फिल्म में कुछ भी अच्छा नहीं. ‘ब्लैक एडम’ के पास अपने कुछ मोमेंट्स हैं. जैसे एक जगह सायक्लोन नाम की सुपरहीरो एक घटना का ज़िक्र करती है. जब उसके साथ कुछ बुरा घटा था. उस घटना के बाद ही उसने हीरो बनने का फैसला लिया. बिना डायरेक्ट हुए ये ‘ब्लैक एडम’ पर कमेंट था. कि आपके साथ जो घटा उसे आप किस तरह इस्तेमाल करते हैं. लोगों की मदद करते हैं या निर्मम ढंग से उन्हें मार डालते हैं. फिल्म में पॉप कल्चर में रूटेड एक एक्शन सीन है. जहां The Good, The Bad and The Ugly के क्लाइमैक्स की तर्ज पर ब्लैक एडम अपने दुश्मनों से लड़ता है. इमोशन के लेवल पर हल्का होने की वजह से फिल्म एक्टिंग के लिए भी ज़्यादा स्कोप नहीं छोड़ पाती. ब्लैक एडम बने ड्वेन जॉनसन वैसे ही हैं जैसे वो हर फिल्म में होते हैं. जेम्स बॉन्ड रहे पीर्स ब्रॉसनन ने डॉक्टर फेट नाम के सुपरहीरो का किरदार निभाया. मैं पर्सनली पीर्स और डॉक्टर फेट दोनों को ही और ज़्यादा देखना चाहता है. लेकिन फिल्म उन्हें ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाती.
‘ब्लैक एडम’ इस बात में कन्फ्यूज़्ड रहती है कि अपनी कहानी कैसे दिखाई जाए. इसे एक ओरिजिन स्टोरी की तरह दिखाना है या मल्टी-हीरो वाली फिल्म की तरह. नतीजतन दोनों में ही बैलेंस नहीं बना पाती. बहुत ज़्यादा ज़रूरी है सुपरहीरो फिल्मों को सेट ढर्रे से दूर होने की. वरना ये सिर्फ थीम पार्क बनकर रह जाएंगी. जहां आप गए, थोड़ी देर सवारी का मज़ा लिया. लेकिन झूले से उतरते ही सारा एक्साइटमेंट खत्म. तकरीबन हर सुपरहीरो फिल्म की तरह यहां भी एक पोस्ट क्रेडिट सीन है. जिसके लिए कहा जाना चाहिए कि वो फिल्म का सबसे हाई पॉइंट है. यानी फिल्म का सबसे यादगार पल उसके खत्म होने के बाद आता है.
वीडियो: मूवी रिव्यू - डॉक्टर G