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मूवी रिव्यू: भूल भुलैया 2

‘भूल भुलैया 2’ ऐसी फिल्म है जिसमें अगर आपने सेंस ढूंढने की कोशिश की, तब आप फिल्म इन्जॉय नहीं कर पाएंगे. बाकी यहां एंटरटेनमेंट के नाम पर वही चीज़ें परोसी हैं, जिन्हें हम दर्जनों बार देख चुके हैं.

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कायदे से ये फिल्म ‘भूल भुलैया’ का सीक्वल होने की जगह एक अलग हॉरर-कॉमेडी हो सकती थी.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में रीमेक्स और सीक्वल्स का ट्रेंड नया नहीं. जब भी ऐसी फिल्में आती हैं तो एक काम ज़रूर होता है, ओरिजिनल फिल्म से इनकी तुलना. 2007 में आई प्रियदर्शन की हिट फिल्म ‘भूल भुलैया’ का सीक्वल आया है, ‘भूल भुलैया 2’, जिसे अनीस बज़्मी ने डायरेक्ट किया है. ‘भूल भुलैया 2’ पहली वाली फिल्म की लैगेसी को कितना मज़बूत कर पाती है, आज के रिव्यू में उसी पर बात करेंगे.

फिल्म की कहानी शुरू होती है रुहान और रीत से, जिनके रोल कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी ने निभाए. ये दोनों मिलते हैं, कनेक्ट करते हैं, और हालात इन्हें ले आते हैं राजस्थान के गांव भवानीगढ़ में. वहीं की एक हवेली में कैद है मंजुलिका, जिसका विद्या बालन वाली मंजुलिका से कोई कनेक्शन नहीं. सिवाय बंगाली होने के और ‘आमी जे तोमार’ गाने के. किसी वजह से सब रूहान को आत्माओं से बात करने वाला रूह बाबा समझ लेते हैं. फिर आगे वही सब घटनाएं घटती हैं, जो आपने एक्सपेक्ट की होंगी. फिल्म का प्लॉट कभी भी ‘भूल भुलैया 2’ का मेजर पॉइंट बनता ही नहीं. ये ऐसी कहानी है जहां आप सब कुछ घटने से पहले जानते हैं.

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फिल्म में अश्विनी कलसेकर, संजय मिश्रा और राजपाल यादव को कॉमेडिक रीलीफ के लिए यूज़ किया है.

लेकिन इसका प्रेडिक्टेबल होना ही फिल्म का पॉइंट है. फिल्म का सेंस और लॉजिक जैसे शब्दों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, और मेकर्स भी इस बात से अवेयर लगते हैं. वो ऑडियंस को एक माइंडलेस फिल्म ही ऑफर करना चाहते हैं. सेंसलेस होने में कोई बुराई नहीं, पर उसके साथ दिक्कत ये है कि आप उसमें कोई लिमिट नहीं रखते. आपकी कॉमेडी क्लीशे या ओवरयूज़ की हुई लगती है. ऐसे पंचेज़ जिन पर किसी जमाने में शायद हंसी आती होगी, जब समझ थोड़ी कम थी, लेकिन अब लगता है कि इसकी क्या ही ज़रूरत थी. जैसे फिल्म के शुरुआत में रूहान को एक बैग मिलता है, उसे लगता है कि इसमें बॉम्ब है. लेकिन फिर पता चलता है कि ये रीत का बैग है. यहां वो कहता है,

इस बैग में बॉम्ब नहीं, ये तो बॉम्ब का बैग है.

फिल्म के डायलॉग लिखने वाले फरहाद सामजी और आकाश कौशिक इससे बेटर कर सकते थे. कार्तिक का किरदार रूहान छिछोरा किस्म का आदमी है. उसके इसी कैरेक्टर ट्रेट से वज़नी बच्चे को हाथी बोलना, और किसी लड़की से ज़बरदस्ती गले लगना जैसी हरकतों को जस्टिफाई किया गया है. फिल्म में अश्विनी कलसेकर, संजय मिश्रा और राजपाल यादव को भी कॉमिक एलिमेंट्स में ऐड करने के लिए रखा गया. इन तीनों एक्टर्स की स्क्रीन प्रेज़ेंस ऐसी है कि आपको कई मौकों पर हंसी आएगी, चाहे वो कुछ भी कर रहे हों. लेकिन फिल्म की राइटिंग ने उन्हें ऐसे पंचेज़ नहीं दिए जो आपको फिल्म देखने के लंबे समय बाद तक याद रहें. जैसे ‘भूल भुलैया’ से छोटे पंडित के डायलॉग हम अब भी रिकॉल कर पाते हैं. इस वाली फिल्म में भी राजपाल यादव के कैरेक्टर का नाम छोटा पंडित ही है. बस पुराने वाले से इसका कोई रिलेशन नहीं.

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ओरिजिनल फिल्म में कोई भूत नहीं था.

फिल्म की कॉमेडी ही सिर्फ आउटडेटेड नहीं है, हॉरर का हाल भी ऐसा ही है. हॉरर इफेक्ट क्रिएट करने के लिए बहुत सारे जम्पस्केर यूज़ किए हैं, बार-बार लाउड म्यूज़िक का आना. फिल्म के हर हॉरर सीन में आपको लगभग पता होता है कि क्या होने वाला है. अब घुंघरू बजने की आवाज़ आएगी, मंजुलिका का दरवाज़ा खड़खड़ाएगा. ऐसे में हॉरर सीन आपको डराते नहीं, न ही उनमें मौजूद एक्टर्स डरे हुए लगते हैं. खासतौर पर कार्तिक आर्यन. कार्तिक को लगातार एक किस्म के कैरेक्टर्स में ढाला जा रहा है, जिससे वो हर फिल्म में कैरेक्टर कम और कार्तिक ज़्यादा लगते हैं. यहां भी उन्हें देखकर ऐसा ही लगेगा. अगर फिल्म का क्लाइमैक्स छोड़ दें, तो उनकी एक्टिंग ऐसी नहीं जो आपको फिल्म देखने के बाद याद रहे.

कियारा के कैरेक्टर को राइटर्स ठीक से लिखना ही भूल गए. जिस वजह से उनकी प्रेज़ेंस महसूस होती नहीं, और कमी खलती नहीं. एक्टर्स में अगर कोई यहां हाइलाइट साबित हुई हैं तो वो है तब्बू. ये उनके करियर का बेस्ट काम नहीं, न ही यहां इंटेंस परफॉरमेंस की ज़रूरत थी. बस उन्हें देखकर लगता है कि वो अपना काम इन्जॉय कर रही हैं. फिल्म अपनी तमाम खामियों से गुजरते हुए पहुंचती है अपने क्लाइमैक्स पर, जो फिल्म का सबसे हाई पॉइंट है. रूहान और मंजुलिका का फेस ऑफ, ऐसा सीन जहां आपको अपना फोन चेक करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती. ऊपर से अरिजित सिंह का गाया ‘आमी जे तोमार’, जो सीन को एक लेवल ऊपर ले जाने का ही काम करता है.

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कब तक कार्तिक आर्यन एक जैसे किरदार करते रहेंगे.

फिल्म देखते वक्त मेरे दिमाग में एक बात बार-बार आई, कि इसका नाम ‘भूल भुलैया 2’ क्यों है. वहां मंजुलिका के ज़रिए अवनी की मेंटल हेल्थ पर बात की, यहां मंजुलिका को भूत बना दिया. कुछ पुराने किरदारों को सिर्फ उनके नाम के लिए यूज़ किया. इन सवालों के कोई जवाब नहीं, क्योंकि कायदे से ये फिल्म ‘भूल भुलैया’ का सीक्वल होने की जगह एक अलग हॉरर-कॉमेडी हो सकती थी. लेकिन तब मेकर्स शायद ‘भूल भुलैया’ के नाम पर ऑडियंस को थिएटर्स तक न ला पाते. ‘भूल भुलैया 2’ ऐसी फिल्म है जिसमें अगर आपने सेंस ढूंढने की कोशिश की, तब आप फिल्म इन्जॉय नहीं कर पाएंगे. बाकी यहां एंटरटेनमेंट के नाम पर वही चीज़ें परोसी हैं, जिन्हें हम दर्जनों बार देख चुके हैं. अगर ये एलिमेंट आपके लिए अब भी काम करते हैं, तो आप दो घंटे 20 मिनट की इस फिल्म को इन्जॉय करेंगे.

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