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'भीड़' ट्रेलर: रोंगटे खड़ी करने वाली पिक्चर, दिमाग और मन का पुर्जा-पुर्जा हिला देगी

ट्रेलर देखकर अंदर तक हिल जाएंगे. पिक्चर तो ना जाने क्या ही करेगी! 'भीड़' शोर मचाने वाली है.

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भीड़ बहुत शोर मचाने वाली है

अनुभव सिन्हा की सोशल ड्रामा फिल्म 'भीड़' का मोनोक्रोमिक ट्रेलर आ गया है. जिन दर्शकों ने सिनेमाघरों में 'तू झूठी मैं मक्कार' देखी होगी. वो 'भीड़' का ट्रेलर पहले ही देख चुके होंगे. क्योंकि ये रणबीर की फिल्म के साथ अटैच था. पर इंटरनेट वाली जनता के लिए ये 10 मार्च को उपलब्ध हुआ है. इसमें राजकुमार राव और भूमि पेडणेकर लीड रोल्स में हैं. कहानी कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन पर आधारित होगी. फिल्म में पंकज कपूर, आशुतोष राणा, दीया मिर्ज़ा जैसे कलाकार भी होंगे.

आइए एक-एक करके बिन्दुवार ट्रेलर की खास बातें जान लेते हैं. 

# अनुभव सिन्हा सोशल-पॉलिटिकल फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. उनकी पिछली चार पिक्चरें इन्हीं का नमूना हैं. 'मुल्क', 'आर्टिकल 15', 'थप्पड़' और 'अनेक'. इसी सिलसिले की फिल्म है 'भीड़'. ये कहानी है आज़ाद भारत में सरहदें खिंचने की. कोरोना आया. सरकार ने आनन-फानन में पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया. जो जहां था, उसे वहीं रोक दिया गया. देश थम गया. लोग भी थम गए. लेकिन ये उनके लिए फिट बैठता है जिनके पास पर्याप्त वित्त था. नौकरी थी. कल की चिंता नहीं थी. डेली वेजेस वालों के साथ ऐसा नहीं था. और ख़ासकर वे लोग जो कहीं बाहर सिर्फ़ रोटी कमाने ही गए थे. लॉकडाउन के फेर में जो गांवों से शहर मजदूरी करने गए, फंस गए. पूरे मुल्क में भारत-पाक बंटवारे जैसे हालात बन गए. स्टेट्स को बॉर्डर्स में डिवाइड कर दिया गया. अपने ही देश में जनता रिफ़्यूजी हो गई. 'भीड़' की स्टोरी इन शरणार्थियों की तरह भटक रहे लोगों की तकलीफों और जख्मों को कुरेदती है. कम से कम ट्रेलर से तो ऐसा ही लग रहा है.

# ट्रेलर देखकर पहला रिएक्शन था: रोंगटे खड़े करने वाला ट्रेलर ऐसा ही हो सकता है. बहुत सही काटा गया है. बेस्ट पार्ट है, इसकी सोशल कमेंट्री. एक ओर मजदूरों की समस्याएं हैं. उनसे जूझता पूरा सरकारी तंत्र है. मजदूरों को अपने नज़रिए से देखती एक डॉक्टर है. एक पत्रकार भी है, जो कहती है:

मुझे ये इंडिया के पार्टीशन की तरह दिख रहा है. एक दिन अचानक इन लोगों को पता चला, इनके घर वहां हैं ही नहीं, जहां अब तक ये रहते आए हैं.

एक कामगार है. जिसके अनुसार अपने देश में बॉर्डर बन गए हैं. इन सब समस्याओं के केंद्र में है एक पुलिस वाला. ट्रेलर इतना फास्ट है कि एक के बाद एक हार्ट हिटिंग सीन और डायलॉग आते जाते हैं. नमूने देखिए:

1. राजकुमार राव के हिस्से बहुत तगड़े डायलॉग आए हैं. जैसे आयुष्मान खुराना के हिस्से 'आर्टिकल 15' में आए थे. वो भी वहां पुलिस वाले थे. राजकुमार राव भी यहां पुलिस वाले हैं. जब एक मजदूर को कॉन्स्टेबल पीट रहा होता है. राजकुमार राव उसके हाथ से डंडा फेंकते हुए कहते हैं: "मार डालिएगा क्या! खाना मांग रहे हैं, बस ये लोग." इसके बाद जब वो ऊंची आवाज़ में कहते हैं: "हत्या का अधिकार नहीं दिया किसी ने". उसका इंपैक्ट एकदम भीतर तक हिलाने वाला होता है.  

2. एक सीन है, जिसमें पंकज कपूर का किरदार पुलिस वालों से लड़ रहा होता है. सिस्टम से लड़ता हुआ आम आदमी ललकारते हुए कहता है: “हज़ार मील से आते हैं हम लोग, बच्चा लोग के लिए रोटी लेने. आप हमें रोक नहीं पाइएगा.”

3. ऐसा ही एक सीन और है. इसमें पंकज कपूर ने पुलिस वाले बने राजकुमार राव पर बंदूक तान रखी है. राज कुमार राव कहते हैं: 

आप शहर गए क्योंकि यहां कोई इंतज़ाम नहीं था. शहर से वापस आए. क्योंकि वहां कोई इंतज़ाम नहीं था. गरीब आदमी के लिए कभी कोई इंतज़ाम ही नहीं होगा. हम कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे. वादा करते हैं आपसे. 

इसके बाद जो पंकज कपूर कहते हैं, कोरोना के दौर में लगभग वही माहौल सबने महसूस किया. पंकज का किरदार पुलिस वाले से कहता है: "हमें भरोसा नहीं है." पैंडमिक में आम आदमी का सरकार से भरोसा उठ गया था. उसी का ये एक नमूना है. 

4. भूमि पेडणेकर का कैरेक्टर युवतियों की दास्तान सुनाता है. कैसे लड़कियां तीन-चार दिनों से सैनेट्री पैड की जगह अखबार का इस्तेमाल कर रही थीं. 

# ट्रेलर की एक और खास बात है, रियल लाइफ से उठाए गए रेफ्रेंसेज. पहला रेफ्रेंस तो पूरा माहौल ही है, जिस पर 'भीड़' बनी है. पर इसके अलावा भी कुछ कोरोना के दौरान हुई मेजर घटनाएं हैं. नंबरवार देखते हैं.

सत्य घटनाओं पर आधारित ‘भीड़’ में कुछ सीन

1.  वीडियो याद है, जिसमें मां बैल की तरह सूटकेस जोत रही है, बच्चा थककर सूटकेस पर ही सो गया है. इसका रेफ्रेंस आपको फिल्म में मिलेगा. 
2. वो घटना याद है, जिसमें 13 साल की ज्योति साइकिल पर बैठाकर दिल्ली से अपने पिता को दरभंगा लाई थी. इसका रेफ्रेंस आपको ट्रेलर में मिलेगा. एक बच्ची ‘पीपली लाइव’ में नत्था बने ओमकार दास को साइकिल पर बिठाए ले जा रही है. 
3. तबलीगी जमात से कोरोना फैलने की खबर को भी फिल्म का हिस्सा बनाया गया है. और भी कई रेफ्रेंस आपको ट्रेलर में देखने को मिलेंगे.

# जातिगत दंभ, धार्मिक नफ़रत, नाकारा सिस्टम, अनाथ नागरिक 'भीड़' में सब दिखेगा. रोंगटे खड़े कर देने वाले 'भीड़' का ट्रेलर जब पिक्चर की शक्ल में आएगा, उस वक़्त अगर ये अतिवाद से बच गई, तो बहुत कमाल की पिक्चर साबित होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि हमने 'अनेक' में भयंकर अतिवाद देखा है. अगर 'भीड़' सिस्टम और समाज का बैलेंस बनाकर चलती है, तो ये एक बेहतरीन सोशल ड्रामा बनकर निकलेगी. तो 24 मार्च का इंतज़ार करिए. देखते हैं क्या होता है?

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