नोट- 'बैडैस रविकुमार' किसी समीक्षा, किसी रेटिंग से परे फिल्म है. इनफैक्ट ये फिल्म भी नहीं है. ये एक विचार है.
फिल्म रिव्यू- बैडैस रवि कुमार
Badass Ravikumar भारतीय सिनेमा इतिहास की वो घटना है, जिसे समझा नहीं जा सकता. सिर्फ एक्सपीरियंस किया जा सकता है. भूलने की कोशिश की जा सकती है.

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'बैडैस रवि कुमार' कोई फिल्म नहीं है. ये एक विचार है. एक सिनेमैटिक एक्सपीरियंस. एक ऐसी फिल्म जिसका एंटरटेनमेंट के अलावा कोई मक़सद नहीं है. कहने को इसे महा-बकवास फिल्म कह दिया जाए. मगर इससे हमारा माखौल बनेगा. क्योंकि फिल्म ने ओपनिंग क्रेडिट्स में ही दर्शकों को आगाह कर दिया था कि यहां 'लॉजिक ऑप्शनल' है. फिल्म के ट्रेलर-टीज़र ने भी इसके मास्टरपीस होने का दावा नहीं किया था. 'बैडैस रवि कुमार' कभी वो बनने की कोशिश नहीं करती, जो वो नहीं है. संक्षेप में अगर इस फिल्म की समीक्षा की जाए, तो इसे ब्रेनरॉट, क्रिंजफेस्ट, समेत कई विशेषणों से नवाज़ा जा सकता है. मगर क्या 'बैडैस रवि कुमार' बोरिंग फिल्म है, नहीं. ये भारतीय सिनेमा इतिहास की वो घटना है, जिसे समझा नहीं जा सकता. सिर्फ एक्सपीरियंस किया जा सकता है. भूलने की कोशिश की जा सकती है.
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'बैडैस रवि कुमार' की कहानी एक पुलिसवाले की है. जो कानून के दायर में रहकर काम नहीं करता है. उसके दिमाग में एक पिक्चर चल रही है. और वो अपने असल जीवन में उस पिक्चर को जी रहा है. एक जेन-ज़ी टर्म है- इंट्रूसिव थॉट्स. यानी आपके जेहन में आने वाले वो ख्याल जिन पर आप अमल नहीं करना चाहते है. 'बैडैस रवि कुमार' उन्हीं इंट्रूसिव थॉट्स पर आधारित एक फिल्म है. आज़ाद ख्याल फिल्म. अगर एक तस्वीर के माध्यम से बताना हो कि ये कैसी फिल्म है, तो ये शायद इकलौती तस्वीर है, जो इस फिल्म के साथ न्याय कर सकती है-

इंटरवल के बाद फिल्म में एक सीक्वेंस हैं, जहां हीरे की हार की चोरी होने वाली है. उस इवेंट में रवि कुमार स्टेज पर परफॉर्म कर रहे हैं. बिल्कुल ‘तू चीज़ बड़ी है मस्त’ वाली स्टाइल में. मगर यहां एक के बाद एक पांच गानों पर डांस होता है. और ये सभी गाने एक-दूसरे से अलग मिजाज़ के हैं. इसमें डांस नंबर से लेकर, कव्वाली और सैड सॉन्ग, सबकुछ शामिल है. संभवत: ये पहला मौका है, जब हिंदी सिनेमा में ऐसा कुछ हुआ है. मैंने बहुत समझने की कोशिश की कि यहां क्या चल रहा है, मगर वो मेरे मयार से ऊपर की चीज़ निकली.
ये ऑल द वे हिमेश रेशमिया शो है. क्योंकि हिमेश ने ही इस फिल्म को लिखा है. उन्होंने ही इसका म्यूज़िक कंपोज़ किया है. उन्होंने ही गाने गाए हैं. यहां तक कि फिल्म में रवि कुमार का रोल भी उन्होंने खुद किया है. मज़ेदार बात ये है कि हिमेश ने खुद को कन्विंस कर लिया है कि वो रवि कुमार हैं. और उन्होंने इस चीज़ को परदे पर बेहद सीरियसली निभाया है. क्योंकि वो सेल्फ अवेयर हैं कि वो किस किस्म की फिल्म बना रहे हैं. उन्होंने जो वादा किया था, वो पूरा किया. जद्दोजहद ये है कि इस फिल्म को न ही महान सिनेमा कहा जा सकता है, न ही इसे कचरा बताकर खारिज किया जा सकता है. ये एक फिनोमेना है, जिसे एंजॉय किया जा सकता है. या उससे चिढ़ा जा सकता है. मैंने खुद को दूसरी वाली श्रेणी में रखा है.
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