
बाहुबली शुरू होते ही दर्शकों की स्थिति
उसके ठीक बाद एक दूसरा गाना शुरू हो जाता है. उसके खत्म होते ही आपको वो नज़र आता है, जिसे देखने आपका चोर मन गया है. कटप्पा. फिल्म पिछली दफा जहां खत्म हुई थी. इस बार वहीं से शुरू हुई है. यानी कि कटप्पा फ्लैशबैक में गया होता है. अब आप परदे पर कटप्पा और अमरेंद्र बाहुबली की नोंक-झोंक देख रहे होते हैं. कटप्पा को लेकर जितना शोर फिल्म से पहले था. स्क्रीन पर उन्हें उतनी ही इम्पोर्टेंस दी गई है. ये फिल्म एक मायने में बिलकुल सफल हुई है. अपने तमाम किरदारों के साथ न्याय करने में अमरेंद्र बाहुबली हों या महेंद्र. कटप्पा हो या राजमाता शिवगामी.

कटप्पा यानी सत्यराज को आप कॉमेडी करते पाते हैं. अमरेंद्र ने एक साथ ढेर सा स्क्रीनटाइम शेयर किया है. जिसमें कॉमेडी सीन भी भरपूर हैं. और यकीन मानिए वो बेतुके नहीं हैं. बहुत ही अच्छे से लिखे गए और फिल्माए गए हैं. बिना फूहड़ता वाली इस कॉमेडी को ऐसी बड़ी फिल्म में सही जगह पर रखना भी राजामौली की कामयाबी है. जब हालत बदलते हैं और पीठ से पीठ जोड़कर साथ युद्द करना होता है तब भी प्रभास और सत्यराज का कॉम्बीनेशन बहुत कमाल का नज़र आता है. ये सबको पता है कि कटप्पा ने ही बाहुबली को मारा था. कटप्पा को ये क्यों करना पड़ा. मामा-मामा पुकारते अमरेंद्र की पीठ में तलवार भोंकने की विवशता सत्यराज ने बड़े अच्छे से परदे पर उतारी है. कुल जमा ये किरदार बेंचमार्क है. जितना बड़ा आपको उसका भौकाल नज़र आ रहा है. उसी लेवल का काम भी वो आपको करते नज़र आता है.

तो फिल्म शुरू होती है जब कालकेय राजा को बाहुबली हरा देता है. बाहुबली की चाची शिवगामी के वचन के अनुसार उसको राजा बनाया जाता है. ये बात कहीं से भी शिवगामी के पति और बेटे भल्लाल देव को नहीं सुहानी थी नहीं सुहाई. साजिशें शुरू होती हैं. और जैसा कि फिल्मों में होता है. मुख्य किरदार को महान दिखाना है तो राम भगवान जैसा. अब राम जी को भी राजा बनाया गया था लेकिन ताजपोशी नहीं हुई थी. एक तिथि निर्धारित हुई थी. वैसा ही यहां भी होता है. शेष जनता समझदार है.

महारानी शिवगामी का किरदार निभाने वाली राम्या कृष्णन इस फिल्म के हर फ्रेम में अपने किरदार में पूरी-पूरी उतर गई हैं. उनकी आंखों से आंसू झरते हैं. पीछे से कैलाश खेर फिल्म का इकलौता याद रहने वाला गाना गाते हैं तो बगल की सीट वाला कहता है, मुझे भी रोना आ रहा है. जब वो गुस्से में चीखकर आंखें दिखाती हैं. तो राणा दग्गुबाती के साथ सिनेमाहॉल भी सन्ना जाता है कि अब ये क्या होगा. इस फिल्म में बहुत मसल पावर है. हाथों से पेड़ उखाड़ दिए जाते हैं. हाथी गिरा दिए जाते हैं. इस सबके बीच राम्या की एक्टिंग उन्हें तमाम चीजों से कहीं-कहीं ज्यादा मजबूत दिखाती है. कहीं भी देहबल ने कहानी के उस हिस्से को नहीं दबा दिया जहां शिवगामी के फैसले सबसे मजबूत थे.

पर इस फिल्म में बहुत से स्लो मोशन हैं. जहां क्षत-विक्षत शरीर उड़ते हैं. बैलगाड़ियां खिलौनों सी फेंक दी जाती हैं. पेड़ एक हाथ से उखाड़ दिए जाते हैं. बड़े-बड़े बांध बैलों के जरिये तोड़ दिए जाते हैं. प्रभास पहले अमरेंद्र और बाद में महेंद्र के तौर पर ये सब करते सहज नज़र आते हैं. आपको भरोसा होता है कि हां ये इतना तो कर ही लेगा. क्लाइमैक्स में भल्लाल और बाहुबली टकराते हैं. इतनी बड़ी फिल्म है तो देहाटन तो होगा ही. परदे पर पहाड़ सी दो मेल बॉडीज टकराती हैं. तमाम वीएफएक्स-हरे परदे के कमाल और छुपे तारों की कलाकारी के बावजूद आपको वो सीन याद रह जाता है. ये इसलिए क्योंकि प्रभास ने कहीं कोई लोच नहीं छोड़ा है.

अगर आपके साथ बालकबुद्धि भी फिल्म देखने जाती है तो आपको भरपूर एक्शन मिलता है. इस बारे में कुछ लिखकर पंक्तियां बर्बाद करने से बेहतर आपको ये बता दिया जाए कि आप जो देखना चाहते हैं. वो आपको मिलेगा. पांच सौ का पॉपकॉर्न खाने वाला दर्शक भी एक्शन पर सीटी मार रहा था. फिल्म लंबीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई है. पिछली वाली से भी 11-12 मिनट ज्यादा लंबी. लेकिन इन लोगों ने जो तय कर लिया था कि परदे पर आपको दिखाएंगे. वो दिखाते जा रहे थे. और आपको देखने में कोई बोरियत नहीं हो रही थी.

इस फिल्म को देखा जाना चाहिए. अगर आप फिल्में देखते हैं. इस तरह की फिल्में आपको पसंद हैं और सिनेमाहॉल में जाकर इस फिल्म को नहीं देखते तो आप अपने साथ धोखा करेंगे. ये लैपटॉप वाली फिल्म नहीं है. इसे बड़े परदे पर देखना सिनेमा देखने का सुख है. बहुत सही पिक्चर है. जरुर जाओ. घर वालों को लेकर जाओ.
https://www.youtube.com/watch?v=G62HrubdD6o
अब आपक कहोगे ये तो बताया ही नहीं कि बाहुबली को कटप्पा ने मारा क्यों था. अगर स्पॉइलर से दिक्कत न हो तो अगली लाइन आपके लिए हैं. बाहुबली को कटप्पा ने इसलिए मारा क्योंकि वो एंटी-नेशनल था.
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