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अनुराग कश्यप ने छोड़ा बॉलीवुड, कहा- "बड़ी टॉक्सिक हो गई इंडस्ट्री"

Anurag Kashyap बोले, बॉलीवुड छोड़कर तनावमुक्त महसूस कर रहे हैं. शराब पीने की आदत भी छोड़ दी.

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अनुराग की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म 'पांच' बनने के 25 साल बाद भी रिलीज़ नहीं हो सकी है.

Anurag Kashyap ने बॉलीवुड को अलविदा कह दिया है. उनके मुताबिक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री बड़ी 'टॉक्सिक' हो गई है. बकौल अनुराग, अब यहां रचनात्मकता के लिए कोई जगह नहीं है. हर कोई 500-800 करोड़ जैसे अवास्तविक आंकड़ों की तरफ भाग रहा है. फिल्म बनाने के लिए जो क्रिएटिव माहौल चाहिए, वो बड़े-बड़े आंकड़ों की बलि चढ़ गया है. इस माहौल से नाख़ुश अनुराग ने बेंगलुरु में घर ले लिया है. और अपने क्रिएटिव सैटिस्फैक्शन के लिए साउथ की फिल्मों में काम करने का मन बनाया है.  

अनुराग कश्यप ने हिंदी सिनेमा को 'ब्लैक फ्राइडे', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'देव डी' और 'गुलाल' जैसी ज़बरदस्त फिल्में दी हैं. मगर अब उन्होंने बॉलीवुड से किनारा कर लिया है. हाल ही में द हिंदू को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इंडस्ट्री के बदलते डायनैमिक्स पर खुल कर बात की. इस बदलाव से उनके मन में उपजी निराशा पर बात करते हुए उन्होंने कहा,

"मैंने मुंबई शहर छोड़ दिया है. मैं इस इंडस्ट्री के लोगों से दूर रहना चाहता हूं. कोई भी शहर सिर्फ इमारतों का ढांचा नहीं होता. शहर बनता है लोगों से और इस शहर में लोग आपको नीचे धकेलने में लगे हुए हैं. फिल्म शुरू नहीं होती है कि लोग सोचते हैं कि इसे बेचेंगे कैसे. रचनात्मकता की बात कोई कर ही नहीं रहा है. फिल्म बनाने का आनंद अब यहां नहीं आता. ऐसा नहीं है कि क्रिएटिव लोग हैं नहीं. मगर उनके लिए सिस्टम में आगे पहुंचने के रास्ते ही बंद कर दिए गए हैं. इसीलिए मैं यहां से दूर जाना चाहता हूं. अगले साल तक मुंबई शहर छोड़ दूंगा. कई फिल्ममेकर्स ने इंडस्ट्री के बदलते माहौल के कारण मुंबई छोड़ दिया. कई लोग मिडिल ईस्ट, पुर्तगाल, लंदन, जर्मनी और अमेरिका शिफ्ट हो गए हैं."

# “मुझे साउथ के फिल्ममेकर्स से ईर्ष्या होती है” 

अनुराग ने बातचीत में यह बताया कि पहले हिंदी सिनेमा में रचनात्मक प्रयोग करने की आज़ादी थी. जबकि अब, पैसा बनाने का प्रेशर है. वो बोले,

"मुझे साउथ के फिल्ममेकर्स से जलन होती है. वो लोग अपने सिनेमा में कितने प्रयोग करते हैं. जबकि हम, बस होड़ में लगे हुए हैं. बॉलीवुड छोड़ने के मेरे फैसले के बाद मैं तनावमुक्त महसूस कर रहा हूं. मेरी शराब पीने की आदत भी छूट गई है."

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अनुराग ने बॉलीवुड के मनी माइंडेड हो जाने और ओटीटी में आए बदलाव पर भी बात की. उनका कहना है कि ओटीटी की शुरुआत तो बढि़या हुई. लेकिन अब वहां भी अच्छे आइडिया को दरकिनार कर दिया गया है. ओटीटी प्लेटफॉर्म भी अब सब्सक्राइबर बढ़ाने में जुटे हैं. इस बारे में अनुराग ने कहा,

"फिल्म का पहला इन्वेस्टर होता है राइटर. उसी के विचार पर तो फिल्म बनती है. मगर उसे तब तक पैसा नहीं मिलता, जब तक फिल्म में कोई स्टार नहीं कास्ट हो जाता. ये ग़लत है. हम सिर्फ बोल रहे हैं कि ‘कंटेंट इज़ द किंग’. राइटर फिल्म का बाप होता है. असल में यहां राइटर्स को उनका हक़ नहीं मिल रहा. अगर अच्छा सिनेमा बनाना है, तो लेखकों को सशक्त बनाइए. उन्हें उनकी मेहनत की सही क़ीमत दीजिए."

बतौर डायरेक्टर अनुराग कश्यप की पिछली फिल्म थी ‘केन्नेडी’. जो दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई गई. मगर इंडिया में वो फिल्म अब तक रिलीज़ नहीं हो पाई. कब तक रिलीज़ होगी, ये भी नहीं कहा जा सकता है. इन दिनों अनुराग एक्टिंग प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हैं. विजय सेतुपति स्टारर 'महाराजा' में उनके काम की बड़ी तारीफ हुई. उसके बाद वो आशिक अबू की मलयामल फिल्म ‘राइफल क्लब’ में नज़र आ रहे हैं.  

वीडियो: अनुराग कश्यप ने बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के बीच फर्क बताया