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अडॉलसेंस: एक मस्ट वॉच ब्रिटिश सीरीज

Adolescence उस सिनेमा का हिस्सा है जो हमें हर रोज थोड़ा-थोड़ा बेहतर इंसान बनने की समझ देता है.

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जब मिलर के पिता का भरोसा टूटता है. (तस्वीर: नेटफ्लिक्स)

Spoilers**

नेटफ्लिक्स की नई मिनी सीरीज "अडॉलसेंस" जब शुरू होती है, तो एक आम दर्शक उम्मीद करता है, उसे एक 'क्राइम इन्वेस्टिगेशन' की थ्रिलिंग कहानी देखने को मिलेगी. कई ट्विस्ट और टर्न आएंगे. खुलासे होंगे. कुछ-कुछ 'क्रिमिनल जस्टिस' माफिक. लेकिन पहले एपिसोड के एंड में जब CCTV वाला सीन आता है, तो ये सब भ्रम टूट जाते हैं. क्योंकि कहानी में गजब का ठहराव और किरदारों में भीषण बेचैनी देखने को मिलती है.

ये सीरीज बातचीत के फॉर्मेट में है. एक चमत्कारिक बात ये है कि एक घंटे से ज्यादा ड्यूरेशन वाले हर एपिसोड को सिंगल शॉट/one shot में रिकॉर्ड किया गया है. यानी सिनेमैटोग्राफर मैथ्यू लुइस का कैमरा चालू हुआ तो एपिसोड खत्म होने पर ही बंद हुआ. कोई ब्रेक नहीं. गजब का एक्सपेरिमेंट.

कहानी घटती है इंग्लैंड के एक नगर में. 13 साल के एक लड़के जेमी मिलर को अरेस्ट कर लिया जाता है. उस पर अपने क्लासमेट का मर्डर करने का आरोप है. उसका पिता आश्वस्त है कि बेटा निर्दोष है. या वो मानना ही नहीं चाहता कि उसका बेटा किसी की हत्या कर सकता है. पुलिस की पूछताछ शुरू होती है. लड़का नाबालिग है, इसलिए पूछताछ के दौरान पिता को साथ रहने की इजाजत मिलती है. टेबल के एक तरफ दो इन्वेस्टिगेटर बैठे हैं. दूसरी तरफ आरोपी बच्चा और उसका पिता. पुलिस एक-एक करके आरोप लगाती है, बच्चा इनकार करता जाता है. लेकिन तभी उसे एक CCTV फुटेज दिखाई जाती है. सब चौंक जाते हैं.

डायरेक्टर फिलिप बेरंटिनी की इस सीरीज को देखते हुए दिल और दिमाग की एक लड़ाई सी होती है. किरदार भी इस जद्दोजहद में होते हैं. दर्शक भी इसमें फंसा सा रहता है. एक आम दर्शक इस कहानी का अंत जानने को बेचैन हो उठता है.

जो बातें किसी व्यस्क के लिए सामान्य या मामूली हो सकती हैं, वही बातें किसी टीनएजर के पूरे जीवन को आकार दे सकती हैं. संक्षेप में इस सीरीज का मेन एजेंडा यही है.

एक सीन है, जब जेमी के माता-पिता बात कर रहे हैं कि क्या पैरेंट्स के तौर पर उनसे कोई गलती हुई. ये बातचीत, ये दृश्य और वो एक्टिंग… इनकी चर्चा कई बार की जा सकती है. पूरी बातचीत में दोनों बेहतर पेरेंट्स नजर आते हैं. लेकिन दूसरी तरफ एक सच्चाई ये भी है कि उनका टीनएजर बेटा हत्या के आरोप में पुलिस स्टेशन में बैठा है. 

Stephen Graham
जेमी मिलर के माता-पिता.

जेमी के पिता का किरदार निभाने वाले स्टीफन ग्राहम इस सीरीज के को-क्रिएटर भी हैं और आधार स्तंभ भी. वे जाने माने ब्रिटिश एक्टर है. पीकी ब्लाइंडर्स, लाइफ ऑफ ड्यूटी जैसी कमाल की सीरीज में एक्ट कर चुके हैं. वेनम सीरीज की कमर्शियल फिल्मों में भी.

ओवेन कूपर की खूबसूरत एक्टिंग  

उनके अलावा 13 साल के जेमी के रोल में ओवेन कूपर कमाल करते हैं. उनके किरदार में एक विरला इनोसेंस है. कि वो ऐसा कैसे बन गया? इस किरदार में ओवेन जब अपने बिहेवियर को स्विच करते हैं, तो भरोसा नहीं होता कि ये उनके एक्टिंग करियर की शुरुआत है. ये उनकी डेब्यू सीरीज है. पुलिस स्टेशन में एक महिला काउंसलर से बात करते हुए मिलर एक टीनएजर से स्विच करते हुए एक वयस्क पुरुष सरीखे हो जाते हैं, जो मेल ईगो से भरा है. आंखों में गुस्सा, सामने वाले के लिए नफरत और किसी भी पल बल प्रयोग करने की आशंका. लेकिन अगले ही पल में वो फिर से स्विच करते हैं. गिल्ट से भर जाते हैं. चाहते हैं कि जेमी का भरोसा किया जाए. उसे प्यार मिले. उनका पात्र कभी बस इस बात के लिए गुस्सा करता है कि उसकी कही गई बातों पर सवाल उठाया जा रहा है.

Adolescences
महिला काउंसलर से बात करता मिलर का किरदार.

सिंगल शॉट में फिल्माया जाना इस सीरीज को एपिसोड्स को रिच बनाता है. कहानी एक किरदार से दूसरे पर जंप करती है. जैसे इस केस के इनवेस्टिगेटर ल्यूक बास्कॉम्ब की कहानी, पुलिस स्टेशन से उसकी पर्सनल लाइफ पर जंप करती है. क्योंकि जेमी मिलर के स्कूल में ही ल्यूक का बेटा भी पढ़ता है. ल्यूक इस मामले की जांच एक अलग एंगल से कर रहा है. पूछताछ के लिए वो उस स्कूल में पहुंचता है. जहां उसे पता चलता है कि उसे अपने बेटे के बारे में और उसकी पीढ़ी के बारे में बहुत कम जानकारी है. किरदार को ये भी एहसास होता है कि उसने लंबे अरसे से अपने बेटे से बात नहीं की है. ल्यूक का बेटा बताता है कि हर रंग के स्माइली के अलग-अलग मतलब होते हैं. उस जेनरेशन के लिए ये बहुत ही आम बात है. लेकिन ल्यूक को इस बात का कोई अंदाजा नहीं. इस एक बात से ल्यूक का पूरा नजरिया बदल जाता है. "स्टॉकिंग और बदला लेने की नीयत से हत्या" का मामला अब बुली के मुद्दे पर आकर अटक जाता है. अब हत्या के आरोपी मिलर का भी एक मार्मिक पक्ष होता है.

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Ashley Walters
ल्यूक के किरदार में 'एश्ले वाल्टर्स'.

इस सीरीज़ के किरदारों के भावों और उनकी कहानी में संवेदना/सहानुभूति (empathy) पैदा करने की मजबूत ताकत है. इतनी कि जब कहानी खत्म होती है तो किरदारों की बेचैनी महसूस की जा सकती है. इस अंत पर भरोसा न करने की बेचैनी, इस कहानी को बदल डालने की बेचैनी… बेचैनी कि बस एक बार मिलर से मुलाकात हो जाए. उससे प्यार से दो बातें की जाएं. कहा जाए कि वो उस दयालुता और करुणा को दिखलाए जाने का हकदार है जिसकी वो उम्मीद करता है.

"अडॉलसेंस" उस सिनेमा का हिस्सा है जो हमें हर रोज थोड़ा-थोड़ा बेहतर इंसान बनने की समझ देता है. शानदार!

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