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OMG 2 देखने की ये 6 वजहें, आपको थिएटर जाने पर मजबूर कर देंगी

सेक्स को धर्म से जोड़ने पर बवाल हो सकता था, लेकिन डायरेक्टर अमित राय ने पूरी फिल्म को इस तरीके से ट्रीट किया है कि बवाल उठने का सवाल ही नहीं उठता है.

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OMG 2 आपको कैसे लगी?

OMG 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. इसका रिव्यू भी आप तक पहुंच गया होगा. नहीं पहुंचा तो यहां क्लिक करिए, आप खुद वहां पहुंच जाएंगे. फिलहाल हमने भी पिक्चर देखी. बढ़िया भी लगी. पिक्चर देखते समय अब आदत हो गई है, कुछ न कुछ पॉइंट्स नोट करते रहने की. तो हमने सोचा ये पॉइंट्स आप तक भी पहुंचा देते हैं. चलिए शुरू करते हैं OMG 2 देखने की वजहें क्या हो सकती हैं?

#1. सबसे पहली वजह है इसका सब्जेक्ट, सेक्स एजुकेशन. इस देश में सेक्स सबको करना है, लेकिन उस पर किसी को बात नहीं करनी है. ये फिल्म सेक्स पर बहुत सेंसिबल तरीके से बात करती है. टैबू समझे जाने वाले विषय को एकदम नॉर्मल बना देती है. बच्चों के लिए सेक्स शिक्षा की ज़रुरत समझाती है. मास्टरबेशन से लेकर गुड टच और बैड टच पर भी बात करती है. बेसिकली ये फिल्म 12 से 18 साल के बच्चों के लिए ही है. लेकिन सेंसर ने पिक्चर को ए सर्टिफिकेट दे दिया.

#2. फिल्म देखने की दूसरी वजह है, इसका लॉजिक. फिल्म किसी भी जगह पर अतार्किक नहीं होती है. जो भी मुद्दा उठाती है, उसका तर्क देती है. कुतर्कों को पनाह देते अपाहिज धर्म को तर्क की बैसाखी पकड़ाती है. पुरातन हिन्दू धर्म का हवाला देती है. दकियानूसी लोगों को जो भाषा समझ आती है, उस भाषा में बात करती है. आजकल व्हाट्सएप फॉरवर्ड घूमते रहते हैं, जिसमें कोई न कोई बात उठाई जाएगी और उसमें कहा जाएगा, ये वेस्ट का नहीं हमारा आइडिया था. ऐसा ही ये फिल्म करती है कि सेक्स एजुकेशन देना वेस्ट का नहीं, हमारा आइडिया था. अब आजकल के माहौल में आपको ये बात तो माननी ही पड़ेगी और वो भी तब, जब कोई ये बात तर्क से साथ कह रहा हो. इस फिल्म में बिलावजह पंगा लेने से बचा गया है, जो कि अच्छी बात है. नहीं तो लोग आकर फिल्म का बॉयकाट करने लगते.

#3. फिल्म देखने की तीसरी वजह है, इसकी लिखाई और डायरेक्शन. ये पूरी तरह से अमित राय की फिल्म है. उन्होंने इसे अपने कंधे पर उठाया है. सेक्स जैसे विषय पर गम्भीर होने की पूरी गुंजाइश थी. लेकिन उन्होंने ऐसे गम्भीर मुद्दे में ह्यूमर का ज़ोरदार तड़का डाला है, वो भी साफ़सुथरा ह्यूमर. आपको इस फिल्म में कोर्ट देखकर 'जॉली एलएलबी' ज़रूर याद आएगी. जहां रियलिटी है, सेंसिबिलिटी है और इसी के साथ हंसी-ठहाके भी हैं. सेक्स को धर्म से जोड़ने पर बवाल हो सकता था. लेकिन अमित राय ने पूरी फिल्म को इस तरीके से ट्रीट किया है कि बवाल उठने का सवाल ही नहीं उठता है. जहां तक मुझे याद है शिव के मुंह से कोई भी तथाकथित अश्लील शब्द नहीं बुलवाए गए हैं.

#4. फिल्म सवाल जवाब की शक्ल में चलती है. फिल्म देखते समय आपके और हमारे मन में जो भी सवाल उठ सकता है, उन सबके जवाब ये फिल्म देती है. उदाहरण के लिए सेक्स को स्कूलों में कैसे पढ़ाया जा सकता है? फिल्म ये सवाल उठाती है और फिर इसका जवाब भी देती है. फिल्म एकतरफा बिलकुल नहीं है. एकाध जगह आपको लगेगा यामी गौतम का पॉइंट सही है. यामी का किरदार पंकज त्रिपाठी के सामने केस डिफेंड कर रहा है. यदि ये किरदार कमजोर होता, तो फिल्म का मज़ा कम हो जाता. इसी किरदार की वजह से कांति का कैरेक्टर और उसकी बातें और ज़्यादा निखरकर आई हैं.

#5. फिल्म को इसकी ऐक्टिंग की वजह से भी देखा जाना चाहिए. पंकज त्रिपाठी ने पिछले कई सालों में पहली बार अपने बोलने के तरीके में भी बदलाव किया है. उज्जैन वाला पुट वो अपने एक्सेंट में लेकर आए हैं. बाक़ी ऐक्टर तो वो अच्छे हैं ही. यामी गौतम का काम भी बहुत अच्छा है. वो किसी भी ऐंगल से पंकज त्रिपाठी से कमतर नहीं लगी हैं. इसके अलावा पवन मल्होत्रा ने 'जॉली एलएलबी' वाले जज की याद दिला दी. बेस्ट बात उन्होंने कहीं से भी उसमें से सौरभ शुक्ला के काम को कॉपी नहीं किया है.

#6. एक और बात जिसके लिए ये फिल्म देखनी चाहिए. अक्षय कुमार ने इस फिल्म में ऐक्टिंग की है. सबसे अच्छी बात अमित राय इसे अक्षय कुमार की फिल्म बनने से बचा ले गए हैं. उन्हें सिर्फ उतना ही स्क्रीन टाइम दिया गया है, जितनी ज़रुरत थी. उससे भी अच्छी बात ये है कि अक्षय बहुत समय के बाद किसी फिल्म में अक्षय नहीं लगे हैं. उनको स्क्रीन पर देखकर अच्छा लगता है. शायद ये उनकी बढ़िया कमबैक फिल्म हो सकती है.