2019 में एक हॉलीवुड फिल्म आई थी, Knives Out. फिल्म एक whodunnit मर्डर मिस्ट्री थी, जहां शक के घेरे में एक पूरा परिवार होता है. फिल्म आपको एंगेज कर के रखती है, ज़रूर देखनी चाहिए. अगर Knives Out को बहुत ही बुरे ढंग से बनाया जाए, तो रिज़ल्ट ’36 फार्महाउस’ जैसी फिल्म होगी. फिल्म शुरू होती है एक कोट से,
Some steal for need, some steal for greed.

मर्डर मिस्ट्री जहां कोई सस्पेंस नहीं.
कुछ लोग अपनी ज़रूरत के लिए चोरी करते हैं, और कुछ लालच के लिए. फिल्म अपनी फिलॉसफी तो पहले 10 सेकंड में बता देती है, लेकिन पूरे रनटाइम के दौरान उसका कुछ कर नहीं पाती. कहानी सेट है 2020 लॉकडाउन में. मुंबई के बाहरी इलाके में एक फार्महाउस है, जहां रौनक सिंह नाम का आदमी रहता है. जिसका रोल निभाया है विजय राज ने. रौनक हमेशा अक्खड़ बना रहता है. बिना बात स्ट्रिक्टली पेश आना और चिल्लाना उसकी पर्सनैलिटी का पार्ट है. रौनक अपनी मां के साथ रहता है और उनकी पूरी प्रॉपर्टी का वारिस भी है. महाभारत काल की तरह यहां भी उसके भाई हैं, जिन्हें प्रॉपर्टी का हिस्सा चाहिए.
ऊपर से प्लॉट को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए यहां एक मर्डर हो जाता है, जिसका कनेक्शन 36 फार्महाउस से है. मेकर्स ने सोचा होगा कि मर्डर मिस्ट्री में तो सबको इंट्रेस्ट होता है, उस नाम पर फिल्म पसंद कर ही ली जाएगी. लेकिन ऐसा होता नहीं, क्योंकि फिल्म मर्डर मिस्ट्री और whodunnit वाले पार्ट को ठीक से कैरी नहीं कर पाती. फिल्म में मर्डर होता है और फिर दुनिया जहान की चीज़ें चलती रहती हैं. मर्डर वाली कड़ी को पूरा करने के लिए चलता-फिरता एक्सप्लेनेशन दिया है. मतलब पूरी फिल्म में किसी भी पॉइंट पर आपका दिमाग ये सोचने के लिए नहीं दौड़ता कि मर्डर कैसे हुआ होगा, लाश कहां गई, या पूरा घटनाक्रम क्या था. देखकर लगता है कि मेकर्स अपनी ऑडियंस के टाइम को ग्रांटेड पर ले रहे थे.

एक्टर्स से एक्टिंग नहीं करवाई, डायलॉग डिलीवरी करवाई है.
फिल्म को सेट भले ही 2020 में किया गया है, लेकिन फ़ील इसमें पूरी नाइंटीज़ वाली है. किरदारों के ओवर-द-टॉप किस्म के डायलॉग, हर सीन में गैर ज़रूरी रूप से म्यूज़िक ऐड करना, और फिर छिछला किस्म का ह्यूमर तो है ही. फिल्म में संजय मिश्रा के किरदार का नाम है जयप्रकाश, जो 36 फार्महाउस में बतौर कुक काम करता है. जयप्रकाश एकदम बकलौल टाइप आदमी है, बिना सोचे कुछ भी बोल देने वाला. पहली नज़र में जिसे देखकर आप कहेंगे कि इसे कॉमिक रिलीफ के लिए ही रखा गया है. लेकिन जयप्रकाश से जो कॉमेडी करवाई है वो आज के समय में बासी हो चुकी है. हाउस कीपर के साथ बार-बार फ्लर्ट करना और कोई बीच में आ जाए तो झटककर दूर चले जाना, अगर आप इसे कॉमेडी समझते हैं तो आपकी मर्ज़ी. अपना प्लॉट, सब-प्लॉट हों या एक्टर्स, फिल्म में किसी को लेकर क्लैरिटी नहीं दिखती, कि भाई कहना क्या चाहते हो.

बस यही रिएक्शन था फिल्म देखते वक्त. लेकिन हैरानी से नहीं, परेशानी से.
यही वजह है कि एक्टर्स से यहां एक्टिंग नहीं करवाई गई, बल्कि डायलॉग डिलीवरी करवाई गई है. दोनों बातों में फर्क है. अमोल पराशर का कैरेक्टर जब तक हरि होता है तब तक बिहारिया स्टाइल में हिंदी बोलता है. लेकिन उसके हैरी हो जाते ही भाषा एकदम अमोल जैसी हो जाती है. यू गेट माय पॉइंट. बाकी राइटिंग और एक्टिंग से परे फिल्म का डायरेक्शन भी मजबूत नहीं. कई सीन्स में एक्टर्स को प्रॉप की तरह प्लेस किया गया है. डायरेक्शन से एक बड़ा कंटिन्यूटी ब्रेक भी याद आता है. जहां रौनक एक शख्स पर छड़ी से हमला करता है. जब छड़ी उठाता है तो सामने वाला शख्स सीधा खड़ा है. लेकिन अगले शॉट में जैसे ही छड़ी नीचे आती है तो वो शख्स भी ऑलरेडी ज़मीन पर पड़ा होता है. अब यहां ज़मीन पर फिसलन थी या कंटिन्यूटी में, ईश्वर जाने.
फिल्म की अच्छी बातें याद करने के लिए दिमाग पर ज़ोर डालना पड़ेगा, और डर है कि तब भी कुछ नहीं मिलने वाला. मेरी तो जॉब है, इसलिए मुझे ये फिल्म देखनी पड़ी. लेकिन आपके पास इसे देखने के लिए कोई सॉलिड वजह होनी चाहिए. फिर बता दें कि ’36 फार्महाउस’ ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है.