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राजा रवि वर्मा: जिसने भगवान को इंसान का चेहरा दिया

ये न होते तो आज आप भगवान का चेहरा न पहचानते. फोटो-पोस्टर वाले भगवान इन्होंने ही बनाए थे.

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करीब डेढ़ साल पहले. 2014 में .एक फिल्म आई थी रंगरसिया. फ़िल्म बनी थी राजा रवि वर्मा की जिंदगी पर. किरदार निभाया था रणदीप हुड्डा ने. हीरोइन थी नंदना सेन. राजा रवि वर्मा कौन थे? नहीं जानते. आओ बताते है.
राजा रवि वर्मा बहुत फेमस चित्रकार रहे है. 29 अप्रैल 1848 को किलिमानूर में पैदा हुए थे. केरल में पड़ता है ये. पांच साल की उम्र में ही कलाकारी दिखाने लगे थे. जो दिखता उसका चित्र बनाने में लग जाते. इनके चाचा भी चित्रकार थे. एक बार वो किसी राजभवन की दीवार पर कोई चित्र बना रहे थे. कुछ देर के लिए कहीं दाएं-बाएं चले गए. लौट के आए तो देखते है कि भतीजे ने चित्र पूरा करके उसमे रंग भी भर दिए हैं. उस समय रवि वर्मा 14 साल के रहें होंगे. चाचा समझ गए कि भतीजे में पोटाश है. फिर क्या सिखाने लगे चित्रकारी की ए बी सी डी.
अंग्रेज लोग भी पेंटिंग किया करते थे. उस जमाने में उनकी टेक्निक कुछ अलग हुआ करती थी. ऑइल पेंटिंग किया करते थे. राजा रवि वर्मा ने इसका इस्तेमाल अपने चित्रों में बड़े ही शानदार तरीके से किया है. और खूब नाम कमाया. उस टाइम के भारतीय चित्रकारों को कैनवास और ऑइल पेंट का इस्तेमाल करने के लिए इन्होने ही बढ़ावा दिया. ऐसी ही कुछ और बातें है राजा रवि वर्मा के बारे में. जान लो जनरल नालेज बढ़ेगा.


 
1. राजा रवि वर्मा ही वो पहले चित्रकार थे. जिन्होंने देवी-देवताओं को आम इंसान जैसा दिखाया. भारतीय धर्मग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों में दिए गए पात्रों, देवी-देवताओं की कल्पना करके. उनको चित्रों की शक्ल में ढाला. मतलब आज जो हम सब फोटो, पोस्टर वगैरह में सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, राधा, कृष्ण देखते हैं. उन सब को चेहरा देने का काम राजा रवि वर्मा ने ही किया था.
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2. उन दिनों बंगाल स्कूल के चित्रकारों ने. रवि वर्मा को चित्रकार मानने से इंकार कर दिया था. क्योंकि वो भारतीय चरित्रों की पेंटिंग्स बनाते थे. पर पेंटिंग टेक्निक यूज करते थे अंग्रेजो की. उसके बाद भी आम पब्लिक के बीच रवि वर्मा के चित्र खासे पसंद किए जाते थे.
3. वाटर कलर पेंटिंग में राजा रवि वर्मा को महारत हासिल थी. सिखाने वाले थे रामा स्वामी नायडू. अपने टाइम के जबर चित्रकार. वो उस समय त्रावणकोर महाराज के दरबार में रह रहे थे. साथ ही रवि वर्मा ने ऑइल पेंटिंग की ओर भी रुख किया. ऑइल पेंटिंग की बारीकियां इन्होनें डच चित्रकार थेओडॉर जेंसन से सीखी थी. जेंसन उस समय पोर्ट्रेट के मामले में एक नंबर हुआ करते थे. बाद में रवि वर्मा हुए.
4. ऑइल पेंटिंग रवि वर्मा की पहली पसंद थी. जिसमें रवि वर्मा लाजवाब भी थे. सारी दुनिया में जाने जाते थे. आज भी उनके जैसी ऑइल पेंटिंग्स बनाने वाला कोई दूसरा चित्रकार नहीं हुआ है. मने एकदम बोलती सी.
5. 25 साल की उम्र में राजा रवि वर्मा को पहला इनाम मिला. 1873 में चेन्नई के एक पेंटिंग एग्जीबीशन में रवि वर्मा की पेंटिंग 'मुल्लप्पू चूटिया नायर स्त्री' (चमेली के फूलों से केशालंकार करती नायर स्त्री) को पहला ईनाम मिला था. उसी साल इस पेंटिंग को वियना(आस्ट्रिया) के एग्जीबीशन में भी ईनाम मिला. इसके बाद से रवि वर्मा को विदेशों में भी पहचाने जाने लगा. 1893 में शिकागो में विश्व चित्र प्रदर्शनी लगी थी. विवेकानंद भी तब शिकागो में ही थे. प्रदर्शनी में रवि वर्मा की दस पेंटिंग्स लगाई गई थी.
6. रवि वर्मा की इमेजिन पावर ताबड़तोड़ थी. ये उंनके धार्मिक ग्रंथो और महाकाव्यों के चरित्रों पर बनाई गई पेंटिंग्स में साफ दिखता है. पर भाई साब पोर्ट्रेट भी गजब बनाते थे. पोर्ट्रेट मतलब किसी को सामने बिठा के या उसकी फोटो को. हुबहू कैनवास में उतर देना. उस टाइम के भारतीय राजाओं से लेकर अंग्रेज शासक तक. राजा रवि वर्मा से अपने चित्र बनवाने के लिए लाइन लगाए रहते थे. रवि वर्मा ने महाराणा प्रताप का एक पोर्ट्रेट बनाया था. वो इनके बनाए मास्टरपीसेस में एक है.
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Source- Wahooart

7. रवि वर्मा की ऑइल पेंटिंग्स को लोग खूब पसंद करते थे. अच्छी खासी मांग थी. इसी को ध्यान में रखते हुए. 1894 में इन्होने विदेश से एक कलर लिथोग्रफिक प्रेस खरीदकर. मुम्बई में कारखाना खोल दिया. यहां वो अपनी पेंटिंग्स की नकल बनाके. आम पब्लिक को सस्ते दामों में बेचते थे. अब असली चीज तो महंगी होती है न भाई. इनसे पहले किसी भी चित्रकार ने ऐसी शुरुआत नहीं की थी.
8. रवि वर्मा न्यूड पेंटिंग्स बना के विवादों में भी आए थे. भारतीय धर्मग्रंथ और महाकाव्य चरित्रों की उर्वशी, रंभा जैसी अप्सराओं की न्यूड पेंटिंग्स बनाई थी भाई साब ने. लोगों की भावनाएं आहत हो गईं थी. बहुत बवाल कटा था उस समय इस बात पर. कहते है लोगो ने इसी बात से खिसियाकर इनका मुम्बई वाला प्रेस भी जला दिया था. हालांकि इसके बारे में सब एकराय नहीं है. कुछ का कहना है कि इन्होंने प्रेस किसी जर्मन चित्रकार को बेच दिया था.
Source- photogiri
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9. 1904 में ब्रिटिश सरकार ने रवि वर्मा को 'केसर-ए-हिंद' से नवाजा था. ये भारतीय नागरिको के लिए. उस टाइम का सबसे बड़ा सम्मान था. किसी कलाकार के तौर पर वो पहले थे. जिन्हें ये सम्मान मिला.
10. अभिज्ञानशाकुंतलम की शकुंतला का चित्र. इनके बनाए हुए. सबसे जबर चित्रों में से एक है. विदेश के एक लेखक थे मेनियर विलियंस. जिन्होंने अभिज्ञानशाकुंतलम का अंग्रेजी अनुवाद किया था. उनने अपनी किताब के कवर पेज में राजा रवि वर्मा की बनाई हुई शकुंतला पेंटिंग ही लगवाई थी.
Source- abhisays
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11. मैसूर के जगमोहन पैलेस में. जयचमा राजेंद्र आर्ट गैलरी है. राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स लगी है इसमे. एक खूबसूरत पेंटिंग है 'Lady With The Lamp'. इसे राजा रवि वर्मा ने बनाया था. ऐसा कहा जाता था. पर ये पेंटिंग बनाई थी. महाराष्ट्र के एक बेहतरीन चित्रकार एस.एल. हालदनकर ने. बाद में मैसूर और केरल सरकार ने भी इसपे सुधार कर दिया है.
यही वो विवादित तस्वीर है Source- orangecarton
यही वो विवादित तस्वीर है Source- orangecarton

12. राजा रवि वर्मा की एक पेंटिंग है. 1880 की. त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई को. उस समय के मद्रास ब्रिटिश गवर्नर जनरल रिचर्ड टेम्पल ग्रेनविले का स्वागत करते हुए दिखाया है. ये पेंटिंग 2007 में 1.24 मिलियन डॉलर में बिकी है. मतलब 8 करोड़ 24 लाख 74 हजार 198 रूपए में.
Source- art-now-and-then
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13. गिनीज बुक में सबसे महंगी साड़ी दर्ज है. 40 लाख की. नीता अंबानी के पास है. 2014 में एक शादी फंक्शन में पहनीं थी. शादी थी रिलाइंस ग्रुप के CEO पीरामल नाथवानी के लड़के की. साड़ी में जो कलाकारी है. उसमे पेंटिंग है राजा रवि वर्मा की. पइसा इसी बात का लगा है. भाई साब 36 लोग लगे थे. एक साल तक इस साड़ी को सजाने में.
14. एक लड़की हुआ करती थी. सुगंधा नाम की. रवि वर्मा अपनी पेंटिंग्स और पोर्ट्रेट के लिए सुगंधा से ही पोज कराया करते थे. दोनों को लेकर काफी खुसर-फुसर हुआ करती थी उस समय. कहा जाता है कि उनकी लगभग सभी पेंटिंग्स में जिस एक लड़की चेहरा दिखता है. वो सुगंधा ही है. इसी का रोल रंगरसिया में नंदना सेन ने निभाया था.
Source- bollywoodlife
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15. रवि वर्मा के तीन बेटे थे. उनके सबसे बड़े बेटे केरल वर्मा. 1912 में कही चले गए. काफी खोजबीन की गई. पर उसके बाद उनका कोई पता नहीं चला. 58 साल की उम्र में राजा रवि वर्मा ने 2 अक्टूबर 1906 को दुनिया से अलविदा कह दिया.

ये स्टोरी आदित्य नवोदित ने की है, आदित्य दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहे हैं.