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दुनिया के वो 10 फिल्ममेकर, जिन्हें उनकी फिल्मों और सामाजिक सक्रियता ने जेल पहुंचा दिया

आज हम ऐसे फिल्ममेकर्स की बात करेंगे जो सत्ता बनाम कला युद्ध की भेंट चढ़ गए. जो इस समय जेल में हैं या पहले कभी जेल गए.

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जफ़र पनाही, किरील सेरेब्रेनिकफ और हजूज कूका (बाएं से दाएं)

जो तुमको हो पसंद, वही बात करेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे

पूरी दुनिया में कलाकारों को यही करने पर मजबूर किया जा रहा है. सत्ता और कला हमेशा से नदी के दो किनारे रहे हैं. उनका मिलना संभव नहीं है, जब तक नदी सूख न जाए. सत्ताएं भी कला को सुखाकर उसे खुद में मिलाना चाहती है. आर्ट का अस्तित्व उनके लिए खतरा है क्योंकि वो सत्ता से सवाल करता है. हाल ही में खबर आई थी कि तीन ईरानी निर्देशकों को एक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण गिरफ़्तार किया गया. इस पोस्ट में उन्होंने ईरानी सिक्योरिटी फोर्सेज़ से हथियार डालने की अपील की थी. उनकी अपील उन सैनिकों से थी, जो अबादान में एक बिल्डिंग के सामने हो रहे प्रोटेस्ट में तैनात थे. दरअसल 23 मई को ईरान के अबादान में एक निर्माणाधीन दस मंजिला इमारत गिरने से 41 लोगों की मौत हो गई थी. और 37 लोग घायल हुए थे. रसूलोफ और अल-अहमद की गिरफ़्तारी के बाद 11 जुलाई को जफ़र पनाही को भी गिरफ्तार कर लिया गया था. वो रसूलोफ से मिलने प्रॉसेक्यूटर ऑफिस पहुंचे, वहीं तेहरान से उन्हें अरेस्ट किया गया था. अब खबर है उन्हें एक 12 साल पुराने मामले में 6 साल की सजा सुनाई गई है. भारत में भी हालिया मामला फिल्ममेकर अविनाश दास की गिरफ़्तारी का है. उन पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर शेयर की थी. उस तस्वीर को पोस्ट करने का मक़सद गृहमंत्री अमित शाह की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना था. आज हम ऐसे ही फिल्ममेकर्स की बात करेंगे, जो सत्ता बनाम कला युद्ध की भेंट चढ़ गए. जो इस समय जेल में हैं या पहले कभी जेल गए.  

1. जफ़र पनाही
 जफ़र पनाही

जफ़र पनाही ईरानी न्यू वेव सिनेमा के एक बड़े नाम हैं. उन्हें सामाजिक मुद्दों पर ऐसी फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है, जो रूढ़िवादी ईरानी धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाती हैं. उन्होंने 'द सर्कल' और 'ऑफसाइड' जैसी क्रांतिकारी फिल्में बनाई. 'द सर्कल' के लिए उन्होंने वेनिस गोल्डन लॉयन अवॉर्ड जीता था. उनकी फिल्म 'टैक्सी' ने भी 2015 का बर्लिन गोल्डन बेयर अवॉर्ड अपने नाम किया था. ये फिल्म ईरान की गरीबी, सेक्सिज़म और सेंसरशिप के मुद्दों को बड़ी बेबाकी से उठाती है. 2018 में उनकी फिल्म 'थ्री फेसेज़' को कान्स में बेस्ट स्क्रीनप्ले का अवार्ड भी मिला था. इससे पहले पनाही 2010 में एक एंटी गवर्नमेंट प्रोटेस्ट का समर्थन करने के लिए गिरफ्तार हो चुके हैं. उन पर सत्ता के खिलाफ प्रोपगैंडा फैलाने का चार्ज लगाकर 6 साल की सजा सुनाई गई. साथ ही 20 साल तक फिल्में बनाने से बैन कर दिया गया था. हालांकि बाद में 2 महीने की जेल काटने के बाद कंडीशनल ज़मानत दे दी गई थी. कोर्ट ने इसी का हवाला देते हुए उन्हें दोबारा से सज़ा सुनाई है कि उन्हें सशर्त बेल दी गई थी. जिसे कभी भी रिवोक किया जा सकता था.


2. मोहम्मद रसूलोफ
मोहम्मद रसूलोफ

मोहम्मद रसूलोफ क्रिटिकली अक्लेम्ड फिल्मकार हैं. उन्हें उनकी अवॉर्ड विनिंग फिल्मों और सामाजिक सक्रियता के लिए जाना जाता है. उनकी फिल्म 'देयर इज़ नो एविल' को बर्लिन फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म का गोल्डन बेयर प्राइज़ दिया गया था. पर ईरान में लगे ट्रैवल बैन के चलते वो अवॉर्ड लेने नहीं जा सके थे. उनकी बेटी ने उनकी जगह पर अवॉर्ड स्वीकार किया था. रसूलोफ के सम्मान में ऑर्गेनाइजर्स ने उनके नाम का कार्ड छोड़ते हुए कुर्सी खाली छोड़ी थी. सेक्युरिटी फोर्सेज़ से हथियार डालने की अपील करने के कारण ही मोहम्मद रसूलोफ की भी गिरफ़्तारी हुई थी. उन्हें दो और पुराने मामलों के चलते भी गिरफ़्तार किया गया है. इससे पहले रसूलोफ को उनकी फिल्म 'मैन ऑफ इंटीग्रिटी' के लिए एक साल की सज़ा सुनाई गई थी. साथ ही डॉक्यूमेंट्री 'इंटरनेशनल क्राइम' बनाने के लिए भी उनकी गिरफ़्तारी हुई है. जिसमें वो एक ईरानी लेखक-कवि की मौत को इंवेस्टिगेट कर रहे थे. फिलहाल रसूलोफ को तेहरान की एवीन जेल में दूसरे राजनैतिक बंदियों के साथ रखा गया है.

3. मुस्तफा अल-अहमद
मुस्तफा अल-अहमद

मुस्तफा अल-अहमद, ईरानी फिल्मकार मोहम्मद रसूलोफ से जुड़े रहे हैं. उन्होंने 2009 में 'पूस्ते' (Poosteh) नाम की फिल्म बनाई. ये उस व्यक्ति के बारे में है, जो जेल से बाहर आकर अपनी नई ज़िंदगी शुरू करने की कोशिश कर रहा है. उनकी गिरफ़्तारी भी उसी मामले में हुई है. जिसमें पनाही और रसूलोफ को गिरफ़्तार किया गया था. वो भी उन 334 कला जगत के लोगों में शामिल थे, जिन्होंने अबादान प्रोटेस्ट में तैनात पुलिस वालों से पीछे हटने की अपील की थी. अल-अहमद को रसूलोफ के साथ ही गिरफ़्तार किया गया था. वो भी तेहरान की एवीन जेल में हैं.

4. अविनाश दास
अविनाश दास

अविनाश दास पत्रकार थे. फिर फिल्मकार बने. 2017 में उन्होंने स्वरा भास्कर, संजय मिश्रा और पंकज त्रिपाठी को लेकर 'अनारकली ऑफ आरा' नाम की फिल्म बनाई थी. इसके बाद उन्होंने ज़ी5 के लिए 'रात बाकी है' नाम की फिल्म और MX प्लेयर के लिए 'रनअवे लुगाई' जैसी सीरीज़ डायरेक्ट की. चर्चित नेटफ्लिक्स सीरीज़ SHE के पहले सीज़न को अविनाश दास ने आरिफ अली के साथ मिलकर डायरेक्ट किया था. अविनाश ने पिछले दिनों सोशल मीडिया पर अमित शाह और IAS पूजा सिंघल की एक फोटो पोस्ट की थी. इस तस्वीर में पूजा, अमित शाह के कान में कुछ कहती दिख रही हैं. पूजा वो ऑफिसर हैं, जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्डरिंग केस में गिरफ्तार किया था. इसे गृह मंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाना माना गया. 19 जुलाई की सुबह अविनाश अपने दफ्तर के लिए निकले, अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने उन्हें बीच रास्ते से हिरासत में ले लिया.

5. होसैन राजाबियन
होसैन राजाबियन

होसैन राजाबियन एक ईरानी फिल्ममेकर, लेखक और फोटोग्राफर हैं. 2013 में वो महिलाओं के तलाक अधिकार को लेकर 'द अपसाइड-डाउन' बना रहे थे. उसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. शूट एक्विपमेंट्स जब्त कर लिए गए. हालांकि ये गिरफ़्तारी 2007 में उनके और उनके साथियों द्वारा बनाई गई एक अंडरग्राउन्ड म्यूज़िक शेयरिंग वेबसाइट बनाने के नाम पर हुई थी. गिरफ़्तारी के बाद उन्हें तेहरान की एवीन जेल ले जाया गया. वहां अंधेरे कमरे में रखा गया. राजाबियन ने जेल की खस्ताहाल स्थिति और बुरी सुविधाओं के लिए 14 दिन की भूख हड़ताल भी की. जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल भेज दिया गया. चूंकि मुकदमे की सुनवाई 2016 में हुई तो तीन मिनट की सुनवाई में ही उनको छह साल जेल की सज़ा सुना दी गई. तीन साल जेल काटने के बाद अब वह जमानत पर हैं लेकिन उनके पास नागरिक अधिकार नहीं हैं. रिहाई के बाद राजाबियन ने नई फ़िल्म 'क्रिएशन बिटवीन टू सरफेसेज़' बनाई, जिसे पसंद भी किया गया.

6. किरील सेरेब्रेनिकफ (Kirill Serebrennikov)
किरील सेरेब्रेनिकफ

किरील सेरेब्रेनिकफ एक रशियन फिल्ममेकर हैं. लगातार उनकी फिल्मों को कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाया जाता रहा है. 2016 में उनकी फिल्म ऊचेनिक (UCHENIK) पहली बार कान्स में प्रदर्शित की गई. फिर 2018, 2021 और 2022 में उनकी फीचर फिल्म को कॉम्पटीशन कैटेगरी में दिखाया गया. 2022 में उनकी हालिया फिल्म ज़ेना चेकोवस्कवा (ZHENA CHAIKOVSKOGO) कान्स में दिखाई गई थी. उन्हें एक फ्रॉड के चलते 2017 में गिरफ़्तार कर लिया गया था. हालांकि इसे गिरफ़्तारी का प्रमुख कारण नहीं माना गया. इस गिरफ़्तारी को पॉलिटिकली मोटिवेटेड माना गया. उन्हें प्रचलित रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ने के लिए और राष्ट्रपति पुतिन की आलोचना करने के लिए जाना जाता है. गिरफ़्तारी के 20 महीने बाद अप्रैल 2019 में सेरेब्रेनिकफ को जमानत पर रिहा कर दिया गया.  

7. सेवोलद कोरायॉफ(Vsevolod Korolyov)
सेवोलद कोरायॉफ

कोरायॉफ एक रशियन फिल्ममेकर हैं जो अपनी सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक मसलों पर बनाई डॉक्यूमेंट्रीज़ के लिए जाने जाते हैं. उनकी लास्ट दो डॉक्यूमेंट्री दो महिलाओं के बारे में थीं. जिनमें से एक पत्रकार है और दूसरी कलाकार. दोनों महिलाएं फिलहाल जेल में बंद हैं. उन्होंने यूक्रेन-रूस वॉर का विरोध किया था. मार्च में पुतिन सरकार ने कानून पारित किया, जिसके तहत रूस मिलिट्री से जुड़ी फेक न्यूज फैलाने वाले लोगों को जेल में डाल देने की बात थी. इसी नियम के तहत सेवोलद कोरायॉफ को अरेस्ट किया गया था. कोरायॉफ ने सोशल मीडिया पर रशिया के यूक्रेन इनवेजन का विरोध करते हुए एक पोस्ट डाली थी. जिसके बाद सेना को लेकर गलत जानकारी फैलाने के लिए उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. 11 सितंबर को गिरफ़्तार कोरायॉफ को अब कोर्ट ने 13 जुलाई को जमानत दे दी है.

8. अजय टीजी
अजय टीजी

अजय टीजी एक भारतीय फिल्ममेकर, पत्रकार और ऐक्टिविस्ट हैं. उनकी फ़िल्में 'लिविंग मेमरी', 'सफर' और 'लास्ट शेल्टर'  भी समाजिक सरोकारों पर आधारित हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव में वो एक नक्सली गांव गए फ़ैक्ट फाइन्डिंग ग्रुप का हिस्सा थे. वहां उनके साथ हाथापाई हुई और उनका कैमरा छीन लिया गया. जिसके बाद अजय ने एक नक्सली को उनका कैमरा वापस करने के लिए लेटर लिखा. ऐसा पुलिस का मानना है. पर उनका कहना था कि उन्होंने कोई चिट्ठी नहीं लिखी. इसी चिट्ठी के चलते पुलिस ने नक्सली कनेक्शन बताकर उन्हें मई 2008 में गिरफ़्तार किया, फिर अगस्त 2008 में छोड़ दिया. और 2016 में इस मामले से कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया.  

9. देबा रंजन सारंगी
देबा रंजन सारंगी

देबा रंजन सारंगी एक भारतीय फिल्ममेकर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका सिनेमाई काम भी सामाजिक-राजनैतिक विषयों के इर्दगिर्द है जैसे: ऐट द क्रॉसरोड्स, फ्रॉम हिन्दू टू हिन्दुत्व या और भी कुछ फिल्में. उन्हें 18 मार्च 2016 में एक 2005 के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. जिसमें वो आदिवासी आंदोलन का हिस्सा थे. जहां आदिवादी काशीपुर (ओडिशा) में बॉक्साइट माइनिंग के लिए अपनी ज़मीन दिए जाने का विरोध कर रहे थे. इनकी रिहाई की मांग करते हुए अप्रैल 2016 में 500 कलाकारों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक नोट भी लिखा था.

10. हजूज कूका
हजूज कूका

जुलाई 1989 को उमर अल-बशीर ने तख्ता-पलट करके सूडान में सत्ता हथियाई. 2019 में पद से हटाए जाने तक वो कट्टरपंथी एजेंडा चलाते रहे जिसका ख़मियाज़ा सिनेमा को उठाना पड़ा. 1989 के बाद से सूडानी सिनेमा बर्लिन की दीवार की तरह ढह गया. कई फिल्ममेकर्स को जेल में डाल दिया गया. जो बचे वो विदेश चले गए. फिर कुछ नए फिल्मकार आए जिन्होंने अपने पुरखों से प्रेरित होकर सिनेमा को दोबारा ज़िंदा किया. उन्हीं में से एक प्रमुख नाम है, फिल्ममेकर हजूज कूका का. उन्हें 2014 में आई उनकी डॉक्यूमेंट्री 'बीस्ट ऑफ द एन्टॉनो' के लिए जाना जाता है. उन्हें एक शूट के दौरान हुए एक झगड़े के चलते अगस्त 2020 में साथियों सहित गिरफ़्तार किया गया. पर इस गिरफ़्तारी को भी राजनीति से प्रेरित ही माना गया क्योंकि वो लगातार सरकार के विरोध टिप्पणियां करते रहते हैं. गिरफ़्तारी के तीन महीने बाद अक्टूबर में उन्हें रिहा कर दिया गया.