सपा के कैंडिडेट प्रवीण निषाद ने आशंका जताई कि रिजल्ट में गड़बड़ी की जा सकती है. बोले- आखिर क्या वजह है कि फूलपुर में हर राउंड के आंकड़े आ रहे हैं. यहां 9 राउंड हो जाने के बाद भी आंकड़े नहीं जारी किए जा रहे. आरोप लगाया कि उनके एजेंट को भी बाहर निकाल दिया गया है.

गोरखपुर के डीएम राजीव पर काउंटिंग के दौरान मीडिया को रोकने का आरोप.
ये तो कुछ भी नहीं. जब मीडिया के लोगों ने जानना चाहा कि नतीजे बताने में देरी क्यों की जा रही है तो रिपोर्टर्स की काउंटिंग सेंटर में एंट्री ही बैन कर दी गई. आरोप है कि जहां गिनती चल रही थी, वहां पर्दे लगवा दिए गए. ये सब कौन करवा रहा था. कौन मीडिया को रोक रहा था. किसने 9 राउंड के आंकड़े दबाकर रखे थे. नाम है राजीव रौटेला. ये गोरखपुर के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट हैं. गिनती के वक्त राजीव रिटर्निंग ऑफिसर भी थे. पर वो ये सब क्यों कर रहे थे. किस बात का डर था?
इसका जवाब तब मिल गया जब मीडिया और विपक्ष के दबाव के बाद दूसरे राउंड के आंकड़े जारी किए गए. बताया गया कि सपा के प्रवीण निषाद बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला से 24 वोट आगे निकल गए हैं. फिर तीसरे, चौथे, पांचवें राउंड के आंकड़े आते गए और सपा की लीड बढ़ती गई. विपक्ष का आरोप है कि डीएम साहब इसीलिए आंकड़े दबाकर बैठे हुए थे, क्योंकि बीजेपी पिछड़ गई थी. हर राउंड में वोटों का अंतर बढ़ता जा रहा था.

राजीव रौटेला से चुनाव आयोग ने जवाब मांगा है.
डीएम राजीव रौटेला से जब इस देरी के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था- ऑब्जर्वर द्वारा साइन न किए जाने के कारण ही चुनाव नतीजों का ऐलान नहीं किया जा रहा. ये भी कहा कि काउंटिंग एक लंबी प्रक्रिया है, इसीलिए आंकड़े जारी करने में टाइम लग रहा है. मगर दूसरे राउंड के आंकड़े आए तो उनके तर्क कमजोर दिखने लगे. वो इसलिए भी क्योंकि इसी प्रक्रिया के तहत फूलपुर में भी काउंटिंग चल रही थी. सवाल उठता है कि वहां क्यों नहीं कोई दिक्कत आई.
वैसे ये पहली बार नहीं है जब 2002 बैच के आईएएस राजीव रौटेला विवादों में हों. उनके और भी किस्से हैं -
1. सितंबर 2013 में राजीव अलीगढ़ के डीएम थे. वहां मीडिया से बातचीत करते हुए राजीव ने भारत को ''लैंड ऑफ मॉर्नर्स'' (मातम करने वालों का देश) बता दिया था. वो शहीदों के परिवारों को दिए जाने वाले मुआवजे पर टिप्पणी कर रहे थे. बोले - अफगानिस्तान में 5000 अमेरिकी मारे गए, पर उनके परिवारों ने कभी मुआवजे की मांग नहीं की.
2. 15 दिसंबर 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामपुर में अवैध खनन के मामले में दो अधिकारियों को निलंबित करने के आदेश दिए थे. इनमें से एक राजीव रौटेला ही थे. दूसरे कानपुर देहात के डीएम राकेश कुमार सिंह थे. दोनों पर माइनिंग को बढ़ावा देने और जिम्मेदारों पर कार्रवाई न करने के आरोप थे. कोर्ट ने मामले में प्रमुख सचिव को कार्रवाई के निर्देश दिए थे, मगर क्या हुआ वो सबके सामने है.

योगी के साथ गोरखपुर डीएम.
3. योगी आदित्यनाथ और उनके साथियों पर लगे मुकदमों को खत्म करवाने में भी रौटेला ने बहुत तेजी दिखाई थी. मामला गोरखपुर के पीपीगंज थाने का था, जिसमें योगी आदित्यनाथ समेत 10 अन्य पर धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज था. आरोप था कि 27 मई, 1995 को इन लोगों ने पीपीगंज में एक सभा की थी जबकि प्रशासन ने इस पर रोक लगाई थी. इसमें राज्य सरकार ने दावा किया था कि डीएम ने जांच पड़ताल करने के बाद केस हटाने का फैसला किया है.
4. अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज में बच्चों की मौत की वारदात कौन भूल सकता है. उस वक्त भी रौटेला ही गोरखपुर डीएम थे. रौटेला ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स ने ऑक्सीजन सप्लाई काट दी थी. हालांकि कंपनी ने दावा किया था कि वो साबित कर सकती है कि उसने ऐसा नहीं किया.

गोरखपुर में अगस्त में इंसेफलाइटिस से पीड़ित बच्चे मरे थे.
वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान ने कहा कि राजीव रौतेला सीएम योगी के बहुत खास हैं. गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चों की मौत के बाद कई अधिकारी हटाए गए, लेकिन राजीव सीएम से नजदीकी के चलते बचे रहे. वे अब उसी अहसान का कर्ज चुका रहे हैं और ये बहुत ही अचरज भरी बात है.
खैर, ये तो हो गई डीएम राजीव रौटेला की पुरानी बात. ताजा काउंटिंग वाले मामले में चुनाव आयोग ने उनसे रिपोर्ट भी मांगी है. देखने वाला होगा कि राजीव रिपोर्ट में क्या लिखकर देते हैं. मामले में राजीव की सोशल मीडिया से लेकर हर जगह भद पिट रही है. अब चुनाव आयोग क्या करेगा, इस पर भी सबकी नजर होगी. राज्य की योगी सरकार की भी इस मामले में काफी भद पिटी है, सो उनके ऐक्शन का भी सबको इंतजार रहेगा.
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