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मिजोरम के लोगों को चुनाव रिजल्ट के दिन से क्या दिक्कत है?

7 नवंबर को छत्तीसगढ़ के पहले चरण के साथ पूरे मिजोरम में वोटिंग हुई. लेकिन अब यहां चुनाव परिणाम वाले दिन को लेकर काफी विरोध हो रहा है.

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मिजोरम चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को घोषित होंगे

संडे, रविवार, इतवार. वैसे तो ये दिन देशभर के अधिकतर कामकाजी लोगों के लिए छुट्टी का दिन होता है. लेकिन देश के पांच राज्य में ये दिन चुनावों के रिजल्ट का दिन है. तारीख है 3 दिसंबर, दिन रविवार. मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में लोग इसको लेकर काफी उत्साहित हैं, लेकिन मिजोरम में काउंटिंग को लेकर काफी विरोध वाली स्थिति बनी हुई है. ऐसा क्यों? आखिर रविवार को चुनाव के परिणाम से किसी को भला क्या दिक्कत हो सकती है? 

मिजोरम में 7 नवंबर को वोटिंग हुई. लल्लनटॉप की टीम चुनाव की कवरेज के लिए मिजोरम पहुंची थी. यहां ऐसी तमाम चीजें नजर आईं, जो शायद भारत के दूसरे हिस्सों में इतनी आम नहीं हैं. जैसे रविवार का दिन मिजोरम के लिए बेहद जरूरी दिन होता है. मिजोरम में 87 प्रतिशत से ज्यादा आबादी क्रिश्चियानिटी यानी ईसाई धर्म को मानती है. रविवार का दिन ईसाई धर्म के लोगों के लिए धार्मिक दिन माना जाता है. इस दिन पूरे मिजोरम के गांवों और शहरों में चर्च सर्विस की जाती है. आसान भाषा में कहें तो इस दिन ईसाई लोग अपना पूरा दिन गॉड को समर्पित करते हैं.

सुबह से ही लोग चर्च सर्विस की तैयारियों में लग जाते हैं. इस दिन हमारी टीम भी आईजोल की सड़कों पर निकली. दो तरह की तस्वीरें नजर आती हैं. एक तस्वीर जिसमें रविवार का दिन आईजोल में किसी त्योहार से कम नजर नहीं आता है. बच्चे हों या बड़े, सब तैयार होकर सड़कों के किनारे खड़े हैं. उन्हें चर्च जाने के लिए गाड़ी का इंतजार है.

जहां लोग नजर आ रहे वहां काफी खुशनुमा सा माहौल है, लेकिन जहां लोग नहीं हैं वहां ऐसा लगता है मानो कोई कर्फ्यू सा लगा हो. सड़कें सूनी पड़ी हैं, दुकानें बंद हैं, सारे सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरों की छुट्टी होती है. लोग इस दिन कोई भी व्यवसाय नहीं करते हैं. यहां तक कि इस दिन अखबार भी नहीं बांटे जाते हैं. इतना कुछ देखने के बाद इस बात का अंदाजा तो हो चुका था कि रविवार का दिन मिजोरम के लिए किसी बड़े त्योहार से कम नहीं है.

सूनी सड़कें, बंद दुकानें

अब चलते हैं चुनाव की तरफ. 7 नवंबर को छत्तीसगढ़ के पहले चरण के साथ पूरे मिजोरम में वोटिंग हुई. 91 प्रतिशत साक्षरता दर वाले इस राज्य में 78 प्रतिशत से भी ज्यादा वोटिंग हुई. सारा दारोमदार अब 3 दिसंबर यानी वोटों की गिनती वाले दिन पर है. रविवार को लेकर अब चर्चा जोरों पर है. अधिकतर राजनैतिक पार्टियां अब रविवार को इलेक्शन काउंटिंग का खुलकर विरोध कर रही हैं. सत्ताधारी MNF यानी मिजो नेशनल फ्रंट ने इलेक्शन कमीशन को चिट्ठी लिखी है. इसके बाद कांग्रेस, ZPM, BJP और दूसरी पार्टियों ने भी एक के बाद एक चिट्ठियां लिखीं. हर दल की एक ही मांग थी कि वोटों की गिनती रविवार के दिन ना हो.

आपको बता दें, मिजोरम में चर्च का इन्फ्लुएंस काफी अधिक है. नियम कानून बनाने में भी चर्च की भागीदारी होती है. मिजोरम में चुनाव से जुड़े कुछ नियमों को वहां की एक संस्था मिजो पीपल्स फ्रंट (MPF) बनाती है. इस संस्था में मिजोरम की 7 चर्च शामिल हैं और 5 NGO भी इसमें हिस्सेदार हैं. MPF की बनाई हुई गाइडलाइंस को चुनाव के दौरान फॉलो किया जाता है. क्या हैं वो गाइडलाइन्स, आइए समझते हैं.

चुनाव प्रचार कैसे होता है?

मिजोरम में चुनाव की घोषणा से पहले सिर्फ घर-घर जाकर वोट मांगने की परमिशन थी. तारीखों के एलान के बाद इस पर भी पाबंदी लग गई. राजनैतिक दल ना तो तेज आवाज में प्रचार कर सकते हैं और ना ही कोई सभा, ना रैली, ना लाउडस्पीकर. सोच में पड़ गए ना कि फिर यहां प्रचार होता कैसे है?

अगर आपने कभी अमेरिका के इलेक्शन को लेकर खबर देखी या सुनी हो, तो वहां के कॉमन प्लेटफॉर्म के बारे में जानते होंगे. मिजोरम में भी कॉमन प्लेटफॉर्म का आयोजन किया जाता है. यहां हर दल के उम्मीदवार आपस में डिबेट करते हैं. इन डिबेट्स में लोगों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जाती है. डिबेट के अलावा यहां पोस्टर लगाने की इजाजत होती है. यही वजह है कि सड़कों पर पोस्टर्स काफी नजर आते हैं. ज्यादातर पोस्टर किसी एक उम्मीदवार के समर्थन में होता है. कैंडिडेट आइजोल के प्रेस क्लब में जाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करते हैं.

त्रिकोणीय मुकाबला

राजनीति की बात करें तो मिजोरम में इस बार MNF यानी मिजो नेशनल फ्रंट, ZPM यानी जोरम पीपल्स मूवमेंट और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. हालांकि MNF सत्ता में बने रहने के लिए काफी जोर लगा रही है. इसके अलावा MNF के पुराने कॉम्पिटीटर कांग्रेस को ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है.

ZPM नई पार्टी है. दिल्ली की आम आदमी पार्टी की तरह ये भी मिजोरम में जोर आजमाइश कर रही है. जोरमथांगा के नेतृत्व वाली MNF के लिए इस बार कांग्रेस से ज्यादा सिरदर्द ZPM बनकर आई है. ZPM की बात करें तो सीएम कैंडिडेट ललदुहोमा पहले IPS अफसर भी रह चुके हैं. ललदुहोमा इंदिरा गांधी के सिक्योरिटी इंचार्ज भी रह चुके हैं. उन्हें मिजोरम आंदोलन के दौरान लालडेंगा से बातचीत करने के लिए भेजा गया था. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली थी. पूर्व सीएम पु ललथनहवला को ललदुहोमा ने सर्छिप सीट से हराया था. जिसके बाद ललथनहवला ने सत्ता से रियारमेंट की घोषणा कर दी थी. उनकी जगह लेने के लिए ललसॉटा को उतारा गया है, जो फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं.

इस त्रिकोणीय मुकाबले से इतर एक मुकाबला मिजोरम में और होने को तैयार दिख रहा है. ये मुकाबला रिजल्ट वाले दिन को लेकर है. हालांकि इलेक्शन कमीशन ने इसको लेकर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. मिजोरम में रिजल्ट की तारीख क्या बदलेगी, ये देखने वाली बात है. लेकिन एक बात तो हम सबको समझनी होगी कि मिजोरम को बाकी देश के हिस्सों के साथ तौलना शायद गलत होगा, क्योंकि वहां के तौर तरीके, रहन सहन से लेकर जिंदगी जीने का तरीका बिलकुल अलग है. इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि इस देश में दो मिजोरम बसते हैं. एक मिजोरम जिसे हम किताबों में, न्यूज में, वीडियोज में देखते हैं. तो वहीं दूसरा मिजोरम है, जिसे सिर्फ वहां जाकर ही जाना जा सकता है. हमने दूसरे वाले मिजोरम को जाना है. आपको भी जानना चाहिए. मिजोरम पर और भी ऐसी स्टोरीज हम आप तक लेकर आने वाले हैं.