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UP Loksabha Results: 'सपरिवार' संसद जाएंगे अखिलेश यादव, पत्नी, भाई-भतीजे सब जीत गए

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी सीट कन्नौज से जीते. ‘सपरिवार’ जीते. उनकी पत्नी, भाई-भतीजे, सब.

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ये चुनाव सपा के लिए तो अच्छा रहा ही, यादव परिवार के लिए भी. (फ़ोटो - एजेंसी)

2024 आम चुनावों में उत्तर प्रदेश में INDIA गठबंधन को अप्रत्याशित जीत मिली है. समाजवादी पार्टी को 80 में से 37 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को छह. वहीं, एग्ज़िट पोल्स में उत्तर प्रदेश में भाजपा को 65 से 70 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया, लेकिन वहां उसको 33 सीटें मिली हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी सीट कन्नौज से जीते. ‘सपरिवार’ जीते. उनकी पत्नी, भाई-भतीजे, सब.

कन्नौज

अपनी सीट से अखिलेश एक लाख 70 हज़ार वोटों से ज़्यादा के अंतर से जीते हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक़, उन्हें 6,42,292 वोट मिले. उनके बरक्स भाजपा के सुभ्रत पाठक के पाले 4,71,370 वोट आए. तीसरे नंबर पर रहे, बसपा के इमरान बिन ज़फ़र. 81,639 वोटों के साथ. 

ग्राउंड कवर करने वाले पत्रकारों का इनपुट था कि अखिलेश अपनी सीट से मज़बूत थे ही. अधिकतर एग्ज़िट पोल्स में भी यही अनुमान थे. दूसरी तरफ़ सुभ्रत पाठक से लोग बहुत ख़ुश नहीं थे. जनता में उनकी ऐसी छवि थी कि उन तक पहुंचा नहीं जा सकता.

मैनपुरी

एग्ज़िट पोल में डिंपल यादव मज़बूत दावेदार थीं. वही जीतीं भी. केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक़, डिंपल को 5,98,526 वोट मिले हैं. उनके ख़िलाफ़ खड़े हुए जयवीर सिंह - जो योगी कैबिनेट में मंत्री हैं  - उन्हें 3,76,887 वोट मिले हैं. यानी 2,21,639 का अंतर.

मैनपुरी लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के ‘अभेद्य क़िले’ के रूप में जानी जाती है. '89 और '91 में जनता पार्टी ने इस सीट से जीत दर्ज की, फिर 1992 में बनी सपा और पार्टी गठन करने के बाद मुलायम सिंह यादव ने यहां से 1996 का चुनाव लड़ा. बंपर जीते. तब से इस सीट को सपा का गढ़ और किले जैसी उपमाएं दी जाती हैं. मुलायम सिंह यादव (1996, 2009, 2014, 2019), बलराम सिंह यादव (1998,1999) धर्मेंद्र यादव (2004), तेज प्रताप यादव (2014) यहां से सांसद रह चुके हैं.

स्थानीय पत्रकारों ने पहले ही बहुत विश्वास के साथ बताया था कि डिंपल इलाक़े में मज़बूत थीं. बस मार्जिन का खेल था. वो कुछ कम हुआ है.

आज़मगढ़

भोजपूरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ हार गए हैं. अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र प्रधान से. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक़, धर्मेंद्र यादव को 5,08,239 मिले हैं और दिनेश लाल को 3,47,204. माने कुल 1,61,035 का अंतर.

राजनीति के लिहाज़ से इस सीट पर यादव जाति के लोगों का प्रभुत्व रहा है. यहां पर 14 बार यादव जाति के सांसद चुने गए. इस बार भी वही टक्कर थी – 'यादव बनाम यादव'. दिनेश लाल यादव बनाम धर्मेंद्र यादव.

एक तरफ़ धर्मेंद्र यादव थे. तीन बार सांसद रहे हैं. मगर मैनपुरी और बदांयू से. सूबे की राजनीति समझने वाले कह रहे थे कि भले ही 2022 में पहली बार धर्मेंद्र आज़मगढ़ आए, मगर यहां 'इटावा-सैफ़ई परिवार' की स्वीकार्यता है. क्षेत्र में उनकी छवि एक अप्रोचेबल नेता की है. ज़मीन पर दिखते हैं, लोगों की नज़र में हैं. उनके ख़िलाफ़ थे, दिनेश लाल यादव. भोजपुरी फ़िल्म जगत की नामी शख़्सियत. लेकिन मास अपील और भारतीय जनता पार्टी के नाम के बावजूद जीत नहीं पाए.

फ़िरोज़ाबाद

सपा के अक्षय यादव ने भाजपा के विश्वदीप सिंह को 89,312  वोटों से हरा दिया है. आंकड़ों की कहें, तो उन्हें कुल 5,43,037 वोट मिले हैं. भाजपा प्रत्याशी विश्वदीप सिंह दूसरे नंबर पर रहे. उन्हें 4,52,504 और तीसरे नंबर पर रहे बसपा के चौधरी बशीर को 90,844 वोट मिले हैं.

साल 2014 में अक्षय इस सीट से जीते थे, मगर 2019 में चंदन सिंह से हार गए थे. क़रीब 30,000 वोटों से. इस बार चौक-चौराहों पर चर्चा थी कि अक्षय यादव की जगह हरिओम यादव को लड़ाना चाहिए था. हरिओम, मुलायम सिंह यादव के संबंधी हैं. चर्चा ये भी थी कि रामगोपाल यादव ने अपने बेटे के लिए बहुत ज़ोर लगाया था.

बदायूं

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव ने भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य को 34,991 वोटों से हरा दिया है. आदित्य को कुल 5,01,855 वोट मिले, और शाक्य को 4,66,864.

यादव परिवार की यही इकलौती सीट थी, जो फंसी हुई बताई जा रही थी. संभवतः इसीलिए इस सीट पर अंतिम तक फ़ाइट रही. हालांकि, अंततः आदित्य जीत गए. 

अखिलेश यादव के परिवार से कुल पांच लोगों ने चुनाव लड़ा था. अब सब संसद जाएंगे. 

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