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अखिलेश तो जजंतरम ममंतरम के 'जावेद जाफरी' निकले, कांग्रेस को बौना बना दिया

इतनी बड़ी पार्टी यूपी में 105 सीटों पर ही सिमटी. यानी कांग्रेस का हाथ अब साइकिल के हैंडल पर.

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फोटो - thelallantop

साल 2003 में एक फिल्म आई थी. नाम था जजंतरम ममंतरम. लीड में थे जावेद जाफरी. और विलेन बने थे गुलशन ग्रोवर. ये फिल्म जोनाथन स्विफ्ट के 'गुलीवर ट्रैवल्स' कहानी पर आधारित थी. फिल्म में दिखाया गया कि जावेद जाफरी ऐसे द्वीप पर पहुंच जाते हैं. जहां सब बौने नजर आते हैं. और जावेद जाफरी एक लहीम शहीम आदमी. यूपी में चुनाव की तैयारी हो रही है और मुझे बार-बार इसी फिल्म के सीन याद आ रहे हैं. क्योंकि मौजूदा दौर में अखिलेश जजंतरम ममंतरम के जावेद जाफरी हो गए हैं. और कांग्रेस पार्टी बौना बना दिया है. ये कांग्रेस का बौनापन ही तो है. जो गठबंधन में अब तक ज्यादा से ज्यादा सीटें मांग रही थी और अब उसे इतनी बड़ी पार्टी होने के बावजूद अखिलेश के सामने झुकना पड़ गया. और महज़ 105 सीटों पर ही गठबंधन कर लिया.

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गठबंधन होगा. या नहीं होगा, इसको लेकर जो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच खींचातनी हुई उसकी कई वजहें रहीं. इनमें से एक वजह यह भी रही कि कांग्रेस अखिलेश यादव का राजनीतिक कद भांप नहीं पाई. यानी उन्होंने अखिलेश को काफी हल्के में ले लिया था. दूसरी वजह ये भी रही कि कांग्रेस की तरफ से गठबंधन से जुड़ी सारी बातें करने के लिए ना तो राहुल गांधी आगे आए, और ना ही प्रियंका गांधी. बल्कि उनकी तरफ से प्रशांत किशोर और IAS ऑफिसर रह चुके धीरज श्रीवास्तव को इसके लिए अखिलेश के पास भेजा गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के पास शुक्रवार या शनिवार की रात को एक बजे के करीब प्रियंका गांधी का फोन आया. उन्होंने कहा कि अखिलेश ने फोन बंद किया हुआ है. दोनों के बीच क्या बात हुई इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. जबकि अखिलेश ने पहले ही कांग्रेस से कह रखा था कि गठबंधन की बात वे लोग डिंपल से कर सकते हैं. लेकिन अखिलेश को लगा था कि प्रियंका किसी सीनियर नेता को भेजेंगी, लेकिन उन्होंने प्रशांत किशोर को भेज दिया.

दरअसल गठबंधन को लेकर कांग्रेस गलत फहमियां पाल बैठी थी. उसने सोचा कि बाप से झगड़ा हो गया है. अब हम इस लड़के के सिर पर एक पड़ोसी की तरह शफ़क्क़त का हाथ फेरेंगे और हमदर्दी जताते जताते ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ लेंगे. और बीजेपी को जीतने से रोक लेंगे. इसी तरह जब जजंतरम ममंतरम में जावेद जाफरी उस द्वीप पर जा पहुंचते हैं, जहां सब बौने हैं और वो बौने एक दैत्य (हमारा वाला आशीष दैत्य नहीं) से परेशान हैं. तो वो लहीम शहीम आदमी को देखकर खूब उछल कूद करते हैं. उन्हें लगता है कि हम इसके ज़रिये दैत्य से निपट सकते हैं. कांग्रेस को भी ये ही लगता है कि हम अखिलेश के जरिये सत्ता में आ सकते हैं. फिल्म में दिखाया गया कि गुलशन ग्रोवर झामुंडा नाम के दैत्य का इस्तेमाल अपना राज स्थापित करने के लिए करते हैं. उसी तरह कांग्रेस ने सोचा था कि वो अखिलेश को झामुंडा बनाकर बाकी विरोधियों को हजम कर जाएगी. मगर अखिलेश यादव कांग्रेस का झामुंडा नहीं बल्कि उसके लिए जावेद जाफरी निकले. और कांग्रेस को हजम कर गए. अखिलेश को हल्के में लेना कांग्रेस की बेवकूफी थी. वो भी उस वक्त जब अखिलेश यादव समाजवादी कुनबे में खिलाफत करके एक विजेता के रूप में सामने आए. जो खुद को एक बड़े लीडर के रूप में पेश कर रहा हो उसे ये कैसे बर्दाश्त होता कि कांग्रेस की तरफ से कोई छोटा मोटा आदमी आए गठबंधन की गांठ लगाकर चला जाए. अखिलेश को लगा होगा कि राहुल या प्रियंका न सही कम से कम पार्टी का कोई और दिग्गज नेता या फिर कांग्रेस वर्किंग कमेटी का कोई शख्स उनके पास आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब गठबंधन न होने के आसार दिखाई दिए तब आखिर में प्रियंका गांधी ने डिंपल यादव को फोन लगाया. क्योंकि गठबंधन करना कांग्रेस के लिए अब मजबूरी बन गया था. वजह वही अखिलेश का जजंतरम ममंतरम का जावेद जाफरी बन जाना. एक सपा नेता का कहना था, 'यूपी की राजनीति में अखिलेश का कद काफी बड़ा है. कांग्रेस इस बात को नहीं समझ पाई. इससे उनका घमंड और बेपरवाह रवैया साफ तौर पर देखा जा सकता है.' फिर भी बातचीत के आखिर तक अखिलेश यादव कांग्रेस को चुनाव के लिए 99 सीट देने के लिए तैयार थे. इसमें भी 25 ऐसे कैंडिडेट शामिल थे, जो सपा के थे, लेकिन कांग्रेस के निशान पर चुनाव लड़ने वाले थे. अखिलेश ने प्रशांत से कहा था कि 99 लकी नंबर है. लेकिन कांग्रेस राजी नहीं हुई. कांग्रेस की हालत अखिलेश ने इतनी पतली कर दी कि गठबंधन उनकी मजबूरी बना दिया. फिर खबर आई कि अखिलेश यादव कांग्रेस को बस 105 सीटें देने को राज़ी हैं, और आखिर में कांग्रेस को हार माननी पड़ी जहां वो पहले 130 से ज्यादा सीट की मांग कर रही थी. वहीं अब उसे 105 सीट पर ही गठबंधन करना पड़ा. यूपी में अब कांग्रेस का हाथ साइकिल चलाएगा. ये गठबंधन राजनीति में क्या गुल खिलाएगा इसके लिए तो अभी इंतजार ही करना पड़ेगा.

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