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काराकाट में हजारों की भीड़ जुटाने वाले पवन सिंह सिर्फ 'वोट कटवा' उम्मीदवार तो नहीं? एक्सपर्ट क्या कह रहें?

Bihar के Karakat में Pawan Singh ने चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है. उनकी रैलियों में हजारों की भीड़ पहुंच रही है. लेकिन ये भीड़ उनके वोटर्स की है या सिर्फ उनके फैन्स की? एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

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काराकाट में 1 जून को वोटिंग होनी है. (फाइल फोटो: PTI/इंडिया टुडे)

लोकसभा चुनाव के लिए अंतिम चरण की वोटिंग 1 जून को होनी है. बिहार के काराकाट (Karakat Lok Sabha Election) में भी इसी दिन मतदान होना है. NDA की ओर राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) चुनावी मैदान में हैं. और INDIA गठबंधन की ओर से CPI (ML)L के राजा राम सिंह (Raja Ram Singh) (कुशवाहा) चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन मुकाबले में एंट्री हुई है भोजपुरी एक्टर और गायक पवन सिंह (Pawan Singh) की. पवन सिंह यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

जानकार बता रहे हैं कि पवन सिंह ने काराकाट की लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का पूरा प्रयास किया है. इलाके में पवन सिंह अपनी रैली में सबसे ज्यादा भीड़ जुटाने में सक्षम हैं. उन्होंने काराकाट के लिए 20 प्वाइंट्स वाला एक मेनिफेस्टो भी जारी किया है. भोजपुरी इंडस्ट्री से जुड़े कलाकार उनकी रैलियों में पहुंच रहे हैं. सालों से चल रहे विवाद के बाद भोजपुरी एक्टर और गायक खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav) ने भी उनके लिए चुनाव प्रचार किया है. इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं है कि पवन और खेसारी के लिए एक साथ हजारों भोजपुरी बोलने वालों की भीड़ जुटाना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये भीड़ पवन सिंह के लिए वोट का रूप ले पाएगी? और अगर ऐसा हुआ तो किसको नफा-नुकसान हो सकता है?

Khesari Lal Yadav and Pawan Singh
पवन सिंह के चुनाव प्रचार के लिए काराकाट पहुंचे थे खेसारी. (तस्वीर साभार: PTI)

इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार पुष्य मित्र इस बारे में कहते हैं,

"यहां मामला त्रिकोणीय हो गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है. ऐसे लोग जो किसी पार्टी से नहीं जुड़े हैं, उनमें पवन सिंह का क्रेज है. माहौल के हिसाब से वो मुकाबले में हैं. उनके स्वजातीय राजपूत समाज के लोग और 35 साल से कम उम्र के युवाओं में उनकी खूब चर्चा है. कुछ लोग कह रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता नहीं है, मुझे ऐसा नहीं लगता. उनके लिए भोजपुरी कलाकार प्रचार कर रहे हैं लेकिन उनका खुद का एक फैन बेस भी है."

उन्होंने आगे कहा कि अंदर ही अंदर जदयू और भाजपा के भी कुछ लोग पवन सिंह को सपोर्ट कर रहे हैं.

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इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े पत्रकार संतोष सिंह अपनी एक रिपोर्ट में लिखते हैं कि पवन सिंह के चुनावी मुकाबले में आने से राजा राम सिंह को फायदा पहुंच सकता है. पवन सिंह को भाजपा ने पार्टी से निष्कासित कर दिया है. वो NDA के वोटबैंक में डेंट लगा सकते हैं.

स्थानीय राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र मिश्रा इससे बिल्कुल उलट विचार रखते हैं. वो इस बारे में बताते हैं,

"सोशल मीडिया पर पवन सिंह की रैली में भीड़ वाले बहुत सारे वीडियो और फोटो हैं. आप ध्यान से देखिए. इनमें अधिकतर 15 से 25 साल के युवा हैं. इनमें से अधिकतर तो वोटर भी नहीं होंगे. उन्होंने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास तो किया है. लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है. अधिकतर लोग उनकी रैली में फोटो और सेल्फी के लिए आ रहे हैं. सीधे-सीधे ये उनके फैन्स की भीड़ है ना कि उनके वोटर्स की."

Pawan Singh
काराकाट में चुनाव प्रचार के दौरान पवन सिंह. (तस्वीर साभार: PTI)
किसका वोट काटेंगे पवन?

उपेंद्र मिश्रा पवन सिंह को ‘वोट कटवा’ उम्मीदवार कहते हैं. वो बताते हैं,

“पवन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और राजा राम सिंह के वोटबैंक में डेंट लगा सकते हैं. लेकिन जीत के मुकाबले में नहीं हैं.”

पवन सिंह अगर मुकाबले से बाहर हैं तो उपेंद्र कुशवाहा और राजा राम सिंह का मुकाबला आमने-सामने का है. वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र मिश्रा इस पर कहते हैं,

“उपेंद्र कुशवाहा और राजा राम सिंह दोनों महतो (कुशवाहा) समाज से आते हैं. और महतो समाज अधिकतर समय सत्ता के साथ जाता है. गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि वो उपेंद्र कुशवाहा को बड़ा आदमी बनाएंगे. महतो समाज ये उम्मीद कर रहा है कि उनको मंत्री पद मिलेगा. इसलिए करीब 90 प्रतिशत कुशवाहा वोटर उपेंद्र कुशवाहा के पक्ष में ही दिख रहे हैं. साथ ही उनको बाकी जातियों का भी समर्थन प्राप्त है.”

हालांकि, पुष्य मित्र उपेंद्र कुशवाहा के बारे में इससे बिल्कुल उलट विचार रखते हैं. 25 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काराकाट में उपेंद्र कुशवाहा के चुनाव प्रचार में पहुंचे थे. पुष्य मित्र इस बारे में कहते हैं,

“PM की रैली से पहले क्षेत्र में जितना मैंने देखा और समझा, उपेंद्र कुशवाहा के पक्ष में माहौल नहीं दिखा. उनकी कोई खास बात नहीं हो रही है. तब तक मुकाबला पवन सिंह और राजा राम सिंह के ही बीच था.”

हालांकि, उन्होंने इस बात की थोड़ी-सी गुंजाइश भी बताई कि हो सकता है PM की रैली के बाद माहौल में थोड़ा-बहुत बदलाव आए.

खेसारी और पवन की जोड़ी से जाति को साधने की कोशिश?

इस दौरान लल्लनटॉप की टीम भी अपनी चुनावी यात्रा पर काराकाट पहुंची थी. टीम से मिले फिडबैक के अनुसार,

“बिहार में खेसारी लाल यादव और पवन सिंह साथ दिखे. दोनों भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सेलिब्रिटी हैं. लेकिन हर सेलिब्रिटी की एक जाति भी होती है. पवन और खेसारी के साथ आने से यादव और राजपूत जाति का समीकरण बनता है. खेसारी लाल यादव के फैन्स दावा करते हैं कि खेसारी यादवों के सबसे बड़े स्टार हैं. ऐसे में यादव वोटों को लुभाया जा सकता है.”

खेसारी और पवन की ये जोड़ी, हजारों की भीड़, उनका 20 पॉइंट्स वाला मेनिफेस्टो और पवन सिंह की ख्याति उनके कितना काम आएगी? इस बात का जवाब तो 4 जून को वोटों की गिनती के बाद मिल ही जाएगा. लेकिन फिलहाल इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि पवन सिंह ने काराकाट के लोगों का ध्यान खींच लिया है.

पिछले चुनावों में क्या हुआ?

लोकसभा चुनाव 2019 में काराकाट से JDU के महाबली सिंह को जीत मिली थी. उनको 3 लाख 98 हजार 408 वोट मिले थे. तब उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का नाम रालोसपा था. वो चुनाव हार गए थे, उनको 3 लाख 13 हजार 866 वोट मिले थे.

इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोसपा से उपेन्द्र कुशवाहा को जीत मिली थी. उनको 3 लाख 38 हजार 892 वोट मिले थे. 2 लाख 33 हजार 651 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे, RJD के कांति सिंह. 76 हजार 709 वोटों के साथ JDU के महाबली सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे.

वीडियो: भोजपुरी स्टार पवन सिंह के चुनाव लड़ने पर क्या बोले काराकाट के लोग?