अब हमारी सरकार का तीसरा कार्यकाल भी बहुत ज्यादा दूर नहीं है. ज्यादा से ज्यादा 100-125 दिन बाकी हैं. और अबकी बार मैं आमतौर पर आंकड़ों के चक्कर में नहीं पड़ता, लेकिन मैं देख रहा हूं देश का मिज़ाज NDA को तो 400 पार करवा कर ही रहेगा, BJP को 370 सीट अवश्य देगा. BJP को 370 सीट और NDA को 400 पार.
370 सीटें जीतने का दावा, फिर गठबंधन पर फोकस BJP की कमजोरी है या कोई बड़ा खेल?
PM Modi ने संसद में दावा किया कि इस बार लोकसभा चुनाव में BJP को 370 सीट मिलेंगी और NDA को 400 पार. BJP President JP Nadda और Amit Shah भी इस बात को लगातार दोहरा रहे हैं. इस आत्मविश्वास के बावजूद BJP क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन क्यों कर रही है?
प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने 5 फरवरी, 2024 को लोकसभा में ये दावा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर के दौरान किया. प्रधानमंत्री, जितनी बार 'अबकी बार…' बोल रहे थे, पीछे से पूरा BJP खेमा '400 पार…' का गुंजायमान करता रहा.
वहीं गृह मंत्री अमित शाह 12 फरवरी को अहमदाबाद में थे. उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा,"लोकसभा चुनाव के नतीजों के बारे में किसी भी राज्य में कोई आशंका नहीं है. पूरे देश में यह माहौल है कि BJP को 370 सीट और एनडीए को 400 से ज्यादा सीट मिलेंगी."
17-18 फरवरी को दिल्ली में BJP राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बैठक में कहते है, “इस बार जीत के सारे रिकॉर्ड टूटेंगे. BJP को 370 सीटों पर जीत दर्ज करेगी.”
भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान से लेकर कार्यकर्ता तक इस बात का दावा कर रहे हैं कि पार्टी अपने दम पर न सिर्फ बहुमत हासिल करेगी बल्कि बहुमत से आंकड़े 273 से करीब 100 सीटें ज्यादा लेकर आएगी. बावजूद इसके जैसे-जैसे आम चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, BJP अपने साथ छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों को जोड़कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का कुनबा लगातार बढ़ाने की कोशिश में जुटी है.
दो दिन पहले 9 मार्च को आंध्र प्रदेश में BJP ने चंद्र बाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी (TDP) के साथ गठबंधन किया. बताया जा रहा है कि BJP-TDP- जनसेना पार्टी के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी तय हो गया है. नायडू 6 साल पहले NDA से अलग हुए थे. कुछ दिन पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का एलान किया गया और इसी के साथ पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल (RLD), INDIA खेमे से NDA शिफ्ट हो गई. थोड़ा और पहले चलेंगे, तो बिहार में क्या से क्या हो गया सबने देखा ही. हालांकि, INDIA छोड़ नीतीश कुमार के BJP के साथ आने को एकाएक तो नहीं कहा जा सकता.
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यानी एक तरफ BJP अपने दम पर बहुमत से 100 तक ज्यादा सीट जीतने का दावा कर रही है, तो दूसरी तरफ पार्टी गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रीय दलों को जोड़ने में जुटी है. इसके मायने समझने के लिए हमने बात की CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार से बात. वो कहते हैं,
"सचिन तेंडुलकर-विराट कोहली दुनिया के सबसे बेहरीन खिलाड़ी होने के बावजूद कभी प्रैक्टिस सेशन मिस नहीं करते. स्कूल में जो सबसे तेज बच्चे होते हैं, जो हमेशा अव्वल आते हैं, वो रिवीज़न पर पूरा ध्यान देते हैं. BJP का संगठन भी कुछ ऐसा ही है. BJP को अपनी जीत पर भरोसा तो है, लेकिन पार्टी तैयारी में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती. इसीलिए BJP गठबंधन को मजबूत करके चुनाव में जीत के मार्जिन को बढ़ाने की तैयारी कर रही है."
लेकिन BJP ने ये तैयारी चुनाव नज़दीक आने पर नहीं शुरू की है. TDP, JDU, RLD से गठबंधन हाल ही में हुआ है, लेकिन BJP का चुनावी तिकड़म हाल ही में नहीं शुरू हुआ है. पिछले साल यूपी में राजभर को एक बार फिर साथ लाया गया. और पिछले हफ्ते योगी आदित्यनाथ की सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ और राजभर को मंत्री बना दिया गया. दक्षिण में चलेंगे तो कर्नाटक में पिछले साल एचडी देवेगौड़ा की जनता दल सेक्यूलर के साथ गठबंधन किया गया था. हरियाणा में दुष्यंत चौधरी की JJP के साथ BJP की सरकार है. दोनों के बीच अनबन की खबरें समय-समय पर आती रहती हैं. लेकिन पांच साल होने वाले हैं, सरकार ठीक ठाक चल रही है.
इंडिया टुडे मैग्जीन के डिप्टी एडिटर अनिलेश महाजन कहते हैं,
“370 और 400 पार का नारा विपक्ष पर साइकोलॉजिकल दबाव बढ़ाने का तरीका है जिसे इस्तेमाल करने में BJP माहिर है. जहां तक बात क्षेत्रीय दलों को साथ जोड़ने की है तो BJP इस बात का पूरा आंकलन कर रही है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां कहां-कहां मजबूत हैं. BJP उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों को साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है ताकि विपक्षी पार्टियों की सीटों को कम किया जा सके. अलग-अलग राज्यों में जातियां राजनीतिक दलों का एकमुश्त वोट होती हैं. BJP इन्हीं जातियों पर फोकस कर रही है. ताकि विपक्ष को कमजोर किया जा सके. और अपने मैनडेट को और मज़बूत किया जा सके.”
अनिलेश जिस जातीय आधार की बात कर रहे हैं उसे यूपी की राजनीति से समझा जा सकता है. राजभर की पार्टी ने आज तक एक भी लोकसभा सीट नहीं जीती. RLD ने न तो 2014 में एक भी सीट जीती, न ही 2019 में. यहां तक कि जयंत चौधरी और उनके पिता अजीत चौधरी को भी हार ही नसीब हुई.
बावजूद इसके BJP ये जानती है कि अति पिछड़ी जातियों में राजभर की दखल है. और पश्चिमी यूपी में चौधरी खानदान की पैठ अब भी बरकरार है. किसान आंदोलन के समय से जाट बहुल पश्चिमी यूपी में BJP की परिस्थितियां उतनी अच्छी नहीं थीं जितनी यूपी के बाकी हिस्सों में देखने को मिली. इसलिए RLD को भी तोड़कर NDA में शामिल कराया गया.
द हिंदू की पॉलिटिकल एडिटर निस्तुला हेब्बार इसी तर्क को बिहार की राजनीति से समझाती हैं. निस्तुला कहती हैं,
“BJP ने गैर-यादव OBC और गैर-जाटव दलितों को तो खूब साधा है, लेकिन पार्टी ये बात बखूबी समझती है कि अति पिछड़ा वर्ग अब भी नीतीश को नेता मानता है. बिहार में नंबर मजबूत करने के लिए BJP को नीतीश की जरूरत थी. BJP जातियों की राजनीति को समझते हुए अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी को अपने खेमे में जोड़ रही है ताकि किसी तरह की कोई कसर न छोड़ी जाए. BJP की चुनावी मनीशनरी कुछ ऐसे ही काम करती है. BJP आलाकमान चुनाव में हर छोटी-बड़ी चीज़ को ध्यान में रखता है. विपक्ष इस बात का मज़ाक भले ही उड़ाए, पर यही रणनीति चुनावी नतीजों में BJP के आंकड़ों में दिखती है.”
निस्तुला एक और महत्वपूर्ण बात को रेखांकित करती हैं. जेडीएस हो या TDP, BJP दक्षिण में भी गठबंधन मजबूत करना चाहती है. पार्टी ने उन 161 सीटों की लिस्ट बनाई जहां पार्टी की स्थिति कमतर दिखती है. उन सीटों पर अपने विस्तारक भी भेज दिए हैं. ये सब इसलिए किया जा रहा है ताकि दक्षिण और उत्तर के भेद को मिटाया जा सके. विपक्ष चुनाव के बाद ये न कह सके कि BJP सिर्फ उत्तर की पार्टी है.
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