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Lok Sabha Elections Results: भारत में लोकसभा चुनाव के नतीजों पर विदेशी मीडिया ने ये सब छाप डाला

Lok Sabha Elections Results Foreign Media Reaction: पाकिस्तानी अखबार डॉन ने लिखा है, "यह जीत बीजेपी और उसके वैचारिक सहयोगी संघ परिवार के लिए मिला-जुला अनुभव लेकर आई है. Narendra Modi लगातार तीसरी बार सरकार चलाने के लिए तैयार हैं, लेकिन जिस तरह से BJP और उसके सहयोगी 400 से ज़्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे थे, वे उसके क़रीब भी नहीं पहुंच पाए हैं."

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ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने लिखा, मोदी ने आम चुनाव में संसदीय बहुमत गंवाया (सांकेतिक तस्वीर)

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक चुनाव का नतीजा आ चुका है (Lok Sabha Elections Results). 2014 और 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अकेले दम पर बहुमत जुटाया था. मगर इस दफा ट्रेंड बदल गया है. कोई भी पार्टी अकेले 272 का जादुई आंकड़ा नहीं छू पाई है. हालांकि, BJP 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. BJP के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के खाते में 292 सीटें आईं है. ये बहुमत के लिए ज़रूरी 272 के आंकड़े से 20 ज़्यादा है. मगर विपक्षी I.N.D.I.A. भी सरकार बनाने का इशारा कर रही है. आगे क्या-क्या समीकरण बनेंगे-बिगड़ेंगे, उससे जुड़ी जानकारी आपको लल्लनटॉप के प्लेटफ़ॉर्म पर मिल रहीं है. आगे भी मिलती रहेंगी. अभी जानते हैं,

लोकसभा चुनाव परिणाम पर विदेशी मीडिया क्या बोला?

शुरुआत चीन से करते हैं. चीन की सत्ताधारी चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने सुर्खी लगाई है,

Modi claims victory with alliance winning only narrow majority
गठबंधन को साधारण बहुमत के बीच मोदी ने जीत का दावा किया

ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है, “मोदी का लक्ष्य चीन की मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षमता से टक्कर लेना और भारत में बिजनेस के माहौल को बेहतर बनाना था. अब वो मकसद पूरा करना मुश्किल होगा. प्रधानमंत्री मोदी के लिए आर्थिक सुधार पर ज़ोर देना भी आसान नहीं होगा, हालांकि वो राष्ट्रवाद का कार्ड खेल सकते हैं. भारत-चीन संबंधों में सुधार की गुंजाइश भी बहुत कम रहने वाली है.”

CCP के एक और सरकारी अख़बार चाइना डेली ने अपने संपादकीय में लिखा,

भारत और चीन को आपस में विवाद सुलझाने की समझदारी दिखानी चाहिए. उन्हें सैन्य और कूटनीतिक चैनल तो खुले रखने ही चाहिए, किसी दूसरे देश को फायदा उठाने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए. इससे दोनों देशों के बीच कड़वाहट पनप सकती है.

आगे लिखा, कुछ पश्चिमी देशों ने चीन पर लगाम लगाने की कोशिशों में भारत को शामिल करने का प्रयास किया है. नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल में ये हुआ है. 
अगर भारत को संतुलन बनाने वाली शक्ति की बजाय ग्लोबल लीडर बनना है तो उसको अमेरिका के जियोपॉलिटिकल गेम में नहीं फंसना चाहिए. इसकी बजाया रीजनल पॉलिटिक्स पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
 

पाकिस्तानी अख़बार डॉन के संपादकीय की सुर्खी है,

A Sobering Election?
क्या ये चुनाव सोचने-समझने के लिए मजबूर करेगा?

डॉन ने लिखा है, "ये जीत बीजेपी और उसके वैचारिक सहयोगी संघ परिवार के लिए मिला-जुला अनुभव लेकर आई है. नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सरकार चलाने के लिए तैयार हैं, लेकिन जिस तरह से बीजेपी और उसके सहयोगी 400 से ज़्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे थे, वे उसके क़रीब भी नहीं पहुंच पाए हैं."

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर डॉन ने लिखा, “जैसे ही दिल्ली में हलचल थमती है और बीजेपी अगली सरकार बना लेती है, हम उम्मीद करते हैं कि नरेंद्र मोदी अपनी विदेश नीति पर फिर से विचार करेंगे. भारत को पाकिस्तान की तरफ़ हाथ बढ़ाना चाहिए और पाकिस्तान को भारत की किसी भी पहल का सकारात्मक जवाब देना चाहिए. ये स्वाभाविक है कि भरोसा बनने में समय लगेगा मगर बेहतर भारत-पाक संबंधों के बिना दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता असंभव है.”

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की सुर्खी है,

India election: Victory in the shadows of defeat
भारत का चुनाव: पराजय के साये में मिली जीत

आगे लिखा, “चुनाव परिणाम आने के बाद सवाल पूछे जा रहे हैं कि बीजेपी से कहां ग़लती हुई. जनवरी 2023 में प्रधानमंत्री मोदी ने बाबरी मस्जिद के स्थान पर बने राम मंदिर का उद्घाटन किया था. इसके ज़रिए उन्होंने चुनावी कैंपेन में हिंदू कार्ड का बीज रोपा. विडंबना वाली बात ये है कि बीजेपी का कैंडिडेट अयोध्या में हार गया. ये इस बात का संकेत है कि सत्ताधारी गठबंधन के लिए हिंदू कार्ड नहीं चला. इसके बरक्स महंगाई और बेरोज़गारी ने अहम भूमिका निभाई.”

पाकिस्तान के और भी मीडिया संस्थानों ने भारत के चुनाव को विस्तार से कवर किया है. उन्होंने नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की तरफ़ इशारा किया है. मगर बीजेपी को हुए नुकसान की तरफ़ भी ध्यान दिलाया है.


नेपाल के डेली अख़बार कान्तिपुर ने सुर्खी लगाई,

मोदीको गतिलाई चुनावी लगाम
यानी, चुनावी नतीज़ों ने मोदी की रफ़्तार पर लगाम लगाई

अख़बार लिखता है, “मोदी ने ख़ुद को दूसरों से अलग दिखाने के लिए ये कहना शुरू किया कि उनको ईश्वर ने विशेष ज़िम्मेदारी देकर भेजा है. बीजेपी का प्लान मोदी की लोकप्रियता के दम पर प्रचंड बहुमत से सत्ता हासिल करना था. मगर जनता ने उनके प्लान को धराशायी कर दिया.”

श्रीलंका के अख़बार द डेली मिरर की हेडलाइन है,
 

India gives NDA third term, Modi a message
भारत के लोगों ने NDA को तीसरा कार्यकाल, जबकि मोदी को एक मेसेज दिया है

डेली मिरर ने लिखा, “एग्जिट पोल्स में सत्ताधारी गठबंधन की एकतरफ़ा जीत का दावा किया जा रहा था, मगर असली नतीजों में बीजेपी बहुमत से चूक गई. उसको 240 सीटें मिली हैं और अब वे गठबंधन के सहयोगियों तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के भरोसे पर है. इसने एक दशक के एकदलीय प्रभुत्व को खत्म कर दिया है और केंद्र में गठबंधन सरकार की वापसी का रास्ता साफ़ हो गया है.”

श्रीलंका के एक और मीडिया संस्थान द आइलैंड ऑनलाइन ने सुर्खी लगाई,

India’s Modi claims victory as he heads for reduced majority
भारत में मोदी ने जीत का दावा किया, हालांकि बहुमत घटा

अब वेस्ट एशिया की तरफ़ चलते हैं

यूएई बेस्ड गल्फ़ न्यूज़ ने सुर्खी लगाई,

Modi claims victory for alliance despite setback
कुछ झटकों के बावजूद मोदी ने गठबंधन की जीत का दावा किया

अब यूरोप की तरफ़ चलते हैं.

पहले तुर्किए की बारी. तुर्किए एक अंतर-महाद्वीपीय देश है. उसकी ज़मीन एशिया और यूरोप, दोनों महाद्वीप में है. हालांकि, वो ख़ुद को यूरोप के ज़्यादा क़रीब देखता है. तुर्किए 32 देशों के सैन्य संगठन नेटो का सदस्य है. और, वो यूरोपियन यूनियन (EU) की मेंबरशिप लेने की कोशिश भी कर रहा है.

तुर्किए के सरकारी चैनल TRT वर्ल्ड ने लिखा,

India's Modi declares historic victory, but fails to win 'big majority'
भारत में मोदी ने ऐतिहासिक जीत की घोषणा की, मगर प्रचंड बहुमत हासिल करने में नाकाम रहे

फ़्रांस के ली मोंद की सुर्खी है,

Modi set to remain India's PM but fails to win by landslide
मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने रहेंगे, मगर प्रचंड जीत नहीं


यूरो न्यूज़ की हेडलाइन है,

India's Narendra Modi secures third term, despite drop in support
समर्थन में कमी के बावजूद नरेंद्र मोदी को तीसरा कार्यकाल मिला

ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने लिखा,

Modi loses parliamentary majority in Indian election
मोदी ने आम चुनाव में संसदीय बहुमत गंवाया

बीबीसी ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हुए नुकसान को ब्रैंड मोदी में धब्बे से जोड़ा है. लिखा है कि ब्रैंड मोदी की चमक फीकी पड़ने लगी है. जितना उनके समर्थक समझते हैं, मोदी उतने अजेय नहीं रह गए हैं. इससे विपक्ष में नई उम्मीद पैदा हुई है.

द इंडिपेंडेंट की सुर्खी है,


Modi faces the greatest pressure of his political career as the BJP falls short of an outright majority
मोदी के राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी चुनौती, बीजेपी स्पष्ट बहुमत से दूर

इंडिपेंडेंट ने लिखा है,

मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रत बढ़ने और लोकतंत्र के हनन की आशंका बनी रहेगी. मगर गठबंधन के साथ सरकार चलाने की मजबूरी नरेंद्र मोदी के फ़ैसले लेने की क्षमता को सीमित करेगी.

अब नॉर्थ अमेरिका की तरफ़ चलते हैं.

पहले कनाडा की बात.
CBS न्यूज़ ने सुर्खी लगाई है,

India's Modi sees hopes of a larger majority dashed by surging opposition in election
विपक्ष के विस्तार के बीच मोदी की प्रचंड बहुमत की उम्मीद ध्वस्त

CBS ने लिखा, 

“भारत के पंथनिरपेक्ष मूल्य संविधान में निहित हैं. बीजेपी के आलोचकों ने मोदी के एक दशक के कार्यकाल में मुल्क की बहुलतावाद वाली छवि को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाया है. संसद में दो-तिहाई बहुमत से उन्हें संविधान में बदलाव करने की शक्ति मिल जाती.”

अब अमेरिकी मीडिया संस्थानों का रुख करते हैं

वॉशिंगटन पोस्ट की हेडलाइन है,

Indian election delivers stunning setback to Modi and his party
भारत के चुनाव में मोदी और उनकी पार्टी को ज़बरदस्त झटका

आगे लिखा है,
ये परिणाम बाकी एजेंडे को आगे बढ़ाने में मोदी की क्षमता पर सवाल खड़े कर सकता है. बीजेपी के अधिकारियों ने वन नेशन, वन इलेक्शन का प्रस्ताव दिया था. ताकि पार्टी की ताक़त बढ़ाई जा सके. लेकिन अभी ये साफ़ नहीं है कि वो बदलाव लाया जाएगा भी या नहीं.

न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है,

Needing Help to Stay in Power, Modi Loses His Aura of Invincibility
सत्ता में बने रहने के लिए सहयोगियों की ज़रूरत, मोदी की अजेय छवि धूमिल हुई

NYT ने लिखा,
मोदी के कार्यकाल में वैश्विक मंचों पर भारत को नई पहचान मिली. 140 करोड़ लोगों की ज़रूरतों को पंख मिले और जनता में भविष्य को लेकर नई भावना पनपी.
उसी दौर में मोदी ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था में गुंथे विविधता से भरे मुल्क को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश की. इसके चलते मुस्लिम अल्पसंख्यक हाशिए पर चले गए. 

मोदी के बढ़ती निरंकुश फ़ैसलों - मसलन, आलोचकों को दबाना, जिससे सेल्फ़-सेंसरशिप का माहौल बना, इसने भारत के जीवंत लोकतंत्र को वन-पार्टी स्टेट की तरफ़ धकेल दिया था. और, देश की आर्थिक तरक्की ऊपर के कुछ लोगों तक ही सीमित रह गई थी.

एक समय तक एकतरफ़ा प्रभुत्व वाली कांग्रेस पार्टी अपनी दिशा तय करने और बीजेपी का वैचारिक विकल्प बनने में मशक्कत कर रही थी. मगर इस चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने मोदी सरकार को बेरोज़गारी, सामाजिक न्याय और पीएम मोदी के उद्योगपतियों के साथ संबंध के मुद्दों पर घेरा. उन्हें इसका फ़ायदा हुआ.

वॉल स्ट्रीट जर्नल के एडिटोरियल बोर्ड ने लिखा,

An Election Rebuke for India’s Narendra Modi
चुनाव में नरेंद्र मोदी को चेतावनी मिली

WSJ लिखता है,
इस परिणाम ने दिखाया है कि भारतीय नागरिकों को अपने नेताओं से काफ़ी उम्मीदें होती हैं, और उन्होंने एक बार फिर से इस चुनाव का इस्तेमाल उन नेताओं को चेतावनी देने के लिए किया है. अब ये देखना बाकी है कि क्या मोदी इस वॉर्निंग से सीख लेते हैं या और ज़्यादा सांप्रदायिक और निरंकुश होकर सामने आते हैं.


लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद मची हलचल पर हमारी नज़र बनी हुई है. और भी अपडेट्स के लिए पढ़ते रहिए लल्लनटॉप.

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