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जब लोकसभा से इस्तीफा देकर अकाली दल में शामिल हो गए थे कांग्रेस के कैप्टन

कैप्टन हर जगह 65 की जंग की बात करते हैं. आज बड्डे है. जानते हैं उनसे जुड़े किस्से.

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कैप्टन अमरिंदर सिंह वो शख्स हैं, जो पंजाब में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा है. जब देश के कई राज्यों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा था, ऐसे समय में कैप्टन ही वो नेता थे, जो अपने दम पर पार्टी को पंजाब का किला फतह कराने में कामयाब हुए थे. आज उनका जन्मदिन है. आइये जानते हैं कैप्टन के बर्थ डे पर वो सब बातें, जो उनके पॉलिटिकल करियर ग्राफ के अप्स एंड डाउन बताती हैं.
# कैप्टन अमरिंदर सिंह एनडीए और आईएमए से पासआउट होने के बाद साल 1963 से 1966 तक भारतीय सेना में सेवारत रहे. कैप्टन को लेकर बार-बार 1965 की जंग की बात होती हैं. लेकिन ये बहुत कम लोगों को पता है कि उन्होंने इससे पहले ही इस्तीफा दे दिया था. जिस समय जंग के हालात बने कैप्टन अमरिंदर को वापस फौज में बुलाया गया. और बतौर पूर्व आर्मी चीफ जे जे सिंह, 'कैप्टन ने मैदान में जंग लड़ने की बजाए एडमिनिस्ट्रेटिव काम करना बेहतर समझा.'
#  क्या आप जानते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को राजनीति में कौन लाया? राजीव गांधी. जी हां, अमरिंदर और राजीव स्कूल फ्रेंड्स रहे. अकाली दल की बढ़ रही पॉपुलैरिटी पर ब्रेक लगाने के लिए जहां राजीव के भाई संजय ने भिंडरावाले का चयन किया, वहीं दूसरी ओर राजीव ने सिख लीडर के तौर पर कैप्टन से चुनाव लड़ने को कहा. 1980 में लोकसभा चुनाव लड़े. लेकिन 1984 में गोल्डन टेम्पल पर हुई सैन्य कार्रवाई से आहत कैप्टन अमरिंदर ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया.
पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह के दामाद पर बैंक घोटाले का केस दर्ज हुआ है.
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#  बीते 25 सालों में जब-जब पंजाब कांग्रेस की बात हुई होगी, तो सबसे पहले कैप्टन अमरिंदर का ही चेहरा सामने आता होगा. लेकिन यही कांग्रेसी कप्तान 1984 में लोकसभा से इस्तीफा देकर अकाली दल में शामिल हो गए थे. अकाली दल में उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया. एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट, डेवेलपमेंट और पंचायत मंत्री के तौर में काम करते रहे.
#  सन 1992 में आकर कैप्टन अकाली दल से भी अलग हो गए. अपनी पार्टी बनाई, नाम रखा अकाली दल (पंथक). ये पार्टी अकाली दल (लोंगोवाल) से अलग थी.
# 1992 के बाद तीन बार चुनाव हुए. कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी किसी तरह की छाप ना छोड़ सकी. 1998 में कैप्टन फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. कैप्टन ने पटियाला से चुनाव लड़ा लेकिन प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने उन्हें पटखनी दी. कांग्रेस को सूबे में भी हार मिली. प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री बने.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच जो टेंशन है, उसके तार खालिस्तान से जुड़े हैं.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच जो टेंशन है, उसके तार खालिस्तान से जुड़े हैं.


#  कैप्टन को पहली बार 1999 में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.  2002 में भी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका निभाई और 62 सीटें जीतकर पंजाब में सरकार बनाई.
#  साल 2008 में ज़मीनी लेन-देन की ट्रांजेक्शंस में हुए हेर-फेर के चलते कैप्टन अमरिंदर को पंजाब विधानसभा की स्पेशल कमेटी से बर्खास्त कर दिया. हालांकि 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बर्खास्तगी को गैर-संवैधानिक बताया.
#  साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कैप्टन को पटियाला से चुनाव लड़वाया जा रहा था. लेकिन अमृतसर से नवजोत सिद्धू की जगह अरुण जेटली को बीजेपी ने मैदान में उतारा. और फिर कांग्रेस हाई कमान ने भी कैप्टन को अरुण जेटली से लड़ने के लिए भेज दिया. कैप्टन ने मोदी लहर के बावजूद जेटली को करारी शिकस्त दी. SYL मुद्दे के चलते कैप्टन ने बीते साल अमृतसर की इस लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया.
# साल 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल के 10 साल के शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर तो थी लेकिन राज्य में आम आदमी पार्टी का बढ़ता कद भी कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बना हुआ था. क्योंकि इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव लड़ रही आप ने 13 में से 4 सीटों पर दर्ज की थी.  2017 विधानसभा चुनाव के दौरान आप के पास सब कुछ था. लेकिन सीएम के तौर पेश करने के लिए कोई चेहरा नहीं था. जो कैप्टन के सामने खड़ा हो सके. नतीजा ये रहा कि सत्ता का सपना देखने वाली आम आदमी पार्टी 117 में से मात्र 19 सीटों पर सिमट गई और कैप्टन की अगुवाई में कांग्रेस 80 सीटों के साथ सरकार बना गई.
 


 
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