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बीती रात आप सोते रह गए और डिंपल यादव के हाथों से उनकी सीट निकल गई

एक समय निर्विरोध चुनी गईं मुलायम की बहू, 'कन्नौज के बेटे' से हारीं.

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डिंपल यादव (बाएं) और सुब्रत पाठक.
सीट का नाम - कन्नौज, उत्तर प्रदेश
प्रमुख कैंडिडेट्स -
डिंपल यादव, सपा-बसपा सुब्रत पाठक, बीजेपी
नतीजा- डिंपल यादव करीब 12 हजार वोटों से भाजपा के सुब्रत पाठक से हार गईं हैं.
कन्नौज से सपा उम्मीदवार डिंपल यादव को भाजपा के सुब्रत पाठक के मुकाबले का फाइनल रिजल्ट
कन्नौज से सपा उम्मीदवार डिंपल यादव को भाजपा के सुब्रत पाठक के मुकाबले का फाइनल रिजल्ट

2014 का रिजल्ट -  डिंपल यादव महज 19,907 वोटों से जीतीं. डिंपल यादव, सपा - 4,89,164 वोट सुब्रत पाठक, बीजेपी - 4,69,257 वोट निर्मल तिवारी, बसपा - 1,27,785 वोट
2019 के चुनाव में कन्नौज की सीट खास है अपनी भिड़ंत के लिए. लोगों की नजर इस बात पर थी कि क्या कन्नौज में समाजवादी किले को बीजेपी ढहा देगी? जो 2014 में होते, होते रह गया. क्या वो इस बार हो जाएगा. एक बार फिर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल का सामना कन्नौज के ही वासी सुब्रत पाठक से था.
सुब्रत के बारे में पत्रकारों ने बताया कि 2014 तक सुब्रत को लोग उतना सीरियसली नहीं ले रहे थे. पर जब वोट का अंतर इतना कम रह गया तो लोगों को लगा सुब्रत डिंपल को हरा सकते हैं. इस बार ये फैक्टर चला. बीजेपी ने जनता के बीच डिंपल को बाहरी बताया. लोगों से ये भी सुनने को मिला कि डिंपल क्षेत्र में नहीं रहतीं. मिलना तो दूर की बात है.
कुछ लोगों ने कहा कि ये चुनाव अखिलेश के काम वर्सेज मोदी के नाम वाला है. यानी सीधा अखिलेश वर्सेज मोदी. मोदी और अखिलेश दोनों ने ही यहां रैलियां कीं. महागठबंधन की रैली में डिंपल ने मायावती के पैर छुए तो इसके भी मायने निकाले गए. कहा गया इससे दलित, यादव और मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने की कोशिश की गई. मगर कन्नौज में पड़ने वाली 5 विधानसभाओं में से 4 बीजेपी ने 2017 में जीती थी. ऐसे में बीजेपी यहां मजबूत दिखती है. हालांकि अखिलेश ने भी पूरी ताकत झोंक रखी थी. कांग्रेस और शिवपाल की पार्टी ने भी यहां प्रत्याशी नहीं उतारा है. ऐसे में लड़ाई टाइट थी.
कन्नौज सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनने वाले तीन कद्दावर नेता मुख्यमंत्री भी बने हैं. 1994 में सांसद बनीं शीला दीक्षित दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं. 1999 में जीते मुलायम सिंह यादव और फिर 2000 में यहां से चुने गए अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री रहे.
कन्नौज तहसील में लोग बोले कि दोनों में बड़ी टक्कर है. धीरज सिंह चौहान बोले कि सुब्रत लोकल हैं. डिंपल बाहरी हैं. पांच साल में पांच बार नहीं आईं. पीछे से लोग चिल्लाए आती ही नहीं हैं. फिर आए एडवोकेट पंकज बाजपेयी. बोले पहले जमीनों पर कब्जा होता था. वो अब नहीं होता. इस तरह के माहौल. घर वर्सेज बाहरी का नरेटिव और मोदी लहर. तीनों ने मिलकर सुब्रत पाठक की नैया पार लगा दी.
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कन्नौज में चुनाव क्यों अखिलेश यादव वर्सेज नरेंद्र मोदी हो गया है?

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