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अयोध्या में मंदिर बनवाकर भी कैसे हारी BJP? असली खेल यहां समझ लीजिए

राम मंदिर निर्माण के बमुश्किल चार महीने बाद भाजपा फ़ैज़ाबाद की लोकसभा सीट हार गई. वही फ़ैज़ाबाद सीट, जिसका हिस्सा है अयोध्या, जहां मंदिर बना है.

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अयोध्या, फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट के अंदर आती है. (फ़ोटो - PTI)

भारतीय जनता पार्टी अयोध्या हार गई – 2024 आम चुनाव के नतीजों के बाद सबसे ज़्यादा अचंभा (BJP lost Ayodhya) इसी पंक्ति के साथ उठ रहा है. BJP के लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट मिले. जबकि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद (Awadhesh Prasad SP) को 5,54,289. हार का अंतर 54,567 रहा.

भाजपा बीते तीन दशक से राम मंदिर के नाम पर राजनीति कर रही है. रथ यात्रा और बाबरी मस्जिद के विध्वंस से लेकर भूमि पूजन, फिर ‘राम लला’ की प्राण-प्रतिष्ठा तक. मगर राम मंदिर निर्माण के बमुश्किल चार महीने बाद भाजपा फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट हार गई. वही फ़ैज़ाबाद सीट, जिसका हिस्सा है अयोध्या… जहां मंदिर बना है.

क्यों हार गई?

राम मंदिर का निर्माण भाजपा के प्रमुख वैचारिक प्रोजेक्ट्स में से एक रहा है, और इस चुनाव में उनका सबसे बड़ा आकर्षण. भाजपा की रैलियों में अक्सर ‘मंदिर वही बनाया है’, ‘500 सालों बाद राम लला अपने घर में आए हैं’ और ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ जैसे नारे लगाए जाते थे. ऐसे में लल्लू सिंह का हारना, इतने अप्रत्याशित नतीजे के ऊपर भी अप्रत्याशित था.

1984 - मंदिर का ताला खुलने - से लेकर अब तक सपा और कांग्रेस ने फ़ैज़ाबाद सीट दो-दो बार जीती है. 1991 - रथ यात्रा - के बाद से अयोध्या में भाजपा का दबदबा बढ़ा. भाजपा के विनय कटियार ने इस सीट से तीन बार जीत दर्ज की. 1991, 1996 और 1999 में. चूंकि वो एक कुर्मी नेता भी थे और हिंदुत्व का चेहरा भी, सो धर्म भी सध जाता था और जाति भी. 2004 में भाजपा ने विनय कटियार का टिकट काटकर लल्लू सिंह को दिया. मगर वो बसपा के मित्रसेन यादव से हार गए, जो 1989 में कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर और 1998 में सपा के टिकट पर यहां से जीतकर सांसद बने थे.

लल्लू सिंह पहली बार 2014 में यहां से सांसद चुने गए थे, फिर 2019 में. इस बार उनका मुक़ाबला अवधेश प्रसाद के साथ था. नौ बार के विधायक और सपा के प्रमुख दलित चेहरों में से एक. जीत के बाद मीडिया से कहा,

ये एक ऐतिहासिक जीत है, क्योंकि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुझे सामान्य सीट से मैदान में उतारा... लोगों ने जाति और समुदाय से ऊपर उठकर मेरा समर्थन किया है.

लल्लू सिंह ने कहा, हम आपका सम्मान नहीं बचा पाए.

दशकों तक चले ख़ूनी विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राम मंदिर बन तो गया, भाजपा ने भरसक प्रचार भी किया, लेकिन राजनीतिक ऑब्ज़र्वर्स का कहना है कि राम मंदिर बहुत बड़ा मुद्दा बन नहीं पाया. स्थानीय लोगों के बकौल कई मीडिया रिपोर्ट्स में छपा है कि राम मंदिर की भव्यता से भले ही बाहरी लोग लालायित हों, लोकल्स वहां हो रही असुविधा से नाख़ुश थे.

इंडियन एक्सप्रेस के धीरज मिश्रा ने लोकल्स के हवाले से लिखा है कि सीट और इलाक़े में स्थानीय मुद्दे भी चर्चा में थे. अयोध्या के कई गांव मंदिर और एयरपोर्ट के आसपास हो रहे भूमि अधिग्रहण से नाराज़ हैं.

शहर में 14 किलोमीटर लंबा रामपथ बनाया गया है. भक्ति पथ और रामजन्मभूमि पथ भी. ज़ाहिर है, इसकी ज़द में आने वाले घर और दुकानें तोड़ी गईं. मगर मुआवज़ा सबको नहीं मिल पाया है. मुआवज़ा केवल उन्हें मिला है, जिसके पास काग़ज़ थे. रॉयटर्स समेत कई मीडिया रिपोर्ट्स में इसकी मिसाल मिलती है. किसी शख़्स की 200 साल पुरानी कोई दुकान थी, लेकिन उसके पास काग़ज़ नहीं थे. तो उसकी दुकान तो तोड़ी गई, मगर मुआवज़ा नहीं दिया गया. इस वजह से लोगों के बीच नाराज़गी थी.

भूमि अधिग्रहण के अलावा बेरोज़गारी, महंगाई और 'संविधान बदलने' वाला नारा भी हार की वजहों में गिना जा सकता है. वैसे तो भाजपा ने अपने मेनिफ़ेस्टो में ये कहीं नहीं लिखा है कि वो संविधान बदलेंगे. मगर अप्रैल 2024 में लल्लू सिंह ने कहा था कि सरकार तो 272 सीटों पर ही बन जाती है, लेकिन संविधान बदलने के लिए दो-तिहाई सीटें चाहिए होती हैं.

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फिर जाति भी एक बड़ा फ़ैक्टर है. मनीकंट्रोल की समीक्षा में राजनीतिक विश्लेषक प्रीतम श्रीवास्तव का कहना है कि बसपा का मूल वोटर बिखर गया. साफ़ है कि दलितों ने इस बार INDIA ब्लॉक के पक्ष में वोट डाला है. सूबे में तो ये शिफ़्ट दिखा ही, अयोध्या में भी बसपा के वोट का एक बड़ा हिस्सा सपा को ट्रांसफर हुआ है, क्योंकि अवधेश प्रसाद दलित नेता हैं.

भाजपा समर्थकों का पुराना नारा है - ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा अभी बाक़ी है’. अवधेश प्रसाद के समर्थकों ने इससे इतर एक नारा दिया - ‘न मथुरा, न काशी.. अबकी बार अवधेश पासी’. 

इंडिया टुडे के कुमार अभिषेक के इनपुट्स के मुताबिक़, अयोध्या में OBC मतदाताओं की संख्या सबसे ज़्यादा है. क़रीब 22%. इसमें कुर्मी और यादव सबसे ज़्यादा हैं. वहीं, दलित 21% हैं और दलितों में भी पासी समुदाय के मतदाता सबसे ज़्यादा हैं. क़रीब ढाई लाख. मुस्लिम मतदाता भी क़रीब 18% हैं.

1957 के बाद ये पहली बार है कि फ़ैज़ाबाद की जनता ने एक अनुसूचित जाति के प्रतिनिधि को संसद भेजा है.

इस नतीजे को पढ़ने का एक तरीक़ा और है. फ़ैज़ाबाद लोकसभा के अंतर्गत पांच विधानसभाएं आती हैं: दरियाबाद, रुदौली, अयोध्या, मिल्कीपुर, बीकापुर. बीते 2022 के विधानसभा चुनाव का नतीजा था कि पांच में से चार सीटें भाजपा ने जीती थी. जो इकलौती सीट सपा के हिस्से गई थी, वहां (मिल्कीपुर) अवधेश प्रसाद ही जीते थे. जो अब सांसद चुन लिए गए हैं.

अब अगर इस बार के नतीजों को विधानसभा-वार देखें, तो अयोध्या विधानसभा छोड़कर भाजपा के लल्लू सिंह हर जगह से हारे हैं. अयोध्या में भी अंतर मात्र साढ़े चार हज़ार का रहा. लल्लू सिंह को 1,04,671 वोट पड़े हैं और अवधेश प्रसाद को 1,00,004. इस आंकड़े की तुलना अगर विधानसभा के नतीजों से की जाए, तो मालूम पड़ता है कि यहां भी भाजपा का वोट कम हुआ है. 2017 के विधानसभा में भाजपा के टिकट से वेद प्रकाश गुप्ता को 1,07,014 वोट मिले थे, और 2022 में 1,13,414. 

एक ज़रूरी पॉइंट और. भाजपा के एक नेता सचिदानंद पांडे ने चुनाव से ठीक छह दिन पहले पार्टी छोड़ी, और बसपा जॉइन कर ली. चुनाव में उन्हें 46,407 वोट मिले हैं.

तो कुल जमा अयोध्या में भाजपा के हारने की केवल एक वजह नहीं है. भाजपा से OBC और दलितों का अलगाव, अखिलेश यादव का PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फ़ॉर्मूला, ज़मीन का मुआवजा न मिलने और लल्लू सिंह के व्यवहार से स्थानीय लोगों में नाराज़गी. इन कारणों के ज़रिए भाजपा ये सीट लहा नहीं पाई.

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